Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
देवरात
प्राचीन चरित्रकोश
देववर्णिनी
| ४६.७)।
धनुष का राम ने भंग किया (वा. रा. अयो. ६६)। रचनाकाल भी काफी अर्वाचीन होगा। क्योंकि, इस राम का ससुर एवं सीता का पिता ' सीरध्वज जनक' से | स्मृति के १७-२२ श्लोक तथा ३०-३१ श्लोक विष्णु के हैं, यह बहुत ही पूर्वकालीन था। यह याज्ञवल्क्य का सम- ऐसा अपरार्क में (३.१२००) बताया गया है । अपरार्क कालीन था। वायु में इसे 'देवराज' कहा गया है। तथा स्मृतिचन्द्रिका में 'देवल स्मृति' से दायविभाग, धनुष का इतिहास बताते समय इसे निमि का पुत्र | स्त्रीधन पर रहनेवाली स्त्री की सत्ता आदि के बारे में कहा गया है (वा. रा. बा.६६.८)। किंतु 'रामायण' उद्धरण लिये गये हैं। इससे प्रतीत होता है कि, स्मृतिकार में दिया गया इसका वंशक्रम, पुराणों में दिये गये क्रम देवल, बृहस्पति, कात्यायन आदि स्मृतिकारों का समकालीन से अधिक विश्वासार्ह प्रतीत होता है। इसका पुत्र बृहद्रथ | होगा। देवल विरचित धर्मशास्त्र पर श्लोक एकत्रित कर, (दैवराति देखिये)। .
तीनसौ श्लोकों का संग्रह 'धर्मप्रदीप' में दिया गया हैं। देवरात वैश्वामित्र--शुनाशेप का नामांतर । शुनःशेप
उससे इसके मूल स्मृति की विविधता तथा विस्तार की को विश्वामित्र ने पुत्र मान कर स्वीकार किया। उस समय
पूर्ण कल्पना आती है। शुनःशेप को यह नाम दिया गया (ऐ. बा. ७.१७; सां.
२. जनमेजय के सर्पसत्र का एक सदस्य (म. आ. श्री. १५.२७)। पश्चात् एक गोत्र एवं प्रवर को भी यह नाम दिया गया । यह एक मंत्रकार भी था (अजीगर्त ३. प्रत्यूष का पुत्र (म. आ. ६०.२५, विष्णु. एवं जह्न देखिये )
१.१५.१७)। इसका भाई असित । स्वर्ग में जा कर,
इसने पितरों को महाभारत का निरूपण किया था (म. देवराति-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
आ. १.६४; अजित देखिये)। देवल-एक ऋपि (क. सं. २२.११)। असित को ४. एक शिवशिष्य । शिव ने श्वेत नाम से दो अवतार एकपर्णा से उत्पन्न पुत्रों में से यह एक था। यह कश्यप | लिये। उनमें से दूसरे का शिष्य । .गोत्र का एक मंत्रकार एवं प्रवर था। इसने हुहू गंधर्व को ५. कृशाश्व को धिषणा से उत्पन्न पुत्र (भा. ६.६. शाप दिया था (भा. ८.४)। असित देवल तथा देवल | २०)। इन दोनों नामों से इसका निर्देश प्राप्त है। इसका छोटा ६. एक ऋषि । ब्रह्मदेव के पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ में, भाई धौम्य । वह पांडवों का पुरोहित था (असित | ब्रह्मगणों का यह अग्नीध् था (पद्म. स. ३४)। देखिये)।
देववत्--एक वैदिक राजा । इसका नाती सुदास (ऋ. धर्मशास्त्रकार--एक स्मृतिकार के नाते भी देवल | ७.१८.२२)। इसका रथ अप्रतिहतगति था (ऋ. ८. सुविख्यात था। याज्ञवल्क्य पर लिखी गई 'मिता- ३१.१५)। वन्यश्व, दिवोदास तथा सुदास, इस प्रकार क्षरा' (१.१२८), 'अपराक,' 'स्मृतिचन्द्रिका' | यदि वंशावलि मानी जाय, तो सुदास को देववत् का आदि ग्रंथों में देवल का उल्लेख किया गया है। उसी | दौहित्र मानना चाहिये। प्रकार देवल की स्मृति के काफी उद्धरण 'मिताक्षरा' में | २. रुद्रसावर्णि मनु का पुत्र (मनु देखिये)। लिये गये हैं (१.१२०)। 'स्मृतिचन्द्रिका' में देवल | ३. (सो. कुकुर.) देवक का ज्येष्ठ पुत्र । उपदेव, सुदेव स्मृति से ब्रह्माचारी के कर्तव्य, ४८ वर्षों तक पाला जाने-एवं देवरक्षित इसके बंधु थे (पद्म. स. १३)। वाला ब्रह्मचर्य, पत्नी के कर्तव्य आदि के संबंध में ४. (सो. वृष्णि.) अक्रर का पुत्र ( पद्म. स. १३)।
उद्धरण लिये गये हैं (स्मृ. ५२, ६३)। उसी प्रकार । ५. एक ऋषि । पूर्वजन्म में यह केशव था। यह विष्णु. 'मिताक्षरा,' हरदत्त कृत 'विवरण, ' अपरार्क आदि ग्रंथों स्वामी के मतों का अनुयायी था । इसने ‘रामज्योत्स्नामें 'देवलस्मृति' में से आचार, व्यवहार, श्राद्ध, प्रायश्चित | मय' नामक ग्रंथ लिखा (भवि. प्रति. ४.२२)। तथा अन्य बातों के संबंध में उद्धरण लिये गये हैं। देववती--ग्रामणी गंधर्व की कन्या एवं सुकेश राक्षस
'देवल स्मृति' नामक ९० श्लोकों का ग्रंथ आनंदा- | का पत्ता ।। श्रम में छापा है। उस ग्रंथ में केवल प्रायश्चित्तविधि | देववर--यजुर्वेदी ब्रह्मचारी । बताया गया है। किंतु वह ग्रंथ मूल स्वरूप में अन्य देववर्णिनी--भारद्वाज ऋषि की कन्या तथा विश्रवा स्मृतियों से लिये गये श्लोकों का संग्रह होगा । इसका | ऋषि की पत्नी । इसे वैश्रवण नामक पुत्र था । प्रा. च. ३८]
२९७