Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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दंडपाणि
प्राचीन चरित्रकोश
दत्त आत्रेय
दंडपाणि--(सो. कुरु. भविष्य.) मत्स्य तथा भागवत | त्रिमुखी दत्त की उपासना प्रचलित है। इसे तीन मुख, मत में बहीनर पुत्र तथा वायुमत में मेधाविपुत्र (खंडपाणि छः हस्त चित्रित किये जाते हैं। दत्तमूर्ति के पीछे एक देखिये)।
गाय, एवं इसके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं । किंतु २. काशिराज उर्फ पौंड्रक का पुत्र । कृष्ण ने पुराणों में त्रिमुखी दत्त का निर्देश उपलब्ध नहीं है। उन इसके पिता का शिरच्छेद करने पर, इसने पुरोहित के ग्रंथों में, त्रिनुख में अभिप्रेत तीन देवताओं को तीन कथनानुसार, महेश्वर नामक यज्ञ किया। शंकर प्रसन्न | अलग व्यक्ति समझ कर, उन्हे दत्त, सोम, एवं दुर्वासस् होने पर, उसके पास इसने कृष्ण के नाश के लिये एक | ये तीन अत्रिपुत्र के नाम दिये गये है। दत्त के आगेकृत्या माँगी । वह कृत्या जोर से चिल्ला कर द्वारका गई। पीछे गाय एवं कुत्ते रहने का निर्देश भी पुराणों में उपलब्ध परंतु कृष्ण के द्वारा सुदर्शन चक्र छोड़ते ही, वह घबरा | नहीं है। कर वाराणसी में लौट आई । वहाँ उस चक्र में उस कृत्या | महाराष्ट्र में, त्रिमुख दत्त का प्राचीनतम निर्देश सरस्वती का, इसका तथा सब लोगों का संहार किया एवं इसका | गंगाधर विरचित, 'गुरुचरित्र ' ग्रंथ में मिलता है। उस नगर जला दिया (पन. उ. २७८)।
ग्रंथ में इसे परब्रह्मस्वरूप मान कर, इसे तीन सिर, छः ३. प्रजा देखिये।
हस्त, एवं धेनु तथा श्वान के समवेत वर्णन किया है। दंडभृत्--रामायण कालीन एक वीरपुरुष । राम के | औदुंबर वृक्ष के समीप इसका निवासस्थान दिखा दिया अश्वमेध अश्व के रक्षणार्थ, यह शत्रुघ्न के साथ गया था | है। 'गुरुचरित्र' का काल लगभग इ. स. १५५० माना (पन. पा. ११)।
जाती है । महाकवि माघ के शिशुपालवध काव्य में, दत्त दंडश्री--(आंध्र. भविष्य.) वायु तथा ब्रह्मांडमत में को विष्णु का अवतार कहा है (इ. स. ६५०)। दत्त विजय का पुत्र (चंड़श्री देखिये )।
अवतार का यह प्रथम निर्देश है। दंडिन्--भृगुकुल का गोत्रकार | इसके लिये दर्भि ____ अवतारकार्य-दत्त अवतार का मुख्य गुण क्षमा पाठभेद है।
| है । वेदों का यज्ञक्रियासहित पुनरुज्जीवन, चातुर्वण्य की २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र पुत्र ।।
पुनर्घटना, तथा अधर्म का नाश यही इसका अवतारकार्य दंडीमंडीश्वर-वाराहकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर की | है (ब्रह्म. २१३.१०६-११०; ह. बं. १.४१)। सातवी चौखट का शिवावतार । वहाँ इसके क्रमशः निम्न- | इसने संन्यासपद्धति का प्रचार किया (शिव. शत. लिखित शिष्य है:-छगल, कुंडकर्ण, कुंभांड तथा प्रवाहक | १९.२६) तथा कार्तवीर्य के द्वारा पृथ्वी म्लेंच्छर हित की (शिव. शत. ५)।
(विष्णुधर्म. १.२५.१६)। . दत्त--सांदीपनि का पुत्र । कृष्ण सांदीपनि का शिष्य आत्मज्ञान एवं शिष्यारंपरा-दत्त ने अपने पिता था। उस ने गुरुदक्षिणा के रूप में, शंखासुर से इस गुरु अत्रि से पूछा, 'मुझे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार पत्र को मुक्त किया। श्वेतसागर से उसे वापस ला कर होगी ?' अत्रि ने इसे गोतमी (गोदावरी) नदी पर जा सांदीपनि को अर्पण किया।
कर, महेश्वर की आराधना करने को कहा। इस प्रकार २. स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक (पन. आराधना करने से, इसे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। गोदावरी सृ.७)।
तीर के उस स्थान को 'ब्रह्मतीर्थ' कहते है (ब्रह्म. ११७)। ३. पुलस्त्य एवं प्रीति का पुत्र । यह पूर्वजन्म में | यह ब्रह्मनिष्ठ था। इसे धर्म का दर्शन हुआ था ( पन. स्वायंभुव मन्वंतर में अगस्य था (मार्क. ४९.२४-२६)। भू.१२.५०)। इसके अलर्क, प्रह्लाद, यदु तथा सहस्रार्जुन दत्त आत्रेय-एक देवता । विष्णु के अवतारों में से
मासिने अवासे नामक शिष्य थे। उन्हें इसने ब्रह्मविद्या दी (भा. १. यह एक था । यह अत्रि ऋषि एवं अनसूया का पुत्र था।|
३.११)। इसने अलर्क को आत्मज्ञान, योग, योगधर्म, अत्रि ऋषि के दत्त, सोम, दुर्वासस् ये तीन पुत्र थे (भा. |
योगचर्या, योगसिद्धि तथा निष्कामबुद्धि के संबंध में ४.१.१५-३३)। उनमें से दत्त विष्णु का, सोम ब्रह्माजी
उपदेश दिया (मार्क ३५-४०)। का, एवं दुर्वासस् रुद्र याने शंकर के अवतारस्वरूप थे। आयु, परशुराम तथा सांकृति भी दत्त के शिष्य थे। इसे निमि नामक एक पुत्र था (म. अनु. १३८.५ कुं.)। दत्त-आश्रम-गिरिजगर में दत्त का आश्रम (विष्णुआजकल के जमाने में, ब्रह्मा-विष्णु-महेशात्मक | पद) था । पश्चिम घाट में मल्लीकीग्राम (माहूर ) में दत्त
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