Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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दिवोदास
प्राचीन चरित्रकोश
दीननाथ
था (ऋ. ६.१६.४; ५.१९), एवं तुर्वशों तथा यदुओं| दिव्यजायु-पुरूरवा के उर्वशी से उत्पन्न आठ पुत्रों का विरोधी था (ऋ, ७.१९.८; ९.६१.२)। संभवतः | में छटवाँ (पद्म. सृ. १२)। इसके पुत्र का नाम 'पिजवन' हो कर, सदास इसका दिव्यमान—पारावत देवों में से एक । पौत्र था। वयश्व, दिवोदास, पिजवन, तथा सुदास इस | दिव्या-हिरण्यकशिपु की कन्या तथा भृगु की पत्नी। प्रकार इनका वंशक्रम होगा।
दिव्यादेवी--- प्लक्षद्वीप के दिवोवास राजा की कन्या। इसका महान् शत्रु शंबर एक दास एवं किसी पर्वतीय | दिवोदास ने इसका विवाह रूपदेश का चित्रसेन राजा जाति का प्रधान था (ऋ. १.१३०.७; २.१२.११, ६. से निश्चित किया। विवाहविधि शुरु होते ही चित्रसेन २६.५, ७.१८.२०)। इसने शंबर का कई बार पराभव | मृत हो गया। तब विद्वान् ब्राह्मणों के कथनानुसार, किया (ऋ. १.५१.६; शंबर देखिये)।
इसने रूपसेन से विवाह किया। परंतु वह भी मृत हो अपने पिता वयश्व के समान, यह भी अग्नि
गया। इस प्रकार इसके इक्कीस पति मृत हो गये। का उपासक था (ऋ. ६.१६:५; १९)। इस लिये
बाद में मंत्रियों की सलाह के अनुसार, इसका स्वयंवर अग्नि को दैवोदास अग्नि नाम पड़ा (ऋ. ८.१०.२)।
रचा गया। किंतु स्वयंवर के लिये आये हुएँ सारे राजा, परुच्छेप के सूक्त में इसका संबंध दिखता है (ऋ. १.
आपस में लड़ कर मर गये। इस अनर्थपरंपरा से इस १३०.१०) । भरद्वाज के छठवें मंडल में इसके काफी
को अत्यंत दुख हुआ, एवं यह अरण्य में चली गई महत्त्वपूर्ण उल्लेख हैं.। इसका पुरोहित भरद्वाज था। आयु
(पम. भू. ८५)। एवं कुत्स के साथ, यह इंद्र के हाथों से पराजित हुआ
एक बार उज्वल नामक शुक प्लक्षद्वीप में आया । था । किंतु अदारसृत नामक साम के प्रभाव से, यह पुनः
शोकमग्न 'दिव्यादेवी को उसने 'अशून्यशयन' व्रत - वैभवसंपन्न हुआ (पं. वा. १५.३.७) भरद्वाज के साथ
बताया । मनोभाव से यह व्रत चार वर्षो तक करने पर, इसका संबंध पुराणादि में भी बार बार आया है। यह
विष्णु ने इसे दर्शन दिया, तथा वह इसे विष्णुलोक ले तथा दिवोदास नील वंशज एक ही होंगे।
गया (पन. भू. ८८)।
पूर्वजन्म में यह चित्रा नामक वैश्य की स्त्री थी अध्यश्व को मेनका से एक कन्या तथा एक पुत्र हुएँ। (चित्रा ४. देखिये। उनमें से पुत्र का नाम दिवोदास, एवं कन्या का नाम
| दिव्याधक-दिव्य देखिये। अहल्या था। अहल्या शरदूत गौतम को दी गयी थी
दिष्ट-(स. दिष्ट.) वैवस्वत मनु का पुत्र । इसका (ह. वं. १.३२)। भागवतमत में यह मुद्गल का, विष्णु
बंधु नाभाग (भा. ८. १३; नभग देखिये)। मत में वध्यश्व का, वायुमत में अध्यश्व का, तथा म स्यमत में विष्याश्व का पुत्र था । पुराणों में इसका पुत्र मित्रयु
दीक्षित कण्व का आर्यावती से उत्पन्न पुत्र । यह दिया गया है। परंतु वेदों में (ऋ. ८.६८.१७) इसका
द्विविद का भाई था (भवि. प्रति. ४. २१)। पुत्र इंद्रोत दिया है । ऋक्ष अश्वमेध, पूतक्रतु, प्रस्तोक | दीननाथ-एक विष्णु भक्त राजा । यह द्वापर युग तथा सौभरि ये लोग इसके समकालीन थे ।
में पैदा हुआ। इसे संतान न थी। पुत्रप्राप्ति के लिये . ५. भृगुकुल का एक ऋषि, प्रवर तथा मंत्रकार (भृगु इसने गालव ऋषि की सलाह से, नरयज्ञ करने का निश्चय देखिये)। यह प्रथम क्षत्रिय था। बाद में ब्राह्मण बना
किया। योग्य मनुष्यों को ढूँढ लाने के लिये इसने दूत (मत्स्य. १९५.४२; परुच्छेप दैवादासि देखिये)। नियुक्त किये। ५. दिव्यादेवी देखिये।
___इन दुतों को, दशपुर नगरी के कृष्णदेव ब्राह्मण के सुशीला
से उत्पन्न तीन पुत्र, योग्य दिखाई पड़े। ब्राह्मण एक दिवोदास भैमसेनी-अरुणिका समकालीन (क. |
भी पुत्र देने के लिये तयार नही था । चार लाख मुहरे सं. ७. १.८)।
दे कर, दूत जबरदस्ती उसका ज्येष्ठ पुत्र ले जाने लगे। दिव्य-(सो. क्रोष्टु.) वायुमत में सात्वत का पुत्र ।। ब्राहाण ने प्रार्थना की 'उसे छोड दो। मैं स्वयं आ रहा भागवत एवं मत्स्यमत में इसे अंधक, एवं विष्णुमत में हूँ। पश्चात् ब्राह्मण के छोटे पुत्र को ले जाने की इसे दिव्यांधक कहा गया है ( अंधक २. देखिये)। कोशिश दूतों ने की, तो माता ने उन्हे रोक लिया । तब प्रा. च. ३५]
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