Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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धृतराष्ट्र
प्राचीन चरित्रकोश
धृतराष्ट्र
रथीमहारथी मृत हो गये । कौरवसेना में केवल | सलाह पूछी। विदुर ने उचित राजनीति बताकर, युद्ध टालने अश्वत्थामा, कृपाचार्य तथा कृतवर्मा ये ही बड़े योद्धा | का उपदेश किया। यह कथाभाग उद्योग पर्वस्थित 'विदुर बचे।
नीति' में काफी विस्तार के साथ दिया गया है। पूरी रात यह सुन कर धृतराष्ट्र, पुत्रशोक से विव्हल हो गया। | जाग कर, यह विदुर की सलाह लेता रहा । उस कारण, पांडवों पर यह अत्यंत क्रोधित हुआ, तथा भीम से | महाभारत के इस पर्व का नाम 'प्रजागर पर्व' रखा गया है। बदला चुकाने के लिये, इसने उसे कपट से आलिंगन के शूद्र होने के कारण, विदुर को ब्रह्मज्ञान-कथन का लिये बुलाया । परंतु इसका कपट कृष्ण ने पहचान लिया। अधिकार नहीं था। अतः उसने सनत्सुजात ऋषि के द्वारा, उसने भीम क बदले, एक लोहे की मूति धृतराष्ट्र के | धृतराष्ट्र को तत्त्वज्ञान की बाते सुनवायी । अन्त में धृतराष्ट्र सामने रखी । उस मूर्ति को क्रोध से आलिंगन दे कर,
ने कहा, 'यह सब सत्य है, न्याय्य है, उचित है, किन्तु धृतराष्ट्र ने उसे चूरचूर कर दिया । अपनी फजीहत देख
दुर्योधन की उपस्थिति में, मैं अपने मन को सम्हाल नहीं कर, यह अत्यंत लज्जित हुआ। बाद में लोकलज्जास्तव
सकता (म. उ. ४०.२८-३०)। यह पांडवों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करने लगा (म. स्त्री.
__इतराष्ट्र के पुत्र-धृतराष्ट्र को गांधारी से कुल सौ पुत्र
हुएँ । उन्हे 'कुरुवंश के इस अर्थ से 'कौरव' कहते थे। युधिष्ठिर हस्तिनापुर का राज्य करने लगा। उस समय उन सौ कौरवों की नामावलि महाभारत में ही अलग अलग धृतराष्ट्र काफी दिनों तक वहीं रहा । उस समय युधिष्ठिर | ढंग से दी गयी है। उनमें से तीन नामावलियाँ अकारादि को इसने राजनीति का उपदेश किया (म. आश्व. ९- क्रम से नीचे दी गयी हैं। इनमें प्रारंभ में दिया क्रमांक १२) । युधिष्ठिर भी धृतराष्ट्र के साथ बडे आदर से
| 'पुत्रक्रम' का है :व्यवहार करता था। किंतु भीम के मर्मभेदिनी बातों से
नामावलि क्र. १ :--९०. अनाधृष्य , ७६. अनु- व्यथित हो कर धृतराष्ट्र ने वन में जाने का निश्चय किया।।
यायिन् , १३. अनुविंद, ५७. अनूदर, ६५. अपराजित, अपने वनगमन के समय, गांधारी, कुन्ती तथा विदुर ।
८७. अभय, ४२. अयोबाहु, ८६. अलोलुप, ७३. आदित्यआदि को यह साथ ले गया था। वनभ्रमण में व्यास
केतु, ८२. उग्र, ६२. उग्रश्रवस् , ६३. उग्रसेन, ५० से इसकी मुलाकात हुई । उस समय धृतराष्ट्र की प्रार्थना
उग्रायुध, २२. उपचित्र, ३३. उपनंदक, ३०. ऊर्णनाभ, नुसार, व्यास ने इसके सारे मृत बांधवों का दर्शन इसे |
९७. कनकध्वज, ५२. कनकायु, २०. कर्ण, ७७. कवचिन् , कावाया।
९८. कुंडाशी, ९१. कुंडभेदिन् , ३६. कुंडोदर, ६४. क्षेमबाद में धृतराष्ट्र ने उग्र तप प्रारंभ किया । तप करते
मूर्ति, २४. चारूचित्रांगद, २१. चित्र, ९९. चित्रक, ४४. समय दावाग्नि में किस कर इसकी मृत्यु हो गई (म. आश्र.४५. ३४; भा. १.१३. ५६)। मृत्यु के पश्चात्, ५८. जरासंध, ९ जलसंध, ८०. दंडधार,७९.दंडिन्पाशी, यह कुवेरलोक गया (म. आश्र, २७. ११)।
९४. दीर्घबाहु, ९३. दीर्घलोचन, ६७. दुराधर, १४. दुर्धर्ष, धृतराष्ट्र की मृत्यु के समय, उसके औरसपुत्रो में से १८. दुर्मख, २५. दुर्मद, १७. दुर्मर्षण, ६. दुर्मुख, एक भी जीवित न था। अतः इसके बाद पांडवकुल | १. दुर्योधन, ४१. दुर्विमोचन, ५. दुःशल, ३. दुःशासन, प्रारंभ हुआ।
| १९. दुष्कर्ण, १६. दुष्प्रधर्षण, २६. दुष्प्रहर्ष, ४. स्वभाव-धृतराष्ट्र स्वभाव से बड़ा ही सीधा तथा दुःसह, ५५. दृढक्षत्र, ८४. दृढरथ, ५४. दृढवर्मन् , गुणों का पक्षपाती था। इसके मन में कृष्ण, विदुर आदि ५९. दृढसंध,६९. दृढहस्त, ५३. दृढायुध, ८१. धनुग्रह, के लिये बडा आदर था। किंकर्तव्यमूढ अवस्था में यह ३२. नंद, ७५. नागदन्त; ७८. निषंगिन् , ६६. विदुर से सलाह प्राप्त करता था। एक दिन, पांडवों के साथ | पंडितक, ३१. सुनाभ, ७. अपर, ४८. बंलाकिन् , युद्ध टालने के विषय में बातचीत चल रही थी। इतने में | ७४. बदाशी, ४७. भीमबल, ८३. भीमरथ, ४९. भीम पांडवों से बातचीत कर संजय वापस लौटा। दूसरे दिन । विक्रम (बलवर्धन), ४६. भीमवेग, ५१. भीमशर, ९५. राजसभा में वह पांडवों का मनोगत करनेवाला था। महाबाहु, ४३. महाबाहु, ३७. महोदर, २. युयुत्सु, ८८. धृतराष्ट्र को इस बात का पता लगने पर, यह रात भर सुख | रौद्रकर्मन् , ७१. वातवेग, २८.विकट,९.विकर्ण, १२. विंद, की नींद न सो सका। इसने विदूर को आमंत्रित कर उससे ! ९२.विराविन् , २७. विवित्सु, ८. विविंशति, ६७.विशालाक्ष,
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