Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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धर्मद्रवा
प्राचीन चरित्रकोश
धर्मवल्लभ
कन्या थी।
यह आकाश से हेमकूट पर्वत पर गिरी, तब शंकर ने | धर्मभृत-दंडकारण्यवासी एक ऋषि । पंचाप्सर इसे जटा में धारण किया। भगीरथ द्वारा ऐरावत की सरोवर में की जानकारी इसने राम को बतायी, एवं उस प्रार्थना की जाने पर, उसने अपने दाँतों से हेमकूट पर्वत सरोवर में से आनेवाले चमत्कृतिजनक आवाज का कारण में तीन छेद खोद डाले। उनमें से गंगा बहने लगी। उस | भी इसने उसे बताया (वा. रा. अर. ११)। कारण इसे 'त्रिस्त्रोता' भी कहते हैं (पद्म. सु.६२)। २. मत्स्यमत में अऋर का तथा वायुमत में श्वफल्क धर्मध्वज--रथध्वज राजा का पुत्र । इसे तुलसी नामक | का पुत्र ।
धर्ममूर्ति-बृहत्कल्प का एक राजा । इसकी पत्नी २. (सू. निमि.) विदेह देश का राजा। भागवतमत | भानुमती । उसके सिवा इसे १०००० स्त्रियाँ थी । इसका में यह कुशध्वज जनक का पुत्र था। इसे कृतध्वज तथा | कुलगुरु वसिष्ठ था । पूर्वजन्म में एक वेश्या के घर में मितध्वज नामक दो पुत्र थे। यह पंचशिख का शिष्य था | स्वर्णकार का जन्म इसे मिला था । इसके द्वारा (म. शां. ३०८, ४-२४)। यही जनदेव होगा। महा- बनाया गया सुवर्णवृक्ष, उस वेश्या ने ब्राह्मणों को दान भारत में दिये गये, 'धर्मध्वज-सुलभासंवाद' में मोक्ष का किया । अतः सद्यः जन्म में यह वैभवसंपन्न राजा बना। प्रतिपादन है (म. शां. ३०८)।
यही कथा पद्मपुराण में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। धर्मध्वजिन्-विदेह देश के जनककुल का एक पहले यह शूद्र था । उसके बाद के जन्म में यह केंडा क्षत्रिय । इसे असित ने पृथ्वीगीता बताई (विष्णु.४.२४)। बना, एवं स्वर्ग द्वारेश्वर के सामने मृत हो गया । उस परंतु पृथ्वीगीता का प्रतिपादन इमे देवल ने किया, ऐसा पुण्यसंचय के कारण, यह सद्यःजन्म में वैभवसंपन्न राजा भी निर्देश प्राप्त है ( पद्म. उ. १९७.२७)।
बन गया (पद्म. स. २१, स्कन्द. ५.२. २२)। . . धर्मन--(सू. इ. भविष्य.) विष्णु के मत में यह धर्मरथ-(सो. अनु.) अनुवंश का एक राजा । बृहद्राज का पुत्र । इसके लिये धर्मिन् तथा बर्हि नाम भी यह दिविरथ राजा का पुत्र था । इसका पुत्र चित्ररथ ऊर्फ
रोमपाद वा लोमपाद । धर्मनारायण-एक व्यास (व्यास देखिये)। २. (स. इ.) सगर का एक पुत्र, जो कपिल के शाप
धर्मनेत्र--(सो. सह.) हैहय वंश का एक राजा । | से बचा था (प. उ. २०)। विष्णु, मत्स्य तथा पन के मत में यह हैहय राजा का पुत्र धर्मराज--गौड़ देश का राजा । यह गौड़ाधिपति था (पन. सृ. १२; धर्म ७. देखिये)।
गुणशेखर का पुत्र था। जैन धर्म का वैदिक धर्म पर २. (सो. मगध. भविष्य.) वायुमत में भुवन का पुत्र | हमला चालू था । तब इसने स्वयं वैदिक धर्म का स्वीकार तथा ब्रह्मांड मत में सुव्रत का पुत्र । इसने पांच वर्षों तक | किया, तथा अपनी कृति से वैदिक धर्म का श्रेष्ठत्व सत्र को राज्य किया (धर्म १३. देखिये)।
दर्शा दिया। इसने अपने पिता का भी उद्धार किया ____३. (सो. पूरु.) कुरु का प्रपौत्र एवं जानमेजय धृतराष्ट्र | ( भवि. प्रति. २. १०)। . का पुत्र (म. आ. ८९.८९२७)।
| धर्मवर्ण-एक ब्राह्मण । कलियुग के अन्तिम काल में धर्मपाल--दशरथ का अमात्य (वा. रा. अयो. ७)। यह आनर्त देश में रहता था। एक बार यह पितृलोक
२. (सो.) भविष्यमत में आनंदवर्धन का पुत्र । इसने गया। वहाँ इसने देखा कि, इसके पितर दूर्वीकर के २७०० वर्षों तक राज्य किया।
आधार पर लटक रहे हैं। उन्होंने अपने उद्धार के लिये धर्मबुद्धि--एक चोलवंशीय राजा। नास्तिकों के | इसे विवाह करने के लिये कहा। तब इसने विवाह सहवास के कारण, दूसरे जन्म में यह गड़ा बना । उस किया। पश्चात् पुत्रजन्म होते ही, यह गंधमादन पर तपस्या जन्म में सुलोचना ने इसका वध किया। उस समय | करने चला गया (स्कन्द. २. ७. २२)। सुलोचना ने वीरवर नामक पुरुष का वेष धारण किया था। | धर्मवर्मन्--(सो. वृष्णि.) मत्स्यमत में अक्रूर
गंगासागर संगम तीर्थ में मरने के कारण, उस गंडे | का पुत्र । का उद्धार हुआ। विष्णुदूतों के साथ स्वर्ग में जाते समय, धर्मवल्लभ--पुण्यपुर का राजा। अपने सत्यप्रकाश सुलोचना को इसने वर दिया, 'तुम्हारा पति से मिलन | नामक मंत्री के साथ, इसका अध्यात्म के विषय में संभाषण होगा' (पद्म. क्रि. ६)।
हुआ था (भवि. प्रति. २.११)। .. ३२०