Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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दीननाथ
प्राचीन चरित्रकोश
दीर्घतमस्
एक।
मँझले पुत्र को वे जबरन ले गये । मातापिता ने अत्यधिक | 'मामतेय' एवं 'औचथ्य' ये उपनाम प्राप्त हुएँ (ऋ शोक किया।
१. १५२.६:४. ४. १३)। 'दीर्घतपस्' इसीका ही बाद में सेवकों का पड़ाव विश्वामित्र के आश्रम में | पाठभेद है (वायु. ५९, ९८; १०२)। पड़ा। तब विश्वामित्र ने ब्राह्मण के मँझले पुत्र के बदले, बृहस्पति के शाप के कारण, यह जन्म के समय अंधा खुद को नरमेध के लिये बलि के रुप में प्रस्तुत किया। था (वृहहे. ४.११.१५, २१-२५ अ. १. १४०परंतु नौकरों ने वह मान्य नहीं किया । पश्चात् विश्वामित्र | १६४) । इसलिये इसे 'दीर्घतमस् ' (= दी। अंधकार) राजा के पास आया। विश्वामित्र ने राजा से कहा, 'पूर्णा- नाम प्राप्त हुआ। यह सौ वर्षों तक जीवित रहा (ऋ. हुति दे कर भी पुत्रप्राप्ति हो सकती है । यह सुनते ही १. १५८. ६: सां. आ. २. १७)। सो साल की बूढी उस पुत्र को छोड़ कर, राजाने यश किया। उस ब्राहाणपुत्र उमर में इसने 'केशव' परमेश्वर की उपासना की। की जान बचाने के पुण्य से, विश्वामित्र को स्वर्गप्रान्ति, | उससे इसे दृष्टी प्राप्त हुी, एवं लोग इसे 'गोतम' तथा दीननाथ को पुत्रप्राप्ति हुई (पा. व. १२; शुनः- (= उत्तम नेत्रवाला) कहने लगे (म. शां. ३२८)। शेप देखिये)।
| 'सुरभि' ने सूंघने पर इसे दृष्टि प्राप्त हुी, ऐसी भी दीप्तलोचन--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का एक पुत्र । | कथा उपलब्ध है (वायु. ९१)। भीम ने इसका वध किया (म. भी. ९२.२६)। ___ 'भरत' राजाओं का यह पुरोहित था। भरत दौयंति दीप्ति-अमिताभ देवों में से एक।
को इसने 'ऐन्द्र अभिषेक' किया था (ऐ. बा. ८. दीप्ति तु-दक्षतावर्णि मनु का एक पुत्र । २३)। यह अभिषेक यमुना के किनारे प्रपन्न हुआ दीप्तिमत्--सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से (भा. ९. २०.२५, भरत देखिये)। एक मंत्र गायक के
रुप में, इसका उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. १. दीप्तिमेधस्--सुमेधस् देवों में से एक ।
१५८.१)। दीर्घ-मगध देश का एक क्षत्रिय । पांडु ने इसका वध | एक बूढे एवं का भी व्यक्ति के रूप में, इसकी कई किया (म. आ. १०५.१०)।
कथाएँ प्रडग्वेद में, उपलब्ध है। इस वृद्ध को सम्हालते... दीजिड-दनुपुत्र | यह दानवों में से एक था। सम्हालते इसके नौकर त्रस्त हो गये । यह मर जाये, इस हेतु
२. एक विषैला सर्प । शेष के कोष में एक मृतसंजीवक से उन्होंने इसे अग्नि में डाल दिया, पानी में गला दिया। मणि था। उसके संरक्ष कों में से यह एक था। (जै. अन्त में, त्रैतन नामक दास ने इसका सिर काट लिया, अ. ३८)।
एवं इसकी छाती फोड़ दी। फिर भी, प्रयेक समय दीर्घजिला-अशोकवन की एक राक्षसी।
अश्वियों ने इसकी रक्षा. की (ऋ. १. १५८. ४-६; दीर्धतपस्-(सो. काश्य.) राष्ट्र का पुत्र ( दीर्घतमस वृहद्दे. ४. ११. १४)। बाद में इसे नदी में फेका दिया २. देखिये)। ब्रह्मपुराण में इसे काशेय का पुत्र बताया गया। नदी में बहता हुआ, यह अंग देश के किनारे गया है (ब्रह्म. १३.६४)।
जा लगा। वहाँ इसने उशिज् नामक दासकन्या से विवाह २. जंबुद्वीप के महेंद्र पर्वत पर रहने वाला एक | किया। उशिज से इसे कक्षीवत् आदि पुत्र हुएँ (बृहद्दे. तपस्वी । इसे पुण्य तथा पावन नामक दो पुत्र थे। उम्र | ४. २३)। के सौवें वर्ष में, पत्नी के सह इसकी मृत्यु हुई। उस पुराणों में यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है। कारण इसका पुत्र पावन शोकग्रस्त हुआ। तब पुण्य ने दीर्घतमस् को गर्भावस्था में ही सारे वेद, वेदांग तथा उसे उपदेश कर उसका मोह निरसन किया (यो. वा. ५. शास्त्र पूर्णतया अवगत थे (वायु. ९९. ३६-७८% १९-२१)। 'तृष्णाक्षय' के हेतु से यह कथा बताई ३७; मत्स्य. ४०; म. शां. ३२८-४७-४८)। विद्या के गयी है।
बल पर इसने प्रदेषी नामक रूपसंपन्न स्त्री से विवाह ३. एक व्यास । इसका पुत्र शुक (पद्म. पा. ७२)। किया। उससे इसे गौतमादि अनेक पुत्र हुए। अपने कुल
दीर्घतमस् मामतेय औचथ्य--अंगिरसकुल का की अधिक वृद्धि हो, इस हेतु से इसने कामधेनु के पुत्रों एक सूक्तद्रष्टा ऋषि (ऋ. १. १४०-१६४)। से 'गो-रति' विद्या सीखी। उस विद्या के कारण, दिन यह ममता एवं उचथ्य ऋषि का पुत्र था। इसलिये इसे ! के उजाले में, सब लोगों के समक्ष, यह स्त्रीसमागम करने
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