Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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दुर्योधन
प्राचीन चरित्रकोश
दुर्योधन
ही दुर्योधन रोया। इसका रुदन गधे के चिल्लाने जैसा मार्ग ढूँढ़ता रहा। इसका मामा शकुनि एवं इसका था। इसके रोते ही गधे, गीध, सियार, कौओ, आदि | मित्र कर्ण, उस कार्य में इसकी सहायता करने लगे। चिल्लाने लगे। तूफान चलने लगा, एवं दसों दिशाओं में एक बार भीम शहर के बाहर बाग में सोया था। खलबली मच गई। धृतराष्ट्र अत्यंत भयभीत हुआ। | उस वक्त, उसे गंगा नदी में फेंक कर, एवं अर्जुन तथा उसने भीष्म, विदुर, अनेक ब्राह्मणों तथा आप्तों को बुला । युधिष्ठिर को कैद कर, राज्य हासिल करने की कर कहा, 'राजपुत्र युधिष्ठिर दुर्योधन से बड़ा है। वह तरकीब इसने सोची। गंगा नदी के किनारे प्रमाणकोटि हमारे वंश का विस्तार भी करेगा। इस पर हमारा कुछ | तीर्थ पर इसने जलक्रीडा समारोह का आयोजन किया। आक्षेप नही है। किंतु उसके बाद दुर्योधन राजा बनना | सारे पांडवों को इसने उस समारोह के लिये बुलाया । चाहिये । हमारी इच्छानुसार वह राजा बनेगा, या नहीं, भीम अत्यंत भुक्खड़ है, यह जान कर, उसके तयार अन्न एवं बाद में क्या होगा, यह बताइये। . में कालकूट विष इसन मिलाया। एवं बडे ही प्रेम से वह
धृतराष्ट ने यह कहते ही, कर तथा हिंस्र पशु फिर से | अन्न भीम को खिलाया। बाद में कौरव पांडव सारे मिल चिल्लाने लगे। चारों ओर से भयंकर अपशकुन हुएँ।
कर जलक्रीड़ा करने गये। वहाँ जलविहार से भीम थक उपस्थित ब्राह्मण एवं विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा, 'इस
गया, तथा गंगा किनारे आराम से सो गया। वहाँ पुत्र के जन्मकाल में, च कि इतने अपशकुन हएँ है, इससे | के ठंडे वायु ने तथा विषप्रभाव ने उसे निश्चेष्ट बना स्पष्ट है कि, यह कलक्षय करेगा। इसलिये इसका | दिया । यह अवसर पा कर, दुर्योधन ने उसे गंगा नदी में त्याग करना ही उचित है। तुम्हारे कुल का क्षेम एवं
ढकेल दिया (म. आ. १२७) । इस तरह, भीमरूपी संसार का कल्याण यदि तुम चाहते हो, तो इस पुत्र का
कंटक अपनी राह में से दूर हुआ, यह सोच कर दुर्योधन त्याग करो' (म. आ. १०७)। .
को अत्यंत आनंद हुआ। किंतु भीम पुनः वापस आया,
| एवं इसकी यह अधम कृति, उसने बंधुओं को बताई। अस्रविद्या--दुर्योधन युधिष्ठिर से छोटा था। किंतु
इस प्रकार भीम का वध करने का दुर्योधन का षड्यंत्र दुर्योधन एवं भीम का जन्म एक ही दिन हुआ था।
विफल रहा। फिर भी, भीम के सारथी को इसने गला बचपन में कौरव एवं पांडव इकठे खेलते थे। धनुर्विद्या,
घोंट कर मार ही दिया (म. आ. १२८)। . अस्त्रविद्या आदि की शिक्षा, इन सब भाईयों ने मिलजुल के द्रोणाचार्य से ली थी (म. आ. १२२-१२३)। गदा
__ लाक्षागृहदाह-भीम का वध करने का यह प्रयत्न युद्ध की शिक्षा इसने बलराम से प्राप्त की थी (भा. १०
असफल होने के पश्चात् , पांडव एवं उनकी माता कुंती को
जला कर मार डालने का व्यूह इसने रचा । इसने वारणावत५७. २६; विष्णु. ४.१३)।
तीर्थ में, अपने मित्र पुरोचन द्वारा एक लाक्षागृह बनवाया। पांडवों को विषप्रयोग--पांडवों का युद्धकौशल्य एवं
पश्चात् , धृतराष्ट्र के द्वारा पांडवों को, तीर्थयात्रा के निमित्त दिन ब दिन बढ़ता हुआ सामर्थ्य देख कर, कौरवों, वारणावत भिजवाने की व्यवस्था इसने की। इसने बनायें एवं विशेष कर इसके मन में उनके प्रति मत्सर उत्पन्न | लाक्षागृह में पांडव जल कर मरनेवाले ही थे, किंतु विदुर हुआ। हर एक जगह पाडवों के आगे जाने की ईर्ष्या | की सहायता से वे बच गये। उनकी जगह, अपने पाँच इसके मन में उत्पन्न हुई। कौरव-पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य | पुत्रों सहित एक भीलनी जल कर मृत हो गई। उनकी ने गुरुदक्षणा के रूप में, द्रुपद को रणांगण में जीत कर | छः लाशें देख कर दुर्योधन अत्यंत आनंदित हुआ। लाने की आज्ञा की। पांडवों को फजीहत करने के हेतु
।। पाडवा का फजाहत करन क हेतु | लाक्षागृह की इस दुर्घटना का दोष लोगों ने कौरवों पर दुर्योधन ने सर्व प्रथम द्रुपद को जीतने का प्रयत्न | ही लगाया। इस प्राणसंकट से पांडव बच गये, यह किया । किंतु दुर्योधन का यह प्रयत्न विफल हुआ, एवं | ज्ञात होते ही दुर्योधन अत्यंत शरमाया (म. आ. कौरवों की दुर्दशा हुई।
१२९-१३८)। यह वृत्त धृतराष्ट्र को ज्ञात होने पर, धनुर्विद्या एवं अस्त्रविद्या में पांडव कौरवों से | उसने पांडवों को इन्द्रप्रस्थ में ला रखा । धृतराष्ट्र व कतिपय श्रेष्ठ है, यह जान कर उनके नाश के लिये, यह नये- | यह कृत्य दुर्योधन को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। नये षड्यंत्र रचने लगा । सारा राज्य मुझे ही प्राप्त | विवाह-द्रौपदीस्वयंवर में दुर्योधन उपस्थित था (म. हो, इस लोभ के कारण यह पांडवों के नाश के नये-नये | आ. १७७. १)। दुर्योधन ने, कलिंग देश के राजा प्रा. च. ३६]
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