Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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दुर्योधन
प्राचीन चरित्रकोश
दुर्योधन
चित्रांगद की कन्या का, स्वयंवर में हरण किया (म. शां. घोषयात्रा--एकबार, पांडव द्वैतवन में हैं, यह ज्ञात ४. १२-१३)। काशिराज की कन्या दुर्योधन की स्त्री थी होते ही, घोषयात्रा के निमित्त यह वहाँ गया। इसके (म. आ. परि. १. क्र. १०७.पंक्ति १)। इसकी पत्नी | साथ इसके अनुयायी कर्ण, दुःशासन आदि थे। गोधन का नाम भानुमती था (स्कंद, ६. ७३-७४)। यह के अवलोकन के बाद, यह द्वैतवन के समीप, सरोवर में बलराम का भी दामाद था (मार्क. ६.३)। इसका पुत्र क्रीड़ा करने के लिये गया। उस वन में, पांडवों के संरक्षण लक्ष्मण तथा कन्या लक्ष्मणा ।।
के लिये, इन्द्र ने चित्रसेन गंधर्व को रखा था। चित्रसेन अर्धराज्य-प्रदान-धृतराष्ट्र ने पांडवों को आधा राज्य वही सरोवर में अपनी स्त्रियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था। दे कर इन्द्रप्रस्थ में रखा। वहाँ उन्होंने अगणित संपत्ति | उसने दुर्योधन से वहाँ आने के लिये मनाई की । दुर्योधन प्राप्त की । युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया । उसमें दुर्योधन | ने उसे ही वहाँ से चले जाने के लिये कहा । इससे क्रोधित धृतराष्ट्रसहित आया था । दुर्योधन को कोशागार का । | हो कर उन दोनों में युद्ध हुआ। उसमें चित्रसेन ने कर्ण को अधिकार दिया था। पांडा फजीहत हो इस हेतु से, | भगा दिया तथा दुर्योधन को बद्ध कर दिया। इसने कोशागार में से अपरिमित द्रव्य खर्च किया परंतु एक सैनिक के द्वारा यह वृत्त पांडवों को मालूम हुआ। द्रव्य की कमी नहीं पड़ी । इसके अतिरिक्त पांडवों की | तब भीम को बड़ा अच्छा लगा। परंतु युधिष्ठिर ने पांडवों . मयसभा देख कर, इसे पांडवों के तथा उनकी संपत्ति के | को उपदेश दे कर दुर्योधन को छुड़वाया । अर्जुन ने चित्रसेन, प्रति, बड़ी ही ईर्ष्या उत्पन्न हुई (म. आ. १२९. ९- | का पराभव किया तथा दुर्योधन को छुड़ाया। धर्मराज को . १०)। मयसभा की रचना में पानी की जगह जमीन, | वंदन कर, मानहानि से क्रोधित हो कर, यह हस्तिनापुर तथा जमीन की जगह पानी दीखता था। इससे इसकी | वापस गया। फजीहत हो कर, अन्य स्त्रियों के साथ द्रौपदी भी हँसी। हस्तिनापुर वापस आते ही, इसके मित्र कर्ण ने इसका इससे इसे अत्यंत विषाद हुआ। यह हस्तिनापुर | अभिनंदन किया। किंतु दुर्योधन ने उसे सारी घटना. चला गया (म. स. परि. १. क्र. ३२. पंक्ति ११, सुनाई तथा कहा कि, 'यह मुक्तता अर्जुन द्वारा हो गई। अध्याय ४३)। पांडवों की संपत्ति देख कर दुर्योधन को है।' इसीलिये प्रायोपवेशन कर, प्राणत्याग करने का . बुरा लगा । तब धृतराष्ट्र ने इसे शील का महत्त्व निवेदित | निश्चय इसने किया । अपने भाई दुःशासन को बुला कर, किया (म. शां. १२४)। परंतु उससे इसे कुछ फायदा शकुनि तथा कर्ण की सहायता से, राज्य करने के लिये नहीं हुआ।
इसने उसे कहा । कर्ण तथा शकुनि ने इसे बहुत समझाया चूतक्रीडा-पांडवों की संपत्ति हरण करने के हेतु से, परंतु इसका निश्चय नहीं बदला । इसने वल्कल परिधान इसने कपटात में पारंगत शकुनि मामा की अनुमति से, | किये तथा दर्भासन पर यह बैठ गया। 'आथर्व मंत्र' युधिष्ठिर को द्यूत खेलने के लिये आवाहन किया । द्यूत में कह कर इसने होमहवन शुरू किया। इतने में इसने एक पांडवों का सर्वस्व इसने जीत लिया। द्रोपदी की इसने | स्वप्न देखा। उस स्वप्न में इसे दिखा कि, इसका भरी सभा में अवहेलना करवाई। इसने भीष्म-द्रोण | सारा कौरवपरिवार एवं अनुयायी दैत्य ही है। पश्चात् आदि के प्रतिकार की भी पर्वाह नहीं की। यत में हार | एक राक्षसी की सहायता से, यह पाताल में गया। वहाँ जाने के कारण, पांडवों को बारह वर्ष वनवास तथा एक | दैत्यों ने आशीर्वाद दे कर इसे वापस भेज दिया। वर्ष अज्ञातवास का स्वीकार करना पड़ा । इसके अतिरिक्त हस्तिनापुर आने के पश्चात् , भीष्म ने इसे पांडवों से सख्य अज्ञातवास में प्रकट होने पर, पुनः बारह वर्षों तक वनवास | करने के लिये कहा; परंतु इसने उसका उपहास किया करना पडेगा, यह शर्त भी उन पर डाली गयी। इस | (म. व. २३७-२४१)। तरह, पांडवों को वनवास में भेज कर, यह उनके राज्य | वैष्णवयज्ञ-इसके बाद, दर्योधन ने कौरवों की ओर का उपभोग लेने लगा।
से, कर्ण को दिग्विजय के लिये भेजा। उसके आने के बाद, पांडवों के वनवास गमन के पश्चात् , कीर्तिप्राप्ति की दुर्योधन ने राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया। परंतु इच्छा से, इसने नीति से राज्य किया। किंतु पांडव कहाँ पुरोहितों ने कहा, 'यह यज्ञ युधिष्ठिर द्वारा किया गया है, हैं, क्या करते हैं आदि के बारे में गुप्त खोज यह हमेशा | अतः तुम न कर सकोगे'। तब दुर्योधन ने 'वैष्णवयज्ञ' करता रहता था।
| किया तथा खिजलाने के हेतू, पांडवों को यज्ञ का निमंत्रण २८२