Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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जयद्रथ
प्राचीन चरित्रकोश
जयध्वज
ने शंकर से माँगा। शंकर ने इसे बताया, 'अर्जुन की अनु- देख कर, दुर्योधन भयभीत हो गया, एवं जयद्रथ के पास पस्थिति में बाकी पांडवों का पराभव तुम कर सकोगे'। रक्षणार्थ जा बैठा (म. द्रो.७४-७६) । इतने में जयद्रथ को इससे संतुष्ट हो कर यह अपने नगर लौट आया । इस | बाहर निकालने के हेतु से, कृष्ण ने समस्त सेना में ऐसा वर के कारण ही अभिमन्युवध के समय, यह पांडवों का | आभास निर्माण किया की, मानों सूर्य का अस्त हो रहा पराभव कर सका (म. व. २५२.२५६)।
है । उस समय जयद्रथ ने सूर्यास्त देखने के लिये गर्दन भारतीययुद्ध में अर्जन संशप्तकों से युद्ध करने में व्यस्त | उठाई । तब कृष्ण ने 'वह रहा जयद्रथ, ' ऐसा संकेत था। मौका देख कर, इसने पांडवों का पराभव किया। | अर्जुन को किया । अर्जुन ने तत्काल इसका सिर काट दिया अकेला अभिमन्यु चक्रव्यूह में घिरा कर मारा गया। अर्जुन ने | एवं संध्या कर रहे जयद्रथ-पिता वृद्धक्षत्र के गोद में घोर प्रतिज्ञा की, 'कल सूर्यास्त के पहले मैं जयद्रथ का वध गिराया। यह घटना मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी को हुई करूंगा'। इस प्रतिज्ञा से घबरा कर, यह स्वदेश वापस | (भारतसावित्री)। लौटने का विचार करने लगा। उसी रात्रि में दुर्योधन इसे ले जयद्रथ का सिर काट कर, उसके पिता की ही गोद में कर द्रोणाचार्य के पास गया । द्रोणाचार्य ने इसकी रक्षा | क्यों डाला गया, इसके लिये कृष्ण ने अर्जुन को निम्नांकित . का आश्वासन दे कर, इसे रोक लिया (म. द्रो. ५१- कथा बताई। ५२)।
__ कृष्ण ने कहा, "वृद्धक्षत्र जयद्रथ का पिता था। काफी लंबी जयद्रथ-वध की प्रतिज्ञापूर्ति के बारे में अर्जुन अत्यंत | कालावधि के बाद उसे यह पुत्र हुआ । उसके जन्म के समय चिंतित था । द्रोण ने शकटव्यूह की रचना कर, उसके | आकाशवाणी हुई, 'तुम्हारा यह पुत्र कुलशील मनोनिग्रहादि अंदर चक्रव्यूह तथा सूचिव्यूह की रचना की। पश्चात् | गुणों से प्रसिद्ध योद्धा बनेगा । परंतु लड़ने समय रणांगण. इन तीन व्यूहों के अंदर उसने जयद्रथ को बैठाया ।। में ऐसा योद्धा उसकी गर्दन काटेगा, जिसकी ओर इसका तथा वह स्वयं व्यूह के द्वार पर खडा रहा (म. | ध्यान नहीं है । इसे सुन कर वृद्धक्षत्र ने कहा, 'लड़ते द्रो.५७-६३)।
समय जो कोई मेरे पुत्र का मस्तक काट कर भूमि पर कृष्ण ने अर्जुन को सत्वर व्यूह में प्रविष्ट होने के लिये | गिरायेगा, उसका भी मस्तक शतधा विदीर्ण होगा। इतना कहा । वहाँ द्रोण तथा अर्जुन युद्ध में मिले तथा काफी
कह कर, तथा जयद्रथ को राजगद्दी पर बैठा कर, वह देर तक उनका युद्ध हुआ। अंत में कृष्ण की | स्यमंतपंचक के बाहर बन में गया, और उग्र तपश्चर्या कर ने सलाह के अनुसार, द्रोण को छोड़ कर अर्जुन आगे जाने लगा । इसलिये वृद्धक्षत्र के ध्यान में न आये, इस तरह लगा । तब द्रोण ने उसे कहा 'मुझे न जीत कर व्यूह
दिव्यास्त्र से जयद्रथ का सिर काट कर उसीकी गोद में उडा में प्रविष्ट होना तुम्हारे लिये अयोग्य है । यह सुन कर
दिया है। यदि जयद्रथ का मस्तक तुम भूमि पर गिराओगे, अर्जुन ने कहा, 'आप आचार्य तथा मेरे गुरु हैं। शत्रु
तो तुम्हारा मस्तक शतधा विदीर्ण हो जावेगा"। जयद्रथ नही। मैं आपका शिष्य हो कर पुत्र के सदृश हूँ। युद्ध
| का सिर गोद में गिरते ही, वृद्धक्षत्र का मस्तक शतधा में आपको जीत सके, ऐसा पुरुष इस लोक में कोई नहीं है | | विदीर्ण हो गया (म. द्रो. १२१)। जयद्रथ का ध्वज (म. द्रो. ६६)।
वराह चिह्न का था (म. द्रो. ८०.२०)। मार्ग के अनेक योद्धाओं का वध करता हुआ, अर्जुन | इसके एक पुत्र का वध, अर्जुन ने द्रौपदीस्वयंवर के आगे बढा । मार्ग में उसके अश्व प्यासे हो गये। रथ | समय किया (म. आ. २१८.३२)। इसका दूसरा पुत्र रोक कर, तथा जयद्रथ के पास पहुँचने के लिये अभी काफी
दुःशला से उत्पन्न सुरथ । अश्वमेध के समय अश्व के साथ अवकाश है, यह सोच कर अर्जुन रुक गया। वहीं बाणगंगा
अर्जुन आया, यह सुनते ही उसने प्राणत्याग किया (म. निर्माण कर, उसने अपने अश्वों को पानी पिला दिया तथा
आश्व. ७७.२७)। वह आगे बढा । वह जयद्रथ के समीप पहुँचा । इतने में
४. धर्मसावर्णि का पुत्र । युधिष्ठिर ने अर्जुन की सहायता के लिये ययुधान को भेजा
५. ब्रह्मसावर्णि मनु का पुत्र (म.द्रो. ७५)। बाद में युधामन्यु तथा उत्तमौंजस् नामक दो | जयध्वज-(सो. यदु. सह.) भागवत, विष्णु, मत्स्य चक्ररक्षक (म. द्रो. ६६.३५), एवं सात्यक तथा भीमसेन | एवं वायु के मत में सहस्राजुनपुत्र । इसका पुत्र तालजंघ । व्यूह का भेद कर वहाँ तक पहुँचे। इन सब को एकत्रित | यह महारथी था (पभ, सृ. १२)। .
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