Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
पंचाल
( पाँच-पराक्रमी ) के अर्थ से यह नाम भद्राश्व के पुत्रों के लिये प्रयुक्त किया जाता था। उन्ही के नाम से, उनके राज्य को 'पंचाल ' नाम प्राप्त हुआ ( पार्गि. ७५) । पंचालखंड - पंचाल देश में उत्पन्न एक वैदिक ऋषि वाणी के द्वारा ही वैदिक संहिताएँ 'संहित की जाती है, ऐसा इसका मत था (ऐ. आ. ३.१.६; सां. आ. ७. १९)।
।
प्राचीन चरित्रकोश
पंचिक - दक्षिण पांचाल देश के 'ब्राभ्रव्य पांचाल ' आचार्य का नामांतर (ह. वं. २३.१२५६, बाभ्रव्य पांचाल देखिये) ।
"
फ्ज्र - एक वैदिक कुलनाम । पज्रिय कक्षीवत् ऋषि इसी कुल में पैदा हुआ था (ऋ. १.२२६.२ - ५ ) । यह कुल अंगिरस फुल की ही एक उपशाखा थी (ऋ. १.५१.४ सायण) । सोम को 'पद्मागर्म ' कहा गया है (ऋ. ९.८२.४ ) ।
पज्रिय वा पज्य - ' कक्षीवत् दीर्घतमस् औशिज' ऋषि का पैतृक नाम (ऋ. १.११६ ११७.१०५ १२२. ७८) । इसके सूक्त में उत्तर पांचाल देश का राजा दिवोदास का निर्देश प्राप्त है. (ऋ. १.११६.१८ ) । यह ऋषि भरत राजा के समकालीन, कक्षीवत् ऋषि से अलग एवं पश्चात्कालीन था, ऐसा पाटिर का कहना है ( पार्गि २२३ ) ।
"
पटच्चर--' पटच्चर' देश के निवासियों का सामूहिक नाम ये लोग जरासंध की भय से दक्षिण की ओर भाग गये थे ( म. स. १३.२५ ) । सहदेव ने इन्हें दक्षिणदिग्विजय के समय जीता था ( म. स. २८.४ ) । भारतीय युद्ध में, ये लोग युधिष्ठिर के पक्ष में लड़ने आये थे, एवं उसके साथ चव्यूह के पृष्ठभाग में खड़े थे (म. भी. ४६.४७) ।
२. एक राक्षस रथसेन राजा ने इसका वध किया । ( म. द्रो. २२.५३ ) ।
पणि
पटुमित्र - (किलकिला. भविष्य. ) विष्णु के अनुसार एक राजा ।
जो
पटवासक -- धृतराष्ट्र के कुल में उत्पन्न एक नाग, जनमेजय के सर्पसत्र में जल कर मर गया (म. आ. ५७ १८; भांडारकर संहिता पाठ - ' पटवासन' ) ।
रॉथ के अनुसार, 'पणि' शब्द ' पण ' (विनिमय ) धातु से व्युत्पन्न हुआ था, एवं 'पणि ऐसे जाति के लोग थे, जो बिना किसी प्रतिप्राप्ति के अपना कुछ नहीं देते थे, अतः ये ऐसे कृपण लोग थे जो न तो देवों की उपासना करते थे, और न पुरोहितों को दक्षिणाएँ देते थे रॉथ-सेंट पिटर्सबर्ग कोश ) । यास्क एवं सायणाचार्य भी पणि को वणिज जाति का कहते हैं ( निरुक्त. २.१७; ६.२६ ) ।
(
।
ऋग्वेद के सूक्तकार अपने विरोधियों को 'इंद्रशत्रु, ' 'अयज्वन् ' आदि अपमान दर्शक शब्दों से संबोधित करते हैं। इस प्रकार पणियों को भी संथेधित किया गया है । इन्हे गंदे, कंजूस आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है (ऋ. १०.१०८ ) । इन पर आक्रमण करने की प्रार्थना देवों से की गयी हैं एवं वामदेव ने अपनी प्रार्थना में कहा है, 'अत्यंत निविड़ अंधकार में पनि गिरे (ऋ. ४.५१.३)। ऋग्वेद में एक स्थल पर, इन्हें शत्रु के नाते भेड़िया कहा गया है ( . ६.५१.१४ ) एवं दूसरे एक स्थल पर इन्हें 'बेकनाट' (ब्याज स्थानेवाला) कहा है (ऋ. ८-६६.१० ) एक अन्य स्थल पर, इन्हें 'दस्यु ' कह कर, इनके लिये 'सूत्रवाच' (कटु वाणी बोलनेवाला, एवं ' ग्रथिन् ' (अपरिचित वाणी बोलनेवाला ) शब्दों का
3
३८१
पटुमत्-- ( अ. भविष्य.) एक राजा विष्णु के (आंध्र. । अनुसार यह मेघस्थाति का ब्रह्मांड के अनुसार आपोसव का, एवं वायु के अनुसार आपादबद्ध का पुत्र था । भागवत में इसे अटमान कहा गया है। इसने २४ वर्षों तक राज्य किया
पटुश-एक राक्षस, जिसने श्रीरामसेना के प नामक वानर से युद्ध किया था (म.ब. २६९.८ ) । पट्टमित्र - ( भविष्य . ) ब्रह्मांड एवं वायु के अनुसार पुष्पमित्र के बाद के तेरह राजाओं का सामूहिक नाम ।
पठर्वन् -- अवियों का कृपापात्र एक राजा (ऋ. १. ११२.१७ सायणभाष्य ) |
पदग्रभि एक वैदिक असुर (ऋ. १०.४९.५)
6
,
'पगृमि का शब्दशः अर्थ 'पैर को पकड़ लेनेवाला', ऐसा होता है। श्रुतवर्मन् राजा के रक्षणार्थ, इंद्र ने इसको पराजित किया था ।
पणव -- (सो. क्रोष्टु. ) एक राजा । वायु के अनुसार यह भजमान का पुत्र था।
पणि- एक वैदिक जाति । इस जाति के लोग वैदिक ऋषियों के देवताओं की उपासना न करनेवाले लोगो में मे ये संभवतः ये कही आदिवासी अनार्थ वा दैत्य रहे होंगे। इनके राजा का नाम 'बृबु' था। (ऋ. ६.४५. ३१ - ३३; बृबु देखिये )
6