Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
दंड
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कारण, इक्ष्वाकु ने इसे दूर का राज्य दिया। किस स्थान का राज्य इसे दें, इसका विचार कर इक्ष्वाकु ने इसे विंध्यादि तथा शैवल पर्वत के बीच का आधिपत्य दिया । इसका राज्य विध्य, तथा नील पर्वतों के बीच था। इसने विंध्य के दो शिखरों के बीच, मधुमत्त नामक नगरी बसाई (पद्म. स. ३४; ३७ ) । नगर का नाम मधुमंत भी दिया गया है ( वा. रा. उ. ७९ ) । इसने उशनस् शुक्र को पुरोहित बनाया था ( वा. रा. उ. ७९.१८ ) ।
में
यह अनेक वर्षों तक जितेन्द्रिय था। एक बार चैत्र माह यह भार्गवाश्रम में गया था । तब वहाँ इसने गुरु की ज्येष्ठ कन्या अरजा को, कामातुर हो कर देखा तब उसने कहा, 'मैं तुम्हारी गुरुभगिनी हूँ। इसलिये मेरे पिता के पास तुम मेरी याचना करो। उनसे संमति मिलने पर पाणिग्रहणविधि से मेरा वरण करो'। इस उन्मत्त एक न सुनी। उस पर बलात्कार कर के, यह स्वनगर भाग गया। इधर ऋषि आश्रम में वापस आया, तब उसने देखा कि राजा ने बड़ा ही अन्याय किया है। उसने राजा को क्रोध से शाप दिया, 'बल कोशादि सहित तुम एक सप्ताह में नष्ट हो जावोगे। इन्द्र तुम्हारे राज के उपर धूली की वर्षा करेगा ' ।
इसने अरण्यवासी लोगों को राज्य छोड़ कर जाने के लिये कहा । अरजा को देहशुद्धि के लिये, वहीं सरोवर समीप १०० वर्षों तक तपस्या करने के लिये कहा। बाद में ऋषि के जाने पर राजा नष्ट हो गया । इन्द्र की आज्ञा से वहाँ १०० योजन ( वा. रा. उ. ८१ ), ४०० योजन (पद्म. स. ३७ ) धूली की वर्षा हो कर यह देश अरण्यप्राय हो गया । तबसे उस प्रदेश को दंडकारण्य नाम प्राप्त हुआ ( वा. रा. उ. ८०-८१)। इसे दंडक नामांतर था राम के द्वारा, 'दंडकारण्य निर्मनुष्य क्यों है ? ' ऐसा पूछा जाने पर अगस्त्य ने दंडक की उपरिनिर्दिष्ट
कथा उसे बताई ।
दंडनायक
।
भारतीय युद्ध में यह दुर्योधन के पक्ष में था। इसका वध अर्जुन ने किया (म.क. १२.१९ ) ।
२. सूर्य का एक पार्षद । इसे दंडिन् नामांतर है । ३. (सू. इ. ) कुवलाश्व का पुत्र ( चन्द्राश्व देखिये) । ४. वृत्र का छोटा भाई 'हंता' का अंशावतार 'क्रोधहंता' ( म. आ. ६१.४३ ) । यह द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था। यह मगधाधिपति विदंड राजा का पुत्र एवं दंडधार का भाई था (म. आ. १७७.११)। पांडवों के राजसूय यज्ञकालीन दिग्विजय में भीम ने इसे जीता था। इसने भीम के साथ कर्ण पर गिरित्रजपुर में आक्रमण किया था ( म. स. २७.१५ ) ।
५. कर्ण के द्वारा मारा गया पांडव पक्षीय राजा (म. क. ४०.५० ) ।
६. उत्कल के तीन पुत्रों में से कनिष्ठ । इसीने दंडकारण्य का निर्माण किया (ह. वं. १.१०.२४ ) ।
७. (सो. आयु. ) आयु के पाँच पुत्रों में से चौपा (पद्म. सृ. ४२ ) ।
दंड औपर एक ऋषि इसने किये एक मा निर्देश आया है ( तै. सं. ६.२.९.४; मै. सं. ३.८.७) ।
दंडक - एक चोर । इसने केवल पाप किये थे । एक यार यह विष्णु मंदिर में चोरी करने गया था। वहाँ सर्पदंश से इसकी मृत्यु हुई ( पद्म.. २ ) ।
२. इक्ष्वाकु के सौ पुत्रों में से तृतीय ( भा. ९.६३; पद्म. सृ. ८; दंड देखिये) ।
दंडकर -- एक चोर । चोर होते हुए भी इसने किये विष्णुपंचक व्रत के कारण यह मुक्त हुआ (पद्म. ब्र. २३ ) |
दंडकेतु - पांडवपक्षीय पांड्य राजा ( म. द्रो. २२. ५८ ) ।
दंडगौरी - एक अप्सरा ।
दंडधार - मगधाधिपति विदंड का पुत्र । इसका भाई दंड | यह क्रोधवर्धन राक्षस का अंशभूत था ( म. आ. ६१.४४) । यह कौरवपक्षीय रथी एवं हस्तियुद्ध में अत्यंत प्रमीण था। राजसूयय के समय, भीम ने इसे जीता था ( म. स. २७.१५ ) । भारतीययुद्ध में अर्जुन ने इसका वध किया (म. क. १३..१५ ) ।
भारतीय युद्ध मैं भीम ने इसे मारा (म. आ. परि० १० २. (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । क्र. ४१, पंक्ति २३; क. ६२.२-५ ) ।
३. पांडव पक्षीय एक चैद्य राजा । इसका वध कर्ण ने किया (म.फ. ४०.४८-४९ ) ।
४. एक पांचाल | इसका वध कर्ण ने किया (म. क. ४४.२९) ।
दंडनायक- रवि के वामभाग में रहनेवाला इन्द्र । इसे ही दंडि नामांतर है। यह दंडनीतिकार होने के कारण, इसे दंड नामक दूसरा नाम प्राप्त हुआ (सांच १६; पिंगल देखिये)।
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