Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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द्रोण
प्राचीन चरित्रकोश
द्रोण
तपस्या करते समय एक बार द्रोण को पता चला कि, द्रोण के पास बहुत सारे राजपुत्र विद्याध्ययन के लिये जामदग्न्य परशुराम ब्राह्मणों को संपत्ति बाँट रहा है । द्रव्य- रहते थे। किंतु उन विद्यार्थओं में अर्जुन इसका सब से याचना के हेतु से द्रोण परशुराम के पास गया । परंतु | अधिक प्रिय शिष्य था । एक बार सारे शिष्यों को ले कर, परशुराम ने अपनी संपत्ति पहले ही ब्राह्मणों में बाँट डाली द्रोण नदी पर स्नान करने गया। उस वक्त एक नक ने थी। अतएव अपने पास की अस्त्रविद्या ही उसने इसे | इसका पैर पकड़ लिया। यह देख कर, अन्य सारे दी। परशुराम से द्रोण को 'ब्रह्मास्त्र' नामक अस्त्र की | राजपुत्र भाग गये, किंतु अर्जुन ने नक्र से इसकी रक्षा की। प्राप्ति हुई (म. आ. १५४.१३; १२१)। परशुराम तब प्रसन्न हो कर, द्रोण ने उसे ब्रह्मास्त्र सिखाया (म. आ. जामदग्न्य का काल देवराज वसिष्ठ के समकालीन, एवं | १२३.७४)। द्रोण से काफी पूर्वकालीन माना जाता है। इस कारण,
'द्रपद का पराभव-बाद में द्रोण ने अपने सारे महाभारत में दी गयी 'ब्रह्मास्त्र विद्याप्रदान' की यह
शिष्यों के धनुर्विद्यानैपुण्य की परीक्षा लिवायी। उसे कहानी अविश्वसनीय मालूम पडती है ।
पता चला कि, वे सब धनुर्विद्या में काफी जानकार हो इस प्रकार द्रोण अस्त्रविद्या में पूर्णतः कुशल बन गया। गये हैं । यह देख कर, अपने पुराने शत्रु द्रुपद पर किंतु इतना विद्वान् होने पर भी, यह विपन्न एवं निर्धन आक्रमण करने का इसने निश्चय किया। काफी दिनों से ही रहा।
जो हेतु मन में था, उसे पूर्ण करने के लिये, अपने तब द्रव्यसहायताप्राप्ति की इच्छा से, यह अपने पुराने
शिष्यों द्वारा द्रुपद का पराभव करने की तैयारी इंसने की। सहाध्यायी द्रुपद राजा के पास गया। परंतु द्रुपद ने इसका
बाद में जल्द ही पांचाल देश पर आक्रमण कर, इसने द्रुपद अपमान कर, इसे वापस भेज दिया (म. आ.१२२.३५
को जीत लिया । द्रुपद का आधा राज्य (उत्तर पांचाल) -३७)। तब द्रोण द्रुपद पर अत्यंत क्रोधित हुआ, तथा
अपने पास रख कर, बचा ( दक्षिण पांचाल) इसने उसे उससे बदला लेने का विचार करने लगा । इस हेतु से यह
वापस दे दिया (म. आ. १२८.१२)।. .. हस्तिनापुर में गया एवं गुप्त रूप से अपने पत्नी के भाई यद्यपि अर्जुन इसका प्रिय शिष्य था, फिर भी 'सेवक' कृपाचार्य के पास रहने लगा।
के नाते यह पहले से ही दुर्योधन का पक्षपाती था। हस्तिनापुर में एक बार कौरव तथा पांडव गल्लीडंडा पांडवों के अज्ञातवासकाल में, कौरवों ने विराट के गोधनों खेल रहे थे। तब उनकी गुल्ली पास ही के एक कुएँ में
का हरण करवाया । तब विराटपुत्र उत्तर के साथ गिर पड़ी । वे उस गुल्ली को न निकाल सके । पास ही में
अर्जुन गायों की रक्षा के लिये आया। उस समय द्रोण द्रोण बैठा था। कुमारों ने गुल्ली निकाल देने की प्रार्थना
कौरवों के पक्ष में युद्ध कर रहा था। युद्ध में अर्जुन ने द्रोण द्रोण से की । द्रोण ने दर्भ की सहायता से गुल्ली निकाल
तथा अन्य रथी.महारथियों का पराभव कर, गायों की दी। कुमारों ने यह वृत्त भीष्म को बताया । द्रोणाचार्य
रक्षा की (म. वि. ५३)। उस युद्ध में, अर्जुन ने स्वयं का मंत्रसामर्थ्य तथा अस्त्रविद्यानैपुण्य भीष्म को पूर्व से
| द्रोण को घायल कर, रणभूमि से पलायन करने के लिये ही ज्ञात था । कुमारों के अध्यापन के लिये, द्रोण को
मजबूर किया। नियुक्त करने के लिये, पहले से वह उत्सुक था । द्रोण हस्ति- अज्ञातवास पूर्ण होने के बाद, पांडव यथाकाल प्रकट नापुर में आया है, यह ज्ञात होते ही, भीष्म इसे अपने | हुएँ । उन्होंने दुर्योधन के पास अपने राज्य की मांग की। घर में ले आया, एवं राजपुत्रों को धनुर्विद्या सिखाने का | उसके लिये उन्होंने कृष्ण को मध्यस्थता के लिये भेजा। काम इसे सौंप दिया (म. आ. १२२)।
उस समय द्रोण ने दुर्योधन को काफी उपदेश किया। द्रोण कौरवपांडवों को धनुर्विद्या सिखाने लगा। इसके
पांडवों का हिस्सा उन्हें वापस देने के लिये भी कहा शस्त्रविद्याकौशल्य की कीर्ति चारों ओर फैल गई। नाना देशों के राजपुत्र इसके पास शिक्षा पाने के लिये आने | परंतु द्रोण का यह कृत्य कर्णादि को पसंद नहीं आया। लगे। एक बार एकलव्य नामक निषाद का पुत्र इसके कर्ण एवं द्रोण की गरमागरम बहस हो कर, झगड़ा आगे पास विद्याध्ययन के लिये आया। किंतु निषादपुत्र होने | बढ़ा। परंतु भीष्म के द्वारा मध्यस्थता करने पर, उन के कारण, द्रोण ने उसे विद्या नहीं सिखाई।
दोनों का झगड़ा मिट गया (म. उ. १३७-१४८)। ३०८