Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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त्रिशंकु
प्राचीन चरित्रकोश
त्वष्ट
अनिवार्य है, यह नहीं कहा। इससे प्रतीत होता है कि, त्र्यक्षी-अशोकवन की एक राक्षसी । सदेह स्वर्ग जाना उस काल में असंभव नहीं था।
अम्बकेश्वर-शिव का एक अवतार । यह गोदावरी स्वर्ग के मार्ग पर, त्रिशंकु को इंद्र के विरोध से रुकना के तट पर रहता था। गौतम की प्रार्थना से, यह पृथ्वी पडा । अभी वहाँ त्रिशंकु नाम का एक तारा है। पृथ्वी पर आया (शिव. शत. ४२) । ज्योतिलिंग देखिये। से उस तारे का अन्तर तीन शंकु (= तीस महापद्म व्यरुण वृष्ण सदस्यु-त्रसदस्यु देखिये। मील) त्रिशंकु इतना ही हैं, ऐसा खगोलज्ञ कहते हैं।
त्र्यारुण-अत्रिकुलोत्पन्न एक ऋषि । त्रिशिख-तामस मन्वंतर का इंद्र ।
त्वष्ट--देवताओं का शिल्पी (अ. वे. १२.३.३३)। त्रिशिरस--विश्ववसु एवं वाका का पुत्र । (विश्वरूप
इसका पुत्र विश्वरूप। इंद्र ने उसका वध किया। तब सब देखिये)।
कार्य इन्द्रविरहित करने का इसने निश्चय किया। फिर भी २. दूषण राक्षस के चार अमात्यों में से एक। यह
इसके सोमयाग में, इंद्र खुद आ कर सोम पी गया। परंतु राम के हाथों मारा गया।
उस सोम का इंद्र को बमन करना पड़ा। बचे सोम का इसने ३. त्रिशीर्ष का नामांतर ।
हवन किया। उस हवन से एक इंद्रशत्र देवता निर्माण ४. कश्यप एवं खशा का पुत्र ।
हुअी। उसे वृत्र कहते हैं (श. ब्रा. १.६.३.१)। त्रिशिरस् त्वाष्ट्र-एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.८.९)।
गर्भवृद्धि के लिये इसकी प्रार्थना की जाती हैं (बृ. उ. त्रिशीर्ष-रावण के पुत्रों में से एक। हनुमान ने इसका वध किया (वा. रा. यु. ७०)।
६.४.२१, ऋ. १०.१८४.१)। असुर-पुरोहित वरुत्रिन्
के साथ इसका उल्लेख प्राप्त है (मै. सं. ४.८.१; क. सं. त्रिशोक काण्व-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.४५)। इसके नाम का एक साम है (पं.बा. ८.१)। 'पंचविश ब्राह्मण' ।
३०.१)। में यह शब्द अनेक बार आया है, किंतु वह सर्वत्र व्यक्ति
शुक्र तथा गो का यह पुत्र था। इसकी पत्नी का नाम वाचक ही है, ऐसा निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता।
बैरोचिनी यशोधरा (ब्रह्मांड. ३.१.८७.)। विश्वकर्मा तथा त्रिसानु एवं त्रिसारि--(सो. तुर्वसु.) गोभानु का
प्रजापतियों में यह एक था। विश्वकर्मा तथा प्रजापति के पुत्र (त्रिभानु देखिये)।
अधिकार इसे थे। इसलिये इसे ये नाम मिले । हस्तकौशल्य त्रिस्तनी--अशोक-वन में सीता की संरक्षक राक्षसी ।
से जो भी किया जा सकता है, वह करने का इसे त्रैतन-दीर्घतमस् का शत्रु एवं एक दास । त्रित का
अधिकार था। इस अधिकार के अनुसार, हर चीज यह संबंधी रहा होगा (ऋ. १.१५८.५)।
इसीके द्वारा बनवाई जाती थी। इस प्रकार संपूर्ण प्रजा
इसीके द्वारा बनवाई जाती थी। इसलिये इसे प्रजापति त्रैधात्व-न्यरुण का पैतृक नाम (पं. बा. १३.३. | १२)।
कहते हैं। इन्हें 'विश्वकर्मन्' भी कहा है (भा. ६.९. त्रैपुर-त्रिपुरी का राजा। राजसूययज्ञ के समय सहदेव ने इसे जीत कर, इससे बहुत करभार लिया था (म. स.
इसे कुल तीन अपत्य थे। उनके नाम त्रिशिरस , विश्वरुप २८.३८)।
तथा विश्वकर्मन् थे (ब्रह्मांड. ३.१.८६)। इसे संन्निवेश त्रैपुरि-त्रिपुर का पुत्र । शंकर ने इस के पिता का नामक और एक पुत्र भी था (भा.६.६:४४ )। वध किया। इसलिये इसने शिवपुत्र गजानन पर आक्रमण यह शिल्पशास्त्रज्ञ था। सुंदोपसुंद के वध के लिये इसने किया। परंतु गजानन ने इसका वध किया (पद्म. सु. तिलोत्तमा नामक अप्सरा निर्माण की (म. आ. २०३. ७२)।
११-१७)। त्रिपुरवध के लिये, आकाश, तारे आदि त्रैवणि-औपजघन का शिष्य (बृ. उ. ४.६.३)। वस्तुओं से, इसने शंकर के लिये, एक रथ निर्माण किया
वृष्ण-व्यरुण का पैतृक नाम (ऋ.५.२७.१)।। (म. आ. २३१.१२)। इसने दधीचि ऋषि की हडिओं त्रैशांव-(सो. तुर्वसु.) गोभानु का पुत्र (त्रिभानु | से एक वज्र निर्माण कर, वह वृत्रवध के लिये इंद्र को दिया देखिये)।
था (पन्न. स. १९; भा. ६.९.५४)। त्रैशंग-शृंगायण देखिये।
| वज्रनिर्माण का निर्देश अन्यत्र भी है (म. व. २००. त्रैशंगायण-वसिष्ठ गोत्र का ऋषि । पाठमेद-शृंग।। २४)। इंद्र ने इसका पुत्र त्रिशिरस् का वध किया, तब
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