Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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द्रौपदी.
प्राचीन चरित्रकोश
धनंजय
महाभारत में द्रौपदी तथा भीम का स्वभावचित्रण | वंश है। विष्णु, गरूड़ तथा भागवत में इसके बारे में विशेष रूप से किया है। द्रौपदी के स्वभावचित्रण काफी मतभेद है। में व्यावहारिक विचार, स्त्रीसुलभ अपेक्षा, जोश तथा द्विमूर्धन्--दनुपुत्र एक दानव । पृथ्वीदोहन के समय स्फूर्ति का आविष्कार बडी खूबी से किया गया है। भीम यह दोग्धा बना था। विरोचन ने वत्स का काम किया था भी द्रौपदी के विचार का समर्थक बताया गया है। (म. द्रो. ६९. ३९. कुं.; परि. १.८.८०२) । द्रौपदी तथा भीम युधिष्ठिर के बर्ताव के बारे में कड़ा। द्विविद-सुषेण वानर का पुत्र एवं सुग्रीव के प्रधान विरोध करते हुएँ दिखते है । किंतु आखिर युधिष्ठिर के | मैंद का भाई । इसने राम को काफी सहायता की थी। सौम्य प्रतिपादन से वे दोनों भी चूप बैठने पर विवश | इसमें १०,००० हाथियों का बल था। होते हैं।
२. किष्किंधा का राजा एवं नरकासुर का मित्र । राजसूय द्वारक--(सू.इ.) भविष्यमत में क्षेमधन्य का पुत्र । | यज्ञ के समय, इसने सहदेव को करभार दिया था (मैद द्विगत भार्गव–एक ऋषि । यह एक साम के पठन
देखिये)। से स्वर्ग गया, तथा वहाँ से वह फिर मृत्युलोक में
नरकासुर का वध कृष्ण ने किया, यह सुनते ही यह आया । पश्चात् यह पुनः स्वर्ग गया (पं. ब्रा. १४. ९.
कृष्ण तथा बलराम को त्रस्त करने लगा । बाद में बलराम
से लड़ाई हो कर, यह बलराम के द्वारा मारा गया (म. द्विज--(सो. अनु.) वायुमत में शूरसेन का पत्र। व. २७३. ४; भा. १०.६७)।
द्विवेदिन--काश्यप कण्व को आर्यावती से उत्पन्न पुत्र द्विजिह्व--रावणपक्षीय एक राक्षस (वा. रा. सु. (भवि. प्रति. १.६; ४. २१)।
द्वैतरथ--(सो. क्रोष्टु.) वायुमत में हृदीक का पुत्र । द्वित-ब्रह्ममानसपुत्र (भा. १०.८४)।
द्वैतवन-ध्वसन् का पैतृक नाम (श. ब्रा. १३. ५. २. गौतम ऋषि का पुत्र (त्रित देखिये )। द्वित आप्तों | ४.९)। के नाम पर एक सूक्त है (ऋ. ९. १०३)।
द्वैपायन-पराशरपुत्र व्यास का नामांतर (व्यास द्विमीद--(सो. पूरु.) भागवत, मत्स्य तथा वायु- | देखिये)। • मत में हस्ति का, एवं विष्णुमत में हस्तीनर का पुत्र ।
द्वयक्षी--अशोकवन की एक राक्षसी । पद्मपुराण में इसे देवमीढ़ कहा गया है। यह एक स्वतंत्र । व्याख्येय--अंगिरस् कुल का एक गोत्रकार ।
धनक-(सो. सह.) भागवतमत में भद्रसेन का की रस्सी बनाया गया था (म. क. २४.७२)। पूषन् पुत्र । विष्णु एवं पन के मत में दुर्दम का पुत्र (पन. सृ. के साथ यह माघ माह में घूमता है (भा. १२.११.. १२)। धनंजय-एक प्रमुख नाग । कश्यप एवं कद्र का यह
२. अर्जुन का एक नाम । संपूर्ण देशों को जीत कर, पुत्र था (म. आ. ३१.५)। यह पाताल में रहता था
कररूप में धन ले कर, उसके बीच में स्थित होने के कारण, (भा. ५.२४.३१)।
अर्जुन का नाम धनंजय हुआ था (म. वि. ३९.११; यह वरुण की सभा में उपस्थित हो कर, भगवान् वरुण | अर्जुन देखिये)। की उपासना करता था (म. स. ९.९)। इसे त्रिपुरदाह ३. भगवान् शंकरद्वारा स्कंद को दी हुई असुरसेना के समय, भगवान् शिव के रथ में घोड़ों के केसर बाँधने का नाम (म. श. २७६%)। प्रा. च. ४०]
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