Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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द्रोण
प्राचीन चरित्रकोश
द्रौपदी
यह ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ होगा, ऐसा मंदपाल ऋषिभिन्न देशों के राजा आये थे, परंतु मत्स्यवेध की शर्त वे का इसके विषय में भविष्यकथन था (म. आ. २२९. पूरी न कर सके (द्रपद देखिये)। अर्जुन ने मत्स्यवेध का ९-१०)। उस भविष्यकथन के अनुसार, उत्तर आयु में प्रण जीतने पर, द्रौपदी ने अर्जुन को वरमाला पहनायी। यह बड़ा ब्रह्मवेत्ता बन गया। इसने खांडववनदाह के बाद में पांडव इसे अपने निवासस्थान पर ले गये। समय, अग्नि की प्रार्थना कर, अपनी तथा अपने भाइयों |
धर्म ने कुंती से कहा 'हम भिक्षा ले आये हैं।' उसे की रक्षा की (म. आ. २२३. १६-१९; अनु. ५३.
सत्य मान कर, कुंती ने सहजभाव से कहा, 'लायी हुई २२ कुं.)। इसने कंधरकन्या ताी से विवाह किया था।
भिक्षा पाँचों में समान रूप में बाँट लो'। पांडवों के द्वारा उससे इसे पिंगाक्ष, विबोध, सुपुत्र तथा सुमुख नामक
लायी भिक्षा द्रौपदी है, ऐसा देखने पर कुंती पश्चात्ताप करने चार पुत्र हुएँ (मार्क. ३. ३२; १. २४)।
लगी। परंतु माता का वचन सत्य सिद्ध करने के लिये, . २. एक वसु । इसकी पत्नी का नाम धरा था । अपने
| धर्म ने कहा, 'द्रौपदी पाँचों की पत्नी बनेगी। अगले जन्म में यह दोनों नंद तथा यशोदा बने (भा. १०. ८.४८-५०)। इसकी अभिमति नामक और एक पत्नी | द्रुपद को पांडवों के इस निर्णय का पता चला। एक थी। उससे इसे हर्षशोका दि पुत्र हुएँ (भा. ६.६.११)। स्त्री पाँच पुरुषों की पत्नी बने, यह अधर्म है, अशास्त्र है, द्रोणायन - भृगुकुलोत्पन्न एक ऋषि ।
ऐसा सोच कर वह बडे विचार में फँस गया। इतने में द्रौणायनि तथा द्रौणि--अश्वत्थामा का पैतृक नाम ।
व्यासमुनि वहाँ आये, तथा उसने द्रुपद को बताया, 'द्रौपदी. व्यास नाम से इसका निर्देश करते समय, इसी नाम का
को शंकर का वर प्राप्त है कि, तुम्हें पाँच पति प्राप्त होंगे। उपयोग किया जाता है (अश्वत्थामन् देखिये)।
अतः पाँच पुरुषों से विवाह इसके बारे में अधर्म नहीं
है। द्रुपद ने उसके पूर्वजन्म की कथा पूछी। व्यास ने द्रौपदी- द्रुपद राजा की कन्या, एवं पांडवों की
कहा, 'द्रौपदी पूर्वजन्म में एक ऋषिकन्या थी। अगले पत्नी । स्त्रीजाती का सनातन तेज एवं दुर्बलता की |
जन्म में अच्छा पति मिले, इस इच्छा से उसने शंकर की। साकार प्रतिमा मान कर, श्री व्यास ने 'महाभारत' में
आराधना की । शंकर ने प्रसन्न हो कर, उसे इच्छित वर इसका चरित्रचित्रण किया है। स्त्रीस्वभाव में अंतर्भूत
| माँगने के लिये कहा। तब उसने पाँच बार 'पति दीजिये .. प्रीति एवं रति, भक्ति एवं मित्रता, संयम एवं आसक्ति
यों कहा। तब शंकर ने इसे वर दिया कि, तुम्हें इनके अनादि द्वंद्व का मनोरम चित्रण, 'द्रौपदी' में
पाँच पति प्राप्त होंगे (म.आ. १८७-१८८)। इसलिये दिखाई देता है। स्त्रीमन में प्रगट होनेवाली अति शुद्ध
द्रौपदी ने पाँच पांडवों को पति बनाने में अधर्म नहीं है।' भावनाओं की असहनीय तड़पन, अतिरौद्र पाशवी
यह सुन कर, द्रुपद ने धौम्य ऋषिद्वारा शुभमुहूर्त पर, वासनाओं की उठान, एवं नेत्रदीपक बुद्धिमत्ता का तुफान,
क्रमशः प्रत्येक पांडव के साथ, द्रौपदी का विवाह कर इनका अत्यंत प्रभावी आविष्कार 'द्रौपदी' में प्रकट होता
दिया (म. आ. १९०)। है। इसी कारण इसकी व्यक्तिरेखा प्राचीन भारतीय इतिहास की एक अमर व्यक्तिरेखा बन गयी है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में, द्रौपदी के पंचपतित्व के संबंध में
याज एवं उपयाज नामक ऋषिओं की सहायता से, द्रुपदं निम्नलिखित उल्लेख हैं। रामपत्नी सीता का हरण रावण ने 'पुत्रकामेष्टि यज्ञ' किया। उस यज्ञ के अग्नि में से, द्वारा होनेवाला है, यह अग्नि ने अंतर्ज्ञान से जान लिया। धृष्टद्युम्न एवं द्रौपदी उत्पन्न हुएँ (म. आ. १५५)। यज्ञ में | उस अनर्थ को टालने के लिये, सीता की मूर्तिमंत प्रतिकृति से उत्पन्न होने के कारण, इसे 'अयोनिसंभव' एवं 'याज्ञ- अपनी मायासामर्थ्य के द्वारा उसने निर्माण की। सच्ची सेनी' नामांतर प्राप्त हुएँ (म. आ. परि. ९६.११,१५)। सीता को छिपा कर, मायावी सीता को ही राम के आश्रम पांचाल के राजा द्रपद की कन्या होने के कारण, इसे | में रखा। इससे सीता को राम का वियोग होने लगा। 'पांचाली', एवं इसके कृष्णवर्ण के कारण, 'कृष्णा' | तब उसने शंकर की आराधना प्रारंभ की। शंकर ने प्रसन्न भी कहते थे । लक्ष्मी के अंश से इसका जन्म हुआ था | हो कर उसे वर माँगने के लिये कहा । पाँच बार, ' पति(म. आ. ६१. ९५-९७; १७५-७७)।
समागम प्राप्त हो,' ऐसा वर सीता ने माँग लिया। तब स्वयंवर, पंचपतित्व-द्रौपदी विवाहयोग्य होने के बाद, शंकर ने उसे कहा, 'अगले जन्म में तुम्हें पाँच पति । द्रुपद ने इसके स्वयंवर का निश्चय किया। स्वयंवर में भिन्न | प्राप्त होगे' (ब्रह्मवै. २.१४)। पाँचों पांडव एक ही इन्द्र