Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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धृष्टद्युम्न
प्राचीन चरित्रकोश
धौंधुमारि
गया। बात युद्ध तक आ गयी। फिर इसने गुप्तरूप से | ६२,१३०.१२), एवं द्रुपद के पांचाल राजकुल का निर्देश पांडवों के व्यवहार का निरीक्षण किया (म. आ. १७९), हो गया (म. द्रो. १५६; धृष्टकेतु देखिये)। एवं सारे राजाओं को विश्वास दिलाया 'ब्राह्मण रूपधारी | धृष्टबुद्धि-भद्रावती का वैश्य । वैशाख शुक्ल एकादशी व्यक्तियाँ पांडव राजपुत्र ही है' (म. आ. १८४)। का व्रत आचरने के कारण, यह मुक्त हुआ (पद्म. उ.
धृष्टद्युम्न अत्यंत पराक्रमी था। इसे द्रोणाचार्य ने ४९)। धनुर्विद्या सिखाई । भारतीय युद्ध में यह पांडवपक्ष में था।
धृष्टसुत-(सो. क्रोष्टु.) धृष्ट का नामांतर । वायुमत प्रथम यह पांडवों की सेना में एक अतिरथी था। इसकी में यह कृति राजा का पुत्र था। धृष्ट राजा के लिये युद्धचपलता देख कर, युधिष्ठिर ने इसे कृष्ण की सलाह से | 'धष्टसुत' यह पाठ गलत मालूम पडता है। संभवतः सेनापति बना दिया (म. उ. १४९.५४१)
| धृष्ट नामक सुत' की जगह धृष्ट का पुत्र ('धृष्टसुत') युद्धप्रसंग में धृष्टद्युम्न ने बड़े ही कौशल्य से अपना उत्तर- | असावधानी से लिखा गया होगा (धृष्ट ४. देखिये)। दायित्व सम्हाला था । द्रोण सेनापति था, तब भीम ने | धृष्टि-दशरथ का प्रधान (वा. रा. अयो. ७)। अश्वत्थामा नामक हाथी को मार कर, किंवदंती फैला दी कि,
२. (सो. क्रोष्टु.) भागवत मत में कुंति राजा का . 'अश्वत्थामा मृत हो गया। तब पुत्रवध की वार्ता सत्य | पुत्र । इसका पुत्र विदूरथ था (धृष्ट ४. देखिये)। मान कर, उद्विग्न मन से द्रोणाचार्य ने शस्त्रसंन्यास किया।
धृष्णि-अंगिरस एवं पथ्या का पुत्र । इसका पुत्र तब अच्छा अवसर पा कर, धृष्टद्युम्न ने द्रोण का शिरच्छेद
| सुधन्वा (ब्रह्मांड. ३. १)। किया (म. द्रो. १६४; १६५.४७)।
धृष्णु-एक कवि । यह वारुणि कवि के पुत्रों में से एक. धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य की असहाय स्थिति में उसका
| था। यह ब्रह्मज्ञानी एवं शुभलक्षणी था (म.अ. ८५.११३)। वध किया। यह देख कर सात्यकि ने धृष्टद्युम्न की बहुत
| २. यादव राजा धृष्ट का नामांतर (धृष्ट ४. देखिये)। भर्त्सना की। तब दोनों में युद्ध छिड़ने की स्थिति आ गयी। |
___३. वैवस्वत मनु का द्वितीय पुत्र (म. आ. ६९. परंतु कृष्ण ने वह प्रसंग टाल दिया।
१८; ह. वं. १. १०.१, २९)।'धार्टिक' नामक आगे चल कर, युद्ध की अठारहवे दिन, द्रोणपुत्र | क्षत्रिय वंश इसीसे उत्पन्न हुआ। अश्वत्थामन् ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये, | धेना--बृहस्पति की पत्नी । कौरवसेना का सैनापत्य स्वीकार किया। उसी रात को, धेनुक-एक असुर । यह तालवन में निवास त्वेष एवं क्रोध के कारण पागलसा हो कर, वह पांडवों के
करता था, एवं गधे का रूप धारण कर रहता था। शिबिर में सर्वसंहार के हेतु घुस गया। सर्वप्रथम अपने
जो लोग वन में फल लेने आते थे, उन्हें यह मार पिता के खूनी धृष्टद्युम्न के निवास में वह गया। उस
डालता था। एक समय कई ग्वालबाल अपनी गायें । समय यह सो रहा था । अश्वत्थामन् ने इसे लत्ताप्रकार
चराते हुएँ तालवन के पास गये । फलों की सुगंध के कर के जागृत किया। फिर धृष्टद्युम्न शस्त्रप्रहार से मृत्यु कारण, सबके मन में उन फलों को खाने की इच्छा हुई। स्वीकारने के लिये तयार हुआ। किंतु अश्वत्थामन् ने फिर बलराम ने वहाँ के फल चुराये । इतने में वन का कहा, 'मेरे पिता को निःशस्त्र अवस्था में तुमने मारा हैं। | रक्षक धेनुक, गधे का रूप धारण कर बलराम पर झपटा । इसलिये शस्त्र से मरने के लायक तुम नहीं हो'। किंतु बलराम नें इसे पटक कर, इसका वध किया (भा. __ पश्चात् अश्वत्थामन् ने इसे लाथ एवं मुक्के से कुचल | १०.१२)। कर, इसका वध किया (म. सौ. ८.२६)। बाद में | धेनुमती--(स्वा. प्रिय.) देवद्युम्न राजा की स्त्री। उसने पांडवकुल का ही पूरा संहार किया। केवल पांडव
इसका पुत्र परमेष्ठिन् (भा. ५. १५.३)। ही उसमें से बच गये (म. सौ. ८.१७-२४)। यह | धौतमूलक-चीन देश का राजा । इसने अपनी घटना पौष वद्य अमावस को हुई (भारतसावित्री)। मूर्खता के कारण, अपना एवं अपने कुल का नाश कर
धृष्टद्युम्न के कुल पाँच पुत्र थे । उनके नामः--क्षत्रंजय, | लिया (म. उ. ७२. १४)। क्षत्रवर्मन् , क्षत्रधर्मन् , क्षत्रदेव, एवं धृष्टकेतु । ये सारे धौंधुमारि--धुंधुमार कुवलाश्व राजा के पुत्रों का धृष्टद्यानपुत्र द्रोण के हाथों मारे गये (म. द्रो. १०१. | पैतृक नाम ।
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