Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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नारद
प्राचीन चरित्रकोश
नारद
कलियुग में एक बार पुष्करक्षेत्र में ऋषिओं का सत्र | फिर फजिहत हो कर, नारद कृष्ण की शरण में गया चालू था। वहाँ अनेक प्रकार की चर्चाएँ चल रही थीं। (भा. १०.५९.३३-४५)। उस में कलियुग के बारे में चर्चा करते वक्त एक
एक बार श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी के पास बैठा ऋषि ने कहा, 'अन्य कौन से ही युग से कलियुग अच्छा
था। उस वक्त नारद ने प्रकट हो कर, उसे स्वर्ग का पारिहै, क्यों कि उसमें फलप्राप्ति शीघ्र होती है।' इतने में
जातक पुष्प दिया। श्रीकृष्ण ने उसे रुक्मिणी को दिया । नारद एक हाथ में शिश्न, तथा एक हाथ में जबान पकड़
इस कारण सत्यभामा तथा कृष्ण में झगड़ा हो गया (ह. कर वहाँ आया। इसने ऋषियों से कहा, 'ये दो इन्द्रिय
वं. २.६५-७३; विष्णु. ५.३०)। 'पति का दान करने कलियुग में अनिवार्य होती है । इसलिये इस पाखंड
पर वही पति जन्मजन्मान्तर में प्राप्त होता है', आदि प्रचुर भारत का त्याग कर आप अन्यत्र चलें'। यह
कह कर, इसने सत्यभामा से स्वयं ही श्रीकृष्ण का दान सुनते ही ऋषियों ने सत्र समाप्त कर दिया, तथा वे वहाँ |
ले लिया। पश्चात् कृष्ण तथा पारिजातक वृक्ष के भार का से चले गये ( स्कन्द. २. ७. २२)। जिस समय ब्रह्मदेव
सुवर्ण ले कर, इसने उसे लौटा दिया (पद्म. उ.८८)। ने सत्र किया, उस समय . उपस्थित ब्रह्मगणों में नारद
पार्वती का विवाह शंकर के साथ करने की सलाह एक था (पद्म. स. ३४)। इसने कोटितीर्थ, जयादित्य,
नारद ने हिमालय को दी थी (पद्म. स. ४३)। नवदेवी, भट्टादित्य इ. तीर्थों की स्थापना की (स्कन्द. १. ४३.-४७)।
इंद्वसभा में--एक बार इन्द्र अपनी सभा में अप्सराओं ___ कृष्णकथाओं में नारद-एक बार नारद नंद के घर
के साथ बैठा था। उस वक्त नारद वहाँ गया। उत्थापन गया। वहाँ इसने सोचा कि, कृष्ण जब प्रत्यक्ष विष्णु है,
| के द्वारा योग्य मान देने के बाद, इन्द्र ने नारद से पूछा, तो उसकी पत्नी लक्ष्मी ने भी यहीं कहीं अवतार अवश्य
'मैं किस अप्सरा को नृत्य करने का आदेश दूँ'? नारद लिया होगा। इसी विचार से इसने नंद के परिवार में
ने कहा 'गुणरूप में जो खुद को श्रेष्ठ समझती हो वही नृत्य .लक्ष्मी का तलाश करना प्रारंभ किया। पश्चात् इसने देखा
करें। तब मैं श्रेष्ठ, मैं श्रेष्ठ कह कर सारी अप्सराएँ आपस . कि, भानु नामक गोप की अंधी, लूली, एवं बहरी कन्या
में झगड़ने लगी। यह देख इन्द्र ने उन्हें कहा, 'इसका
निर्णय नारद ही कर देंगे' । नारद से पूछा जाते ही इसने बन कर, लक्ष्मी ने नंदपरिवार में जन्म लिया है (पन.
कहा, 'तप करनेवाले दुर्वासस् को जो मोहित कर सके उसे . पा. ७१)।
ही मैं श्रेष्ठ कहूँगा' । पश्चात् वपु नामक एक अप्सरा ही कृष्णजन्म के समय, उसके पिता वसुदेव एवं माता
| इस काम के लिये तैयार हुई (मार्क. १.३०-४७)। देवकी मथुरा का राजा कंस के कारागार में कैद किये
इनके अतिरिक्त अनेक पौराणिक व्यक्तिओं के साथ • गये थे। उस समय, वसुदेव एवं देवकी के आँठवे पुत्र
नारद का संबंध आता है (नलकूबर, प्रह्लाद, रुद्रकेतु, शेष • से अपने को धोखा है, यह समझ कर, कारागार में पैदा
तथा वृन्दा देखिये)। हुएँ उनके पहले छः पुत्रों को कंस छोड़ देना चाहता था। किंतु कंस की पापराशि बढ़ाने के हेतु, उन सारे पुत्रों का
धर्मशास्त्रकार-धर्मव्यवहार पर नारद के 'लघुवध करने की प्रेरणा नारद ने कंसराजा को दी । उस
नारदीय ' एवं 'बृहन्नारदीय' ऐसे दो ग्रंथ उपलब्ध हैं। उपदेश के अनुसार, कंस ने देवकी के छः पुत्रों का,
मनु तथा नारद के मतों में काफी साम्य है। याज्ञवल्क्य जन्मते ही वध किया (भा. १.१.६४)।
तथा पराशर ने प्राचीन धर्मशास्त्रकारों में नारद का उल्लेख नरकासुर के बंदीखाने से मुक्त किये सोलह हजार
नहीं किया है। किंतु विश्वरूप ने, वृद्धयाज्ञवल्क्य का स्त्रियों से, कृष्ण ने भिन्न मिन्न मंडयों में एक ही मुहूर्त पर
(याज्ञ. १.४-५) एक श्लोक उद्धृत कर, नारद को दस
धर्मशास्त्रकारों में से आद्य धर्मशास्त्रकार मान लिया है। विवाह किया। यह चमत्कृतिजनक वृत्त सुन कर नारद को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। इस वार्ता की सत्यता अजमाने
विश्वरूप ने अन्यत्र भी इसका उल्लेख अनेक बार किया के लिये, यह कृष्ण के घर स्वयं चला आया, एवं हर
है (याज्ञ. २.१९०; १९६; २२६; ३.२५२)। एक कृष्णपत्नी की कोठी में जा कर जाँच लेने लगा। वहाँ मेधातिथि ने नारद का एक गद्य उद्धरण ले कर, इसका इसने देखा कि, अपने हरएक पत्नी के कोठी में, कृष्ण | अनेक बार उल्लेख किया है। अग्निपुराण में नारदस्मृति उपस्थित है, एवं किसी न किसी कार्य में वह मन है।। का काफी भाग आया है। 'स्मृतिचन्द्रिका', 'हेमाद्रि'
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