Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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देवकुल्या
प्राचीन चरित्रकोश
देवभाग
देवकु ल्या-स्वायंभुव मन्वंतर के मरीचि ऋषि के लिये जाने का निश्चय किया । माग में एक सिद्ध इन्हें पुत्र की कन्या । इसने पूर्वजन्म में विष्णु के पग धोये मिला। उसने एक उदाहरण बता कर इन्हें इंद्रप्रस्थ के थे, इसलिये इस जन्म में इसे 'स्वर्धनी' (गंगा नदी) का बदरितीर्थ पर जाने के लिये कहा। तब यह दोनों इंद्रप्रस्थ जन्म प्राप्त हुआ (भा. ४. १४)।
गये । यमुना में स्नान करते ही, उद्धार हो कर यह दोनों २. भागवतमत में पूर्णिमा की कन्या (प्रस्ताव स्वर्गलोक सिधारे (पद्म. उ. २१२)। देखिये)।
२. एक सुवर्णकार (रूपवती देखिये)। देवक्षत्र-(सो. क्रोष्टु.) भागवत, विष्णु, मत्स्य, देवद्युति--एक ऋषि । यह सरस्वती के किनारे वायु एवं पममत में देवरात का पुत्र । भविष्यमत में आश्रम में रहता था। विष्णु के वर से इसे सुमित्र नामक देवरथ का पुत्र ।
पुत्र हुआ था। देवगर्भ--एक ऋषि । ब्रह्मदेव के पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ देवद्युति ग्रीष्म ऋतु में पंचाग्निसाधन करता था। बड़ी में, इसने होता का काम किया था (पन. सृ. ३४)। । भक्ति से उसने १००० वर्षों तक तपश्चया तथा विष्णुदेवज--(स. दिष्ट.) संयमन राजा का पुत्र।
भक्ति की । उससे इसे अपूर्व तेज प्राप्त हुआ । वैशाख देवजनी--मणिवर की पत्नी ।
मास में एक दिन इसने विष्णु की स्तुति की। तब प्रगट देवजाति-कश्यपकुल का गोत्रकार । वेदसाति इसीका | हो कर विष्णु ने इसे वर माँगने के लिये कहा। परंतु पाठभेद है।
निरिच्छ होने के कारण, इसने विष्णु की भक्ति ही माँगी देवजित्--कश्यप तथा दनु का पुत्र ।
(पा. उ. १२८)। २. अंगिराकुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि ।
देवद्युम्न-(स्वा. प्रिय.) भागवतमत में सुमति का देवतरस् श्यावसायन काश्यप--ऋश्यशृंग का पुत्र ( देवता जित् देखिये)। ' शिष्य (जे. उ.बा.३.४०.२)। वंशवाहाण में भी इसका |
देवन-(सो. क्रोष्टु.) एक राजा। यह देवक्षत्र के उल्लेख है। वहाँ इसे काश्यप शिष्य 'शवस' का पुत्र एवं
बाद राजगद्दी पर बैठा। शिप्य बताया है।
देवपति--भृगुकुल का गोत्रकार । देवताजिंत--(वा. प्रिय.) समति एवं वृद्धसेना | देवप्रस्थ–एक गोप। यह कृष्ण का मित्र था ( भा. 'का पुत्र । इसकी स्त्री का नाम आसुरी, एवं पुत्र का नाम | १०.२२)। देवद्युम्न था (भा. ५.१५.२)।
__ देवबाहु (सो. क्रोष्टु.) भागवतमत में हृदीक का देवदत्त--(सू. नरि.) भागवतमत में उरुश्रवस् | पुत्र । • राजा का पुत्र । अग्नि, कानीन तथा जातुकर्ण्य ये इसके २. रैवत मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक (पष्मा. स.७)। तीन पुत्र थे।
देवभाग-(सो. क्रोष्टु.) शूर का पुत्र । कंस की देवदत्त शठ-एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये)।।
भगिनी कंसा इसकी पत्नी थी। उससे इसे चित्रकेतु, देवदर्श--कबंधायन का शिष्य । कबंध ने इसे अथर्व- बृहद्बल एवं उद्धव नामक तीन पुत्र हुएँ। वेदसंहिता सिखायी थी। पिप्पलाद, ब्रह्मबल, मोद एवं
देवभाग श्रौतर्ष--एक यज्ञवेत्ता ऋषि । यह श्रुत का शौल्कायनि आदि इसके चार शिष्य ये (व्यास देखिये)।
पुत्र था। यज्ञपशु के शरीर के विभिन्न भाग किन्हें बाँट वायु में वेदपर्श पाठ है। यह एक शाखाप्रवर्तक भी था देना चाहिये, इसका ज्ञान इसे हुआ था । मृत्यु के समय (पाणिनि देखिये) । पाणिनि इसे देवदर्शन कहता है। | भी, इसने यह गूढज्ञान किसी को नहीं बताया। पश्चात् देवदर्शन--देवदर्श देखिये।
एक अमानवीय व्यक्ति ने यह ज्ञान बभ्रु के पुत्र गिरिज देवदास--मगध देश का एक ब्राहाण । इसकी स्त्री | को बताया (ऐ. बा. ७.१)। उत्तमा अतीव पतिव्रता थी। इसके पुत्र का नाम अंगद दाक्षायणयाग के कारण, संजय तथा कुरु राजाओं में तथा पुत्री का नाम वलया था। वलया ससुराल में सुखी | स्नेहभाव उत्पन्न हुआ। उस समय उन दोनों का यह
पुरोहित था (श. ब्रा. २.४.४.५)। 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' इसका पुत्र अंगद तथा उसकी कन्या वलया गृहस्थी | में सावित्र अग्नि के बारे में इसके मतों का उद्धरण दिया का भार उठाते थे । अतः इस पतिपत्नी ने तीर्थाटन के | गया है (ते. ब्रा. ३.१०.९.११)। यज्ञ में इसके हाथों से
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थी।