Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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नरनारायण
प्राचीन चरित्रकोश
नर्मदा
लगी । फिर विष्णु ने मध्यस्थ का काम किया तथा यह युद्ध | काफी पुण्य संपादन किया था। इसके गीले वस्त्र आकाश रोक लिया ( दे. भा. ४.४.९)।
में अधर सूखते थे। नरवाहन--कुवेर का नाम ।
__एक बार एक बगुले को शाप देने के कारण, इसका नरसिंह--गौड देश का राजा । इसके सेनापति का | काफी पुण्य तथा दैवी सामर्थ्य नष्ट हो गया। इसे काफी नाम सरभभेरुंड था । वह गीतापाठ करने के कारण मुक्त दुख हुआ। इतने में इसने आकाशवाणी सुनी, 'तुम मूक हुआ (सरभभेरुंड देखिये)।
नामक धार्मिक चांडाल के पास जाओ। वह तुम्हें धर्म का नरांतक-अंगद द्वारा मारा गया रावण का पुत्र | उपदेश करेगा'। यह उस चांडाल के पास गया । (भा. ९.१.१८; वा. रा. यु. ६९)।
उस समय मूक अपने माता पितरों की सेवा कर रहा था। २. रावण के प्रहस्त नामक प्रधान का पुत्र । यह द्विविद | उसने इसे रुकने के लिये कहा । फिर भी यह नहीं रुका । वानर के द्वारा मारा गया (वा. रा. यु: ५-८)। फिर मूक ने इसे एक पतिव्रता के पास जाने के लिये ___३. रौद्रकेतु दैत्य का पुत्र । अपने दुष्कृत्यों से इसने
कहा। सारे त्रैलोक्य को अत्यंत त्रस्त किया था। बाद में इसे पता। इतने में ब्राह्मण रूपधारी विष्णु अपने घर से बाहर चला कि, कश्यपं गृहोत्पन्न विनायक के द्वारा अपनी मृत्यु | निकला तथा उसने इसे पतिव्रता के घर पहुचा दिया। वह होगी । तब विनायक के नाश के लिये इसने काफी प्रयत्न | पतिसेवा करने में मग्न होने के कारण, उसने भी इसे रुकने किये । परंतु वे निष्फल हो कर, विनायक ने इसका वध के लिये कहा। इसे रुकने के लिये समय न होने के किया (गणेश. २.६१)।
कारण, उसने इसे धर्म वैश्य के पास जाने के लिये कहा। ४. कालनेमि राक्षस का पुत्र । हिरण्याक्ष के साथ हुए वह ग्राहकों को माल देने में मग्न था, इसलिये उसने इसे देवों के संग्राम में, जयंत ने इसका पराभव किया था | धर्माकर के पास जाने के लिये कहा । उसने इसे एक (पद्म. सु. ७५)। '
वैष्णव के पास भेजा। वैष्णव के पास जाने पर उसने नरामित्र-त्रिधामन् नामक शिवावतार का शिष्य । | कहा, कि 'अवश्य ही तुम्हें विष्णु का दर्शन हुआ है।
नरि-(सो. कुकुर.) बहुपुत्र राजा का पुत्र । इसका | अब तुम्हारे वस्त्र अधर सूरखेंगे। पुत्र अभिजित् (पद्म. सू. १३)।
___परंतु इस पर नरोत्तम ने कहा, मुझे अब तक विष्णु नरिन्-वनरस नगर के तालन राजा का पुत्र (भवि. | का दर्शन नहीं हुआ है। फिर वह वैष्णव इसे पूजागृह में प्रति. ३.७)।
ले गया । पूजागृह में इसे पतिव्रता का घर दिखानेवाला नरिष्यन्त-वैवस्वत मनु का पुत्र, एक राजा (म. | ब्राह्मण कमलासन पर बैठा हुआ दिखा। फिर नरोत्तम आ. ७०-१३)। इसका पुत्र शुक (पद्म. स.८)। उसके उसकी शरण में गया । पश्चात् विष्णु ने इसे माता पिता की सिवा, इसे चित्रसेन, ऋक्ष, मीढ्वस, कूर्च, इंद्रसेन आदि सेवा करने के लिये कहा। उस सेवाधर्म के कारण, यह पुत्र भी थे। पश्चात् इसीके कुल में अग्निवेश्यायन ब्राह्मण | स्वर्लोक पहुँच गया (पन्न. सु. ४७)। पैदा हुएँ (भा. ९.२.१९-२२)। 'शक' लोग भी नर्मदा-सोमप नामक पितरों की मानसकन्या। इसीके पुत्र कहलाते थे (ब्रह्म. ७.२४)। इसका पूरा २. एक गंधर्वी । अपनी तीन कन्याएँ इसने सुकेश वंश 'भागवत' में दिया गया है (भा. ९. २. १९- राक्षस के तीन पुत्रों को दी थीं (वा. रा. अर.५)। २२)।
३. (सू. इ.) मांधातृ राजा की स्नुषा तथा पुरुकुत्स २. (सो. दिष्ट.) एक राजा । वायु एवं विष्णुमत में राजा की पत्नी। यह सर्पकन्या थी जो सों ने यह मरुत्त का पुत्र था। इसकी पत्नी का नाम बाभ्रवी | पुरुकुत्स राजा को विवाह में दी थी (विष्णु. ४.३.१२इंद्रसेना, एवं पुत्र का नाम दम था (मार्क. १३०.२)।। १३; भा. ९.७.२)। किंतु यह पुरुकुत्सपुत्र त्रसंदस्यु की वानप्रस्थाश्रम में रहते हुए इस राजा का वपुष्मत् ने | पत्नी थी, ऐसा भी निर्देश कई ग्रंथों में प्राप्त है। वध किया। इसकी मृत्यु के बाद, इसकी पत्नी इंद्रसेना ४, एक नदी । एक बार, इक्ष्वाकु कुलोत्पन्न दुर्योधन सती गयी (मार्क. १३१)।
राजा से विवाह करने की इच्छा इसे हुई । तब मनुष्य नरोत्तम-एक ब्राह्मण । यह अपने मातापितरों का रूप धारण कर इसने उससे विवाह किया (म. अनादर करता था। फिर भी तीर्थयात्रादिकों के योग से | अनु. २.१८)। दुर्योधन राजा से, इसे सुदर्शना नामक
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