Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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नल
प्राचीन चरित्रकोश
नल
अक्षहृदय विद्या प्राप्त होते ही, कलिपुरुष नल के के कारण मुझे कुछ शंका हो रही है । अगर आपकी 'शरीर से बाहर निकला । उसे देख कर जब नल उसे शाप आज्ञा मिले तो उसे बुला कर, मैं कुछ परीक्षा ले लूँ'। देने के लिये उद्युक्त हुआ, तब कलि ने इसकी प्रार्थना | माता की आज्ञा प्राप्त होते ही उसने बाहुक से कहा, करते हुए कहा " हे पुण्यश्लोक नल! तुम मुझे शाप मत | 'प्रतिव्रता तथा निरपराध स्त्री को अरण्य में अकेली छोड़ दो। कर्कोटक नाग के विष से मेरा शरीर दग्ध हो गया | जानेवाला पुरुष पृथ्वी पर नल राजा के सिवा अन्य है। दमयंती के शाप से भी मैं पीड़ित हूँ। आयदा से, कोई नहीं है। यह सुनते ही बाहुक ने कहा, 'पति कर्कोटक, दमयंती, नल तथा ऋतुपर्ण का नामसंकीर्तन | सदाचारी तथा जीवित होते हुए भी, स्वयंवर करनेवाली करनेवालों को कलि की बाधा न होगी (म. व. ७८)। स्त्री तुम्हारे सिवा अन्य कोई नहीं है। फिर नल एवं इतना कहते हुए कह बेड़ेलि के वृक्ष में प्रविष्ट हुआ। इस दमयंती ने एक दूसरी को पहचान लिया । दमयंती ने 'कलिप्रवेश' के कारण, बेहड़े (बिभीतक) का वृक्ष अपवित्र | कहा, 'यह सारा नाटक तुम्हे ढूँढ़ने के लिये ही मैंने माना जाने लगा (म. व. ७०.३६)।
| रचाया था । दूसरी बार स्वयंवर करने की ही लालसा मुझे सायंकाल होने के पहले ही, बाहक ने रथ कुंडिनपुर होती, तो क्या मैं अन्य राजाओं को निमंत्रित नहीं करती?' पहुँचाया 1 किंतु वहाँ स्वयंवरसमारोह का कुछ भी इतना कह कर वह स्तब्ध हो गई। इतने में वायु द्वारा चिह्न मौजुद नहीं था। इस कारण, ऋतुपर्ण मन ही मन आकाशवाणी हुई 'दमयंती निर्दोष है । तुम उसका स्वीकार शरमा गया, एवं अपना मुँह बचाने के लिये कहा,
करो'। उसे सुनते ही नल ने कर्कोटक नाग का स्मरण 'यूँ ही मिलने के लिये मैं आया हूँ' । आये हुएँ लोगों | किया एवं उसने दिये दिव्य वस्त्र परिधान कर लिया। उस में दमयंती को नल नहीं दिखा । किंतु ऋतुपर्ण के त्वरित वस्त्र के कारण, नल का कुरूपत्व नष्ट हो कर, वह सुस्वरूप आगमन का कारण नल ही है ऐसा विश्वास उसे हो गया,
दिखने लगा। फिर नल ने दमयंती तथा पुत्रों का आलिंगन तथा जादा पूँछताछ के लिये, उसने अपने केशिनी नामक | किया (म. व. ७३-७४)। दासी को बाहुक के पास भेज दिया। उस दासी ने बड़े ही
नल एवं दमयंती का मीलन होने के पश्चात् भीम: चातुर्य से, बाहुक के साथ दमयंती के बारे में प्रश्नोत्तर
राजा ने उनको एक माह तक अपने पास रख लिया। तब किये। फिर नल का हृदय दुख से भर आया, तथा वह रुदन . करने लगा। यह सब वृत्त केशिनी ने दमयंती को बताया
बाद में दमयंती एवं पुत्रों को साथ ले कर, नल राजा
निषध देश की ओर मार्गस्थ हुआ । वहाँ पहुँचते ही नल (म. व. ७१-७२)।
ने पुष्कर को बुलावा भेजा, तथा उससे द्यूत खेल कर अपना ____ बाद में दमयंती ने केशिनी को बाहुक की हलचल पर
राज्य हासिल किया (म. व. ७७)। मृत्यु के पश्चात् , सक्त नजर रखने के लिये कहा । बाहुक की एक बार
नल यमसभा में उपस्थित हो कर, यम की उपासना करने परीक्षा लेने के लिये, दमयंती ने अग्नि तथा उदक न देते
लगा (म. स. ८.१०)। भारतीय युद्ध के समय, यह हुए अन्य पाकसाहित्य दिलाया। वह ले कर एवं जल
देवराज इंद्र के विमान में बैठ कर, युद्ध देखने आया था तथा अग्नि स्वयं उत्पन्न कर बाहुक ने पाकसिद्धि की। उसी
(म. वि. ५१.१०)। प्रकार बाहुक को अवगत 'पुष्पविद्या' (मसलने पर भी पुष्षों का न कुम्हलाना) तथा आकृति विद्या ('छोटी | | पूर्वजन्म-पूर्व जन्म में, नल राजा गौड देश के सीमा पर चीज बडी बनाना') आदि बातें केशिनी ने स्वयं देखी स्थित एक देश के पिप्पल नामक नगर में, एक वैश्य था। (म. व. ७३.९, १६)।
संसार से विरक्त हो, यह एक बार अरण्य में चला गया। बाद में दमयंती ने अपने पुत्र एवं पुत्री को दासी के | वहाँ एक ऋषि के उपदेशानुसार, 'गणेशव्रत' करने के साथ बाइक के पास भेज दिये । नल अपना शोक संयमित कारण यह अगले जन्म में नल राजा बन गया (गणेश. न कर सका। बाद में ही बाहुक ने फिर दासी से कहा | २.५२)। इसके ही पहले के जन्म में, नल एवं दमयंती 'मेरे भी पुत्र ऐसे होने के कारण मुझे उनकी याद आयी आहुक एवं आहुका नामक भील तथा भीलनी थे । शिव(म. व. ७३.२६-२७)।
प्रसाद से उन्हें राजकुल में जन्म प्राप्त हुआ। शंकर ने फिर दमयंती ने अपनी माता के पास संदेश भिजवाया, हंस का अवतार ले कर उन्हें सहायता दी थी (यतिनाथ 'यद्यपि नल के अधिकांश चिह्न बाहुक में हैं, तथापि रूप | देखिये)। प्रा. च. ४५]
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