Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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नाग
प्राचीन चरित्रकोश
नांग
को कश्यप ऋषि से एक सहस्र सर्प पैदा हुएँ । उन पुत्रों से सर्पसत्र में दग्ध हुएँ नाग--जनमेजय के सर्पसत्र में ही आगे चल कर, नागजाति के लोग निर्माण हुएँ। दग्ध हुएँ, नाग वंश एवं नागों की विस्तृत नामावलि . ___ कश्यप के नागपुत्रों में निम्नलिखित नाग प्रमुख थे:- | 'महाभारत' में दी गयी है। उन में से प्रमुख नागवंश अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापन, शंख | एवं नागों के नाम इस प्रकार है। तथा कलिक।
वासुकिवंश-कोटिक, मानस, पूर्ण, सह, पैल, ___एक बार ये प्रजा को बहुत कष्ट देने लगे। फिर ब्रह्म | हलीसक, पिच्छिल, कोणप, चक्र, कोणवेग, प्रकालन, देव ने इन्हें शाप दिया, 'जनमेजय के सर्पसन के द्वारा,
हिरण्यावाह, शरण, कक्षक, कालदन्तक, (म. आ. ५२. एवं तुम्हारे सापत्न बंधु गरुड के द्वारा तुम्हारा नाश होगा। शरण आने पर ब्रह्मदेव ने इन्हें उःशाप दिया, एवं एक
___ तक्षकवंश-पुच्छण्डक, मण्डलक, पिण्डभेतृ, रमेणक, सुरक्षित स्थान इनके लिये नियुक्त कर, वहाँ रहने के लिये
| उच्छिख, सुरस, द्रङ्ग, बलहेड, विरोहण, शिली शिलकर, इन्हे कहा। वहाँ 'नागतीर्थ निर्माण हआ। जिस दिन ये | मूक, सुकुमार, प्रवपन, मुद्गर, शशरोमन् , सुमनस् , वेगब्रह्मदेव से मिलने गये, वह सावन माह के पंचमी का दिन | वाहन (म. आ. ५२.७-९)। था । नागमुक्ति का दिन होने के कारण, वह दिन 'नागपंचमी'
| ऐरावतवंश-पारिवात, पारिमात्र, पाण्डर, हरिण, . नाम से प्रसिद्ध हुआ (पन. सु. ३१)।
कृश, विहंग, शरभ, मोद, प्रमोद, संहतांङ्ग, (म. आ..
५२.१०)। प्रमुख नागपुत्रों के बारे में पुराणों में प्राप्त जानकारी
___ कौरव्यवंश--ऐण्डिल, कुण्डल, मुण्ड, वेणिस्कन्ध, 'परिपत्रक' के रूप में, नीचे दी गई है :--
कुमारक, बाहुक, शृङ्गवेग, धूर्तक, पात, पातर (म. आ. . ५२.१२)।
धृतराष्ट्रवंश--शकुकर्ण, पिङ्गलक, कुठारमुख; पेचक, ' पूर्णाङ्गद, पूर्णमुख, प्रहस, शकुनि, हरि, अंमाठक, कोमठक, श्वसन, मानव, वट, भैरव, मुण्डवेगाङ्ग, पिशङ्ग, ' उद्रपारथ, ऋषभ, वेगवत् , पिण्डारक, महाहनु, रक्ताङ्ग, सर्वसारङ्ग, समृद्ध, पाट, राक्षस, वराहक, वारणक, सुमित्र, चित्रवेदिक, पराशर, तरुणक, मणिस्कन्ध, आरुणि (म. आ. ५२.१४-१७)।
निवासस्थान-नागों के तीन प्रमुख निवासस्थानों का निर्देश महाभारत में प्राप्त है। वे स्थान इस प्रकार
दिशा चिह्न
दृष्टि
पद्म उत्पल कमल पन शूल
छत्र दक्षिण स्वस्तिक ईशान्य अर्धचन्द्र आग्नेय पूर्व नैऋत्य पश्चिम
वायव्य बायीं ओर
दायी ओर आरक्त बार बार निश्चेष्टित उत्तर
सामने सर्वत्र (कपिल) चंचल
नीचे कृष्ण पीछे आरक्त पीत कृष्ण
पीत ब्राह्मण शुक्ल क्षत्रिय वैश्य शूद्र शूद्र वैश्य
क्षत्रिय कुलिक (कंबल ) ब्राह्मण शुक्ल
अनंत __ वासुकि
पद्म (नाम) तक्षक कर्कोटक शंखपाल
रंग
(१) नागलोक-यह नागों का प्रमुख निवासस्थान था (म. उ. ९७.१)। नागराज वासुकि इस देश के. राजा थे । इस लोक की स्थिति भूतल से हजारो योजन दूर थी (म. आश्व.५७.३३)। यह लोक सहस्त्र योजन विस्तृत था।
(२) नागधन्वातीर्थ-सरस्वती नदी के तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ नागराज वासुकि का निवासस्थान था। यही उसको नागराज के पद पर अभिषेक हुआ था।
(३) नागपुर-नैमिषारण्य में गोमती नदी के तट
पर स्थित एक नगर, जहाँ पद्मनाभ नामक नाग का इन नागों के दंश आदि की विस्तृत जानकारी | निवासस्थान था (म. शां. ३४३.२-४)। भविष्य पुराण में दी गयी है ( भवि. ब्राह्म.३३-३६)। २. मथुरा का एक राजवंश (भोगिन् देखिये)।
वर्ण
महापद्म
नाम