Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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धर्म
धर्म- संपूर्ण लोगों को सुख देनेवाली एक देवता एवं ब्रह्माजी का मानसपुत्र । यह स्वायंभुव मन्वंतर में ब्रह्माजी के दाहिने स्तन से उत्पन्न हुआ (म. आ. ६०. ३०; मस्य. ३.१०; भा. ३.१२.२५ ) । यह एक प्रजापति था, एवं बुद्धि से उत्पन्न हुआ था । इसे भगवान् सूर्य का भी पुत्र कहा गया है (म. आ. ८१. ८९ ) । इसके वृध, यम आदि नामांतर उपलब्ध हैं ।
दक्ष प्रजापति की दस पुत्रियाँ इसकी पत्नी थी ( म. आ. ६०.१२-१४) । उनके नामः कीर्ति, लक्ष्मी, धृति, मेधा, पुष्टि, श्रद्धा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा एवं मति । आठो वसु इसके पुत्र थे (म. आ. ६०.१७ ) । इसके तीन श्रेष्ठ पुत्र थेः शम, काम, हर्ष ( म. आ. ६०.३१ ) । इसे सत्या नामक और एक कन्या भी थी। वह इसने शंयु नामक अभि को दी ( म.व. २०९.४) ।
प्राचीन चरित्रकोश
भागवत एवं पुराणों में, दक्ष प्रजापति की तेरह कन्याएँ इसे भार्यारूप में दी गयी थी, ऐसा निर्देश है (भा. ४. १ ब्रह्मांड. २.९.५० ) । उनके नामः -श्रद्धा, मैत्री, दया, शांति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ही, एवं मूर्ति । इनमें से प्रथम बारह स्त्रियों से इसे बारह पुत्र हुएँ। उनके क्रमशः नामः -- शुभ, प्रसाद, अभय, मुख, मुद, स्मय, योग, दर्प, अर्थ, स्मृति, क्षेम तथा प्रश्रय | तेरहवे मूर्ति नामक स्त्री से इसे नर-नारायण ऋषि पुत्ररूप में हुएँ।
इसीके अंश से विदुर एवं युधिष्ठिर पैदा हुए थे ( म. आ. ६१.८४१ ११०६ म. व. २९८८२१) । इसने यक्षरूप से नकुल, सहदेव, अर्जुन एवं भीमसेन को मूर्च्छित किया (म.व. २९८.६ ) । पश्चात् युधिष्ठिर के साथ इसके प्रश्नोत्तर हो गये (म. व. २९८.६ - २५ ) । इसने युधिष्ठिर से पूछा, ' धर्म के पास पहुँचने के द्वार कौन से है' बुधिष्ठिर ने उत्तर दिया, अहिंसा, समता, शान्ति दया, एवं अमत्सर ये धर्म के पास पहुँचने के द्वार हैं । युधिष्ठिर के उस उत्तर से प्रसन्न हो कर, यह धर्मरूप में प्रकट हुआ । इसने युधिष्ठिर को वरदान दिया, 'अज्ञातवास में कौरवों से तुम सुरक्षित रहोंगे ' ( म. व. २९८.२५ ) । विदेह का राजा जनक से भी इसका संवाद हुआ था ( म. आश्व. ३२ ) ।
धर्म
२. भागवत में पुनः दूसरे स्थान पर, धर्म की पत्नी एवं पुत्रपरिवार के बारे में अन्य जानकारी दी गई है। यहाँ लिखा है कि, धर्म को भानु, लंबा, कुकुर, यामी (जामि ) विश्वा, साध्या, मरुत्वती, वसु, मुहूर्ता तथा संकल्पा नामक दस पत्नियाँ थी। उनसे इसे देव ऋषभ, विद्योत, संकट, स्वर्ग, विवेदेव साध्यगण, मरुत्वान्, जयंत, मुहूतांम मानी, देवगण, संकराय, द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अत्रि, दोष । वसु तथा विभावसु नामक पुत्र हुएँ (भा. ६.६.४-१०; मत्स्य ५.२०३ विष्णु. २.१५, १०६ - ११० ) । अन्य कई जगह, कुकुप् की जगह अरुंधती नाम प्राप्त है (ब्रह्मांड. ३.३.१.४४; वसु देखिये ) ।
यह जानकारी उस समय की है, जब पहले का धर्म महादेव के शाप से मृत हो गया था, एवं वैवस्वत मन्वंतर में ब्रह्मदेव के द्वारा अन्य धर्म उत्पन्न किया गया था. ( वायु. ४) । इससे जाहिर होता है कि, धर्म एवं उसका परिवार प्रत्येक युग में नया उत्पन्न हो कर उसी युग में लय भी होता था युगभेद के अनुसार, जानकारी में । फर्क होता है । असंगति भी उसी कारण प्रतीत होती है । पुराणों में भी यह कहा गया है ( विष्णुः १.१५.८४९ . १०६ - ११०; पितर देखिये ) |
३. यम का नाम (मा. ९.२२.२७ ) ।
४. ( सो. दुधु.) गांधार का पुत्र । इसका पुत्र धृत । ५. (सो. यंदु. वृष्णि. ) लिंग के मत में अक्रूर
पुत्र |
६. (सो. यदु क्रोड) भागवतमत में युवा का पुत्र (तम देखिये) ।
७. (सो. यदु, सह.) हैहय राजा का पुत्र । इसे धर्मतत्व तथा धर्मनेत्र भी कहा गया है।
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८. (सो. क्षत्र. ) वायु के मत में दीर्घतमस् का पुत्र | ९. एक ब्रह्मर्षि। इसकी पत्नी वृत्ति ( म.उ. ११७. १५, ११५.४६१* ) ।
१०. उत्तम मन्वन्तर के सत्यसेन अवतार का पिता । इसकी पत्नी सूनृता ( भा. ८.१.२५) ।
११. चाक्षुष मन्वन्तर का अवतार । इसके पुत्र नरनारायण (दे. भा. ४.१६ ) ।
पांडवों के महाप्रस्थान के समय, कुत्ते का रूप धारण कर, धर्म उनके पीछे-पीछे गया था (म. महाप्रस्थान. २.१२) । विदूर एवं युधिदिर के मृत्यु के पश्चात् वे दोनों धर्म में ही विलीन हो गये ( म. स्वर्गा. ५.१९ ) ।
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१२. सुतप देवों में से एक ।
१३. ब्रह्मदेव के पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ का सदस्य (पद्म. सु. २४ ) |
१४. एक धार्मिक वैश्य । यह ग्राहकों से अत्यंत