Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
नील
प्राचीन चरित्रकोश
एवं दक्षिण विभागों में पुनः एक बार बाँट दिया गया | ध्वज स्वयं युद्धभूमि में प्रविष्ट हुआ, एवं उसका अर्जुन से (द्रुपद एवं द्रोण देखिये)।
घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ। ७. दक्षिणापथ में से माहिष्मती नगरी का राजा, एवं अपने ससुर नीलध्वज की सहायता के लिये, अग्नि दुर्योधनपक्ष का महान योद्धा । यह क्रोधवश नामक दैत्य | युद्धभूमी में प्रविष्ट हुआ, एवं वह अर्जुन की सेना को दग्ध के अंश से उत्पन्न हुआ था। यह द्रौपदीस्वयंवर के लिये | करने लगा। अर्जुन अग्नि की शरण में गया। फिर अग्नि गया था (म. आ. १७७.१०)। संभवतः 'नीलध्वज' ने नीलध्वज एवं अर्जन इन दोनों के बीच में मित्रत्व इसीका ही नामांतर था (नीलध्वज देखिये)।
स्थापित किया। बाद में, नीलध्वज अर्जुन की सहायता के पांडवों के राजसूय यज्ञ के समय, सहदेव द्वारा किये गये | लिये, उसके साथ दक्षिण दिग्विजय में शामिल हुआ (जै.. दक्षिण दिग्विजय में, इसका उससे भीषण युद्ध हुआ था | अ. १४.१४)। (म. स. २८.१८)। उस युद्ध के समय, अग्निदेव ने इसे |
स। नीलपराशर--पराशरकुलोत्पन्न एक ऋषिगण (पराशर
की सहायता की थी। अग्नि को इसने अपनी कन्या प्रदान की | टेनिस थी। उस कारण, अग्नि ने इसकी सेना को अभयदान
नीलरत्न--राम के अश्वमेध यज्ञ के समय, अश्व के दिया था। फिर भी सहदेव ने इसे पराजित किया, एवं यह सहदेव की शरण में गया (म. स. २८.३६-३७)।
संरक्षणार्थ शत्रुघ्न के साथ गया हुआ एक वीर (पद्म.
पा. ११)। ___ इसने नर्मदा नदी को भार्यारूप में पा कर, उसके गर्भ से सुदर्शना नामक कन्या उत्पन्न की। उसे अग्नि चाहने
नीला--कपिल तथा केशिनी की कन्या । इसके लगा। फिर इसने उन दोनों का विवाह करा दिया । उन्हें
द्वारा आलंबेय ने 'नैल' उत्पन्न किये। इसकी विकचा सुदर्शन नामक पुत्र हुआ (म. अनु. २)।
नामक कन्या थी (ब्रह्मांड. ३.७.१४७-१४८)। ___भारतीययुद्ध में, यह दुर्योधन के पक्ष में शामिल था
२. (सत्या ५. देखिये)। (म. उ. १९.२३)। यह कौरवों के पक्ष का एक
नीलिनी--अजमीढ़ राजा की एक पत्नी।। ख्यातिप्राप्त रथी था (म. उ. १६३.४)।
नीली--अजमीढ़ राजा की पत्नी। इसके दुष्यन्त ८. (सो.) एक राजा एवं यदुपुत्रों में से तीसरा पुत्र । तथा परमेष्ठिन् नामक दो पुत्र थे (म. आ. ८९.२८)। ९. भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
नीवार--वेदकालीन एक जंगली जाति (का. सं. १०. भृगुकुल का एक ब्रह्मर्षि ।
१२.४; मै. सं. ३.४.१०; श. ब्रा. ५.१.४.१४)। नीलकंठ--शिवजी का एक नामांतर । समुद्र से निकला नग' ऐक्ष्वाक'--(सू. इ.) एक प्राचीन दानी हुआ 'हलाहल विष' शिवजी ने प्राशन किया। इसीसे राजा । भागवत एवं महाभारत के अनुसार, यह इक्ष्वाकु जल कर उनके कंठ का वर्ण नीला हो गया । इसलिये उन्हे | के शतपुत्रों में से एक था ( म. स. ८.८) । इक्ष्वाकु के यह नाम प्राप्त हुआ (भा. ८.७)।
४८ पुत्रों को दक्षिणापथ में राज्य प्राप्त हुआ था। उनमें शिवजी एवं नारायण के बीच में हुये युद्ध में, नारायण | से नृग का राज्य पयोष्णी (तापी) नदी के तट पर था ने शिवजी का गला घोंट दिया। इस कारण उसका गला | (म. व. ८६.४-६)। नीला पड़ गया, ऐसी भी कथा प्राप्त है (नारायण देखिये)। नग ने पयोष्णी नदी के किनारे वाराहतीर्थ में यज्ञ
नीलध्वज--हस्तिनापुर के दक्षिण में नर्मदा नदी के किया था । उस समय इसने एक कोटि के उपर किनारे स्थित माहिष्मती नगरी का राजा (जै. अ. १४. | गौ का दान किया। उनमें से एक गौ गलती से पुनः १४)। महाभारत में निर्दिष्ट नील राजा एवं यह दोनों | एक बार राजा के गोसमूह में वापस आयी, एवं दूसरे संभवतः एक ही होगे (नील ७, देखिये)।
ब्राहाण को पुनः दान में दी गयी । इससे उन दो ब्राह्मणों _ 'जैमिनि अश्वमेध' के अनुसार, इसकी पत्नी का नाम में झगड़ा शुरू हो कर, वे दोनों राजा के पास फैसले के सुनंदा, एवं पुत्र का नाम प्रवीर था। पांडवों के द्वारा छोड़ा | लिये आये। गया अश्वमेधीय अश्व प्रवीर ने पकड़ लिया, एवं अश्व- उस झगड़े का फैसला देने में तृग को देर हुई। रक्षणार्थ नियुक्त किये वृषकेतु को पराजित किया। किंतु | उस कारण, उन ब्राह्मणों ने इसे शाप दिया, 'तुम पश्चात् अनुशाल्व ने प्रवीर को पराजित किया । फिर नील- | गिरगिट बनोंगे' । राजा ने प्रार्थना कर 'उःशाप' माँगा ।
३७४
II