Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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धर्मवृद्ध.
प्राचीन चरित्रकोश
धर्मसख
धर्मवृद्ध-(सो. वृष्णि.) श्वफल्क के पुत्रों में से एक महाभारत में धर्मव्याध के द्वारा, निम्नलिखित विषयों (भा. ९.२४.१६)।
पर विवरण किया गया है :- वर्णधर्म का वर्णन (म. ___२. (सो. क्षत्र.) एक राजा । वायुमत में यह आयु का व. १९८.१९-५५); शिष्टाचार का वर्णन (म. व. १९८. पुत्र था । क्षत्रवृद्ध इसीका नामांतर था। वायु पुराण के । ५७-९४); हिंसा एवं अहिंसा का वर्णन (म. व. १९९); क्षत्रवृद्ध वंश का प्रारंभ इसी राजा से हुआ है।
धर्मकर्मविषयक मीमांसा (म. व.२००); विषयसेवन से धर्मव्याध-मिथिला नगरी में रहनेवाला एक धर्म
हानी एवं ब्राह्मीविद्या का वर्णन (म. व. २०१); इंद्रियपरायण व्याध । इसने कौशिक नामक गर्वोद्धत ब्राह्मण को,
निग्रह का वर्णन (म. व. २०२)। मातापिता की सेवा का माहात्म्य बता कर विदा किया |
___कालंजर गिरि पर इन्द्र के साथ सोम पीने का सम्मान (म. व. १९७.२०६)। इसे अर्जुन तथा अर्जुनी नामक
| इसे मिला था (ब्रह्म. १३.३९)। अपत्य थे। उनमें से अर्जुनी विवाह योग्य होने के पश्चात् ,
धर्मवता--धर्म को धर्मवती से उत्पन्न कन्या । ब्रह्मपुत्र मतंग ऋषि के पुत्र प्रसन्न से उसका विवाह हुआ।
मरीचि की यह पत्नी थी। एक बार मरीचि ऋषि धर्मव्याध अत्यंत धार्मिक था। पंच महायज्ञ, अग्नि
सोया हुआ था, उस वक्त ब्रह्मदेव इसके घर आया।
इसने उसका सत्कार किया। किंतु उस प्रसंग के कारण, परिचर्या तथा श्राद्धादि कर्म यह बहुत ही भाविकता से
मरीचि को इसके चारित्र्य पर शक आ गया। उसने हररोज करता था। परंतु यह सारे धर्मकृत्य यह मृगया
क्रोधवश इसे शाप दिया, 'तुम शिला बन जाओगी'। करते करते ही करता था। एक बार, अर्जुनी की सास ने। उसे व्यंग वचन कहें, 'यह तो जीवघात करनेवालों की
उसी शिला पर गया की विष्णुमूर्ति स्थित है। इसे देवव्रता कन्या है । यह, तप करने वालों के आचार भला क्या
नाम भी प्राप्त है (अमि. ११४)। समझेंगी?
धर्मशर्मन्--एक ब्राह्मण । कश्यपकुल के विद्याधर
ब्राह्मण के तीन पुत्रों में से, यह सब से कनिष्ठ था। इसके : धर्मव्याध को इसका पता चल गया। मतंग को इसने
भाईयों में से वसुशर्मा तथा नामशर्मा ये दोनों बड़े भाई समझाया, 'शाकाहरी होते हुए भी तुम जीवघातक हो।
विद्वान् थे। किंतु इसे विद्याध्ययन में रुचि नहीं थी। पश्चात् इसने संसार के सास ससुरों को शाप दिया, सासससुर पर बहुएँ कभी भी विश्वास नही रखेगी, तथा
___ वृद्धापकाल में इसे अपने कृतकर्म पर पश्चात्ताप हुआ। यह भी न चाहेंगी कि उन्हें सासससुर हों (वराह.
पश्चात् एक सिद्ध के उपदेश के कारण, इसे आत्मज्ञान ८.)।
प्राप्त हुआ।
___ इसने अपने मनोरंजन के लिये एक तोता पाल रखा ..पूर्व जन्म में यह एक सामान्य व्याध था। काश्मीराधि
था। एक बार उस तोते को बिल्ली ने खा लिया। तब पति वसु राजा को इसने पूर्वजन्म का ज्ञान दिया। उस |
अत्यंत दुखित हो कर, यह मृत हो गया। दूसरे जन्म में कारण वसु राजा ने इसे वर दिया, 'अगले जन्म में तुम
इसे शुक का ही जन्म प्राप्त हो गया, एवं पूर्वसंचित के धर्मव्याध बनोगे' (वराह. ६)।
कारण यह जन्मतः आत्मज्ञानी बना (पद्म. भू. १-३)। महाभारत में यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी २. वायुमत में व्यास की ऋशिष्य परंपरा के शाकपूर्ण है। पूर्व जन्म में यह एक वेद पारंगत ब्राह्मण था। परंतु | रथीतर का शिष्य (व्यास देखिये)। एक राजा की संगत में आ कर क्षात्रधर्म में एवं धनुर्विद्या धर्मसख-केकयवंश का एक राजा । इसे सौ पत्नियाँ में इसे रुची उत्पन्न हो गयी। एक बार यह उस राजा के थी परंतु संतान नहीं थी। अन्त में वृद्धापकाल में सुचन्द्रा . साथ शिकार के लिये गया । अनजाने में इसके हाथ एक नामक ज्येष्ठ स्त्री से इसे एक पुत्र हुआ। परंतु अन्य स्त्रियाँ ऋषि का वध हो गया । ऋषि ने इसे शाप दिया, 'तुम वैसी ही संतानहीन रही । उनका दुख मन ही मन जान शूद्रयोनि में व्याध बनोंगे' | अनजाने में अपराध हो कर, धर्मसख राजा ने अपने मंत्रियों की सलाह के अनुसार, गया आदि प्रार्थना ऋषि से करने पर, उसने उःशाप पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने का निश्चय किया । दक्षिण समुद्र के दिया, 'व्याध होते हुए भी तुम धर्मज्ञ बनोंगे । पूर्वजन्म | पास के हनुमत्कुंड के पास यह यज्ञ प्रपन्न हुआ। उस का स्मरण तुम्हें रहेगा, एवं अपने मातापिता की सेवा तुम | यज्ञ के फलस्वरूप, इसकी सौ स्त्रियों को सौ पुत्र हुएँ (स्कन्द. करोगे' (म. व. २०५, कौशिक ७. देखिये.)। ३.१.१५)। प्रा. च. ४१]
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वित हो कर,
गया, एव१
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