Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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तुर्वश
प्राचीन चरित्रकोश
तुष्टिमत्
राजाओं का सरयू के किनारे वध किया था (ऋ. ४.३०. तुर्वीति--तुर्वशों का राजा । वय्य के साथ (ऋ. १. १८)।
| ५४.६; २.१३.१२, ४.१९.६), एवं अकेले (ऋ. सुदास के पिता दिवोदास पर तुर्वश एवं यद् | १. ३६. १८, ६१. १८; ११२. २३), इसका कई ज्ञातियों ने आक्रमण किया था (ऋ. ६.४५.२, ९.६१ | बार उल्लेख प्राप्त है। तीन स्थानों पर, इन्द्र ने इसे बाढ २)। वृचीवत् , वरशिख तथा पार्थव ज्ञातियों का तुर्वशों से बचा ने का उल्लेख मिलता है (ऋ. १.६१.११, २. से अतिनिकट संबंध था। यव्यावती तथा हरियूपीया | १३. १२, ४. १९.६)। नदीयों के तट पर, दैवरात तुर्षश को वृचीवन्तों ने मदद | तुलसी-- शंखचूड नामक असुर की स्त्री । वृंदा के की थी (ऋ. ६.२७.५-७)। यदुतुर्वशों के पुरोहित कण्व शरीर के पसीने से यह उत्पन्न हुई (पद्म. उ. १५)। . थे (ऋ. ८.४.७)। इन्हे अभ्यावर्तिन् चायमान ने जीता धर्मध्वज को यह माधवी से उत्पन्न हुई, ऐसा वैकल्पिक था (ऋ. ६.२७.२८)। शोण सात्रासह पांचाल राजा से निर्देश भी प्राप्त है। यदुतुर्वशों का काफी सख्यत्व था। तैतीस तुर्वश अश्व एवं __यह अत्यंत धर्मशील एवं पतिव्रता थी। इसके पातिव्रत्य छह हजार सशस्त्र सैनिकों के साथ इन्होंने पांचाल राजाओं के कारण, शंखचूड देवताओं के लिये अजेय था । विष्णु को मदद की थी। ब्राह्मणों में अनेक तौवंशों का निर्देश है | ने कपट से इसके पातिव्रत्य को भंग कर, शंकर से शंखचूड (श. ब्रा. १३.५.४.१६ )। अन्त में, तुर्वश लोग पांचालों । का वध करवाया (शंखचूड देखिये)। पश्चात् इसने विष्णु में विलीन हो गये (ओल्डेनबर्ग-बुद्ध. ४०४)। | को शाप दिया, 'तुम शिलारूप होगे' । तदनुसार विष्णु इन लोगों के निवासस्थान के बारे में निश्चित पता नहीं
शालिग्राम बना (ब्रहावे. २.२१; शंखचूड देखिये)। लगता । इन लोगों ने परुण्णी नदी को पार किया था (ऋ.
। एकवार कामविद्ध हो कर यह गणपति के पास गयी। ७.१८)। ये लोक पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर भरतो के
| तब गणपति ने इसे शाप दिया, 'तुम वृक्षरूप होगी'। देश में आगे बढे, ऐसा प्रतीत होता है (पिशेल. वेदि. इस शाप के कारण, इसका मनुष्य देह नष्ट हुआ। स्टुडि. २.२१८)।
आगे चल कर समुद्रमंथन के अवसर पर, समुद्र से अमृत
बाहर आया। उसकी कुछ बुदें जमीन पर गिरी। पुराणों में तुर्वशों का निर्देश 'तुर्वसु' नाम से किया |
उन में से ही तुलसी का पेड़ बाहर निकला। पश्चात् इस.. गया है।
पेड़ को ब्रह्मा ने विष्णु को दिया (पद्म. सु. ६१; स्कंद. __ तुर्वसु-(सो. पुरूरवस्.) ययाति राजा को देवयानी से उत्पन्न पुत्र । पिता का वृद्धत्व इसने स्वीकार नहीं किया।
तुलाधार-वाराणसी क्षेत्र में रहनेवाला एक वैश्य । अतः ययाति ने इसे शाप दिया। इस शाप की वजह से
जाजलि नामक एक द्विज को अपने तप की धमंड थी। इसके छत्रचामर छीन लिये गये, एवं निंद्य आचरन
वह इसने उतार दी । (म. शां. २५३-२५६)। करनेवाले पश्चिमभारत का यह राजा बना (भा. ९.२२)।
तुषार -(तुषार. भविष्य.) कलियुग के एक वंश का इसे वह्नि नामक पुत्र था (भा. ९. २३.१६)।
नाम । इस में १४ राजा हुएँ (मत्स्य. २७३, वायु. ९९; तुर्वसुवंश-इसका वंश अनेक स्थानों पर प्राप्त है। ब्रह्मांड. ३.७४)। इस वंश के राजा शकद्वीप में रहते थे (मत्स्य. ४८; ब्रह्मांड. ३. ७४; वायु. ९९; ब्रह्म. १३; | (वै. का. राजवाडे. भा. इ. सं. म. इतिवृत. १८३५. ह. वं. १. ३२; अग्नि. २७६; विष्णु. ४.१६, गरुड़ १. ५९)। १३९; भा. ९. २३)। अमिपुराण में, द्रुहय वंश के | तुषित-स्वायंभुव तथा स्वारोचिष मन्वंतर के देवगण गांधार का इसी वंश में समावेश किया है। विष्णु | (मनु देखिये)। आदि तीन पुराणों में, इस वंश का अंतिम भाग प्राप्त तुषिता-स्वारोचिष मन्वंतर के वेदशिरस् ऋषि की नहीं है। इस वंश के, मरुत्त ने पौरव दुष्यंत को गोद | स्त्री । इसे विभु नामक पुत्र था (भा. ८.१.२१)। लिया। इस प्रकार यह वंश पौरवों में समाविष्ट हुआ। तुष्ट-हंसध्वज का प्रधान । इसी वंश के अंतिम लोगों ने, दक्षिण में पांड्य तथा चोल | तुष्टि-धर्म ऋषि की पत्नी । स्वायंभुव मन्वंतर के दक्ष राज्यों की स्थापना की ( ययाति देखिये)। ने उस ऋषि को दस कन्याएँ दी। उनमें से यह एक थी।
वेदों में तुर्वसु को तुर्वश कहा है (तुर्वश देखिये,)। तुष्टिमत्--कंस का भ्राता।