Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
धर्मद्रवा
.स.५०)।
पुत्र।
सचाई से व्यवहार करता था (नरोत्तम देखिये; पद्म. | भाषण सुन कर, सिंह पुनः यक्ष बना एवं विमान में बैठ
कर अलकापुरी चला गया। १५. (पौर, भविष्य.) विष्णु के मत में रामचन्द्र का | धर्मगुप्त के पागल होने की वार्ता सुन कर, नंद राजा
राजधानी में वापस आया। उसने जैमिनि ऋषि को, १६. ( सो. मगध. भविष्य.) विष्णु के मत में सवत | अपने पुत्र के पागलपन का उपाय पूछा। उसने राजा का पुत्र । अन्यत्र इसे धर्मनेत्र, धर्मसूत्र तथा सुनेत्र नाम
को पुष्करिणी तीर्थ पर, स्नान करने के लिये कहा । नंद ने वैसा करने पर, उसके पुत्र धर्मगुप्त का पागलपन
निकल गया। पश्चात् नंद राजा पुनः तप करने के लिये १७. एक व्यास (व्यास देखिये)।
वन में गया (स्कन्द, २.१.१३)। धर्मकेतु-(सो. क्षत्र.) भागवतमत में सुकेतन का | धर्मजालिक-बाल देखिये। एवं विष्णु तथा वायु के मत में सुकेतु का पुत्र ।
धर्मतत्व-(सो. सह.) बायु मत में हैहय राजा का धर्मगुप्त-सोमवंशीय मंद राजा का पुत्र | एक बार | पुत्र (धर्म ७. देखिये)। यह अरण्य में गया था। संध्यासमय होने के कारण, | धर्मद- स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६७)। उसी अरण्य के एक वृक्ष का इसने रातभर के लिये धर्मदत्त--एक ब्राह्मण । यह करवीर नगर में रहता सहारा लिया।
| था। एक बार पूजासाहित्य ले कर, यह मंदिर में जा रहा रात के समय, उसी वृक्ष का सहारा लेने एक रीछ | था। राह में इसे कलहा नामक राक्षसी दिखी । उसे देखते आया। उसके पीछे एक सिंह लगा हुआ था। रीछ ने ही यह भय से गर्भगलित हो गया। थोड़ा धीरज बाँध राजा से कहा, 'मित्र, तुम घबराना नहीं। सिंह के डर कर, इसने पास का पूजासाहित्य उस के मुख पर फेंक से मैं यहाँ आया हूँ। हम दोनों इस वृक्ष के सहारे रात दिया। उस साहित्य में से एक तुलसीपत्र कलहा के बिता लेंगे। आधी रात तक तुम जागो । आधी रात तक शरीर पर गिरा, एवं उस से उसे पूर्वजन्म का स्मरण हो मैं जाग कर तुम्हें सम्हालूंगा'। राजा निश्चिंत मन से सो | गया। गया।
___ अपना क्रूर स्वभाव त्याग कर, दुष्ट राक्षसयोनि से . नीचे खड़ा सिंह, रीछ से बोला, 'तुम राजा को नीचे | मुक्ति का उपाय, कलहा ने धर्मदत्त से पूछा । धर्मदत्त के . फेंक दो'। रीछ ने यह अमान्य कर कहा, 'विश्वासघात | | हृदय में कलहा के प्रति दया उत्पन्न हो गयी, एवं
करना बहुत ही बड़ा पाप है। बाद में राजा को जागृत इसने अपने कार्तिक व्रत का पुण्य उसे दे दिया। इससे • कर, वह स्वयं सो गया।
उसका उद्धार हुआ (पद्म. उ. १०६-१०८; स्कन्द. २. सिंह ने राजा से कहा, 'तुम रीछ को नीचे ढकेल दो'।। ४. २४-२५)। दुर्बुद्धि सूझ कर राजा ने रीछ को नीचे ढकेल दिया, परंतु कार्तिकवत के पुण्य के कारण, अगले जन्म में यह सावधानी से रीछ ने वृक्षों के डालो में अपने आप को | दशरथ बना। कलहा इसके आधे पुण्य के कारण, फँसा दिया । पश्चात् इसने क्रोधवश राजा को शाप दिया, | इसकी पत्नी कैकयी बनी (दशरथ देखिये; आ. रा.सार. 'तुम पागल हो जाओगे'। रीछ आगे बोला, 'मैं भृगुकुल का ध्यानकाष्ट नामक
| २. कश्या का स्नेही। कश्यपपुत्र गजानन को यह ऋषि हूँ । मन चाहा रूप में ले सकता हूँ। तुम विश्वास- हमेशा अपने घर भोजन के लिये बुलाता था (गणेश. घात से मुझे नीचे ढकेल रहे थे, इसलिये मैंने तुम्हें शाप | २.१४ )। दिया है। सिंह से भी उसने कहा, 'तुम भद्र नामक धर्मदा-(सो. वृष्णि.) विष्णुमत में श्वफल्कपुत्र । यक्ष तथा कुबेर के सचिव थे। गौतम ऋषि के आश्रम धर्मद्रवा--गंगा नदी का नामांतर । यह ब्रह्म देव की में दोपहर में निर्लज्जता से स्त्री के साथ क्रीड़ा करने | सात भार्याओं में से एक थी । इसे ब्रह्मदेव ने अपने के कारण, गौतम ने तुम्हें सिंह बनने का शाप दिया | कमंडलु में रखा था । वामनावतार द्वारा विष्णु ने बली था। मेरे साथ संवाद करने पर पुनः यक्षरूप प्राप्त होने | को बाँध कर देवों को निर्भय कर दिया । तत्पश्चात् ब्रह्मदेव का उःशाप भी, तुम्हे मिला था। ध्यानकाष्ट का यह ने इसे विष्णु के पैरों पर डाल कर, उसके पाँव धो डाले।
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