Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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तान्व
प्राचीन चरित्रकोश
तारा
(ऋ. ३.३१.२०)। ऋग्वेद के एक सूक्त में, दुःशीम की ताम्रलोचन-एक शिवगण । इसने उदार दाता कह कर स्तुति की है (ऋ. १०. ९३. ताम्रा--प्राचेतस दक्ष प्रजापति एवं असिनी की
कन्या । यह कश्यप को दी गयी थी (कश्यप देखिये)। तापनीय--ब्रह्मांड़मत में व्यास की यजुःशिष्यपरं- । २. वसुदेव की स्त्रियों में से एक । इसका पुत्र सहदेव । परा के याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य ।
ताम्रायण-वायुमत में व्यास की यजुःशिष्य तापस--दत्त का उपनाम । यह जनमेजय कौतस्त के | परंपरा के याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य (व्यास सर्पसत्र में होता था (पं. ब्रा. २५.१५)।
देखिये)। २. अग्नि, धर्म एवं मन्यु देखिये।
ताम्रौष्ठ–एक यक्ष (म. स. १०. १६)। तामरसा-अत्रि की स्त्री (ब्रह्मांड़. ३.८.७४.८७)। तार-मयासुर का एक मित्र (मत्स्य. १७७)। तामस-धर्म एवं हिंसा का पुत्र ।
२. रामसेना का एक प्रमुख वानर (म. व. २८५. २. (सो.) भविष्य मत में श्रवस् का पुत्र ।
९)। इसने निखर्वट राक्षस के साथ युद्ध किया । सुग्रीव ३. (स्वा. प्रिय.) प्रियव्रत का तीसरा पुत्र तथा उत्तम | की स्त्री रुमा इसकी कन्या थी। इसे तारापिता भी कहा का भाई (भा. ८.१.२७)। कई ग्रंथों में इसे प्रियव्रत | गया है (वा. रा. उ. ३४.४)। का वंशज कहा है (विष्णु. ३.१.२४)।
| ३. मधुवन में रहनेवाले शाकुनि नामक ऋषि का - स्वराष्ट्र नामक राजा को विमर्द नामक राजा ने पदच्युत | पुत्र । यह अत्यंत तेजस्वी था (पा. स. ३१)। किया। स्वराष्ट्र राजा की पत्नी उत्पलावती, मृत्यु के बाद, | तारक-कश्यप एवं दनु का पुत्र । हरिणी योनि में उत्पन्न हुई । स्वराष्ट्र का कामुक स्पर्श उस | २. एक असुर । वांग तथा वरांगी को ब्रह्मदेव के हरिणी को होने के कारण, यह पुत्र उत्पन्न हुआ (मार्क. | कृपाप्रसाद से यह पुत्र प्राप्त हुआ था ( वज्रांग देखिये)। ७१.४६ )। माता को तामस योनि प्राप्त होने पर उत्पन्न | इसने पारियात्र पर्वत पर १०,००० वर्षोंतक तपस्या की। होने के कारण, इसे तामस मनु कहते थे। पिता ने सारी | ब्रह्मदेव ने इससे वर माँगने को कहा। इसने अमरत्व बातें इसे बतायीं । तब इसने पिता के शत्रू विमर्द राजा को | माँगा । यह मिलना असंभव है, ऐसा मालूम होने पर कैद कर लाया (माकै. ७१.४७ )। बाद में पिता के कहने | इसने सात दिन के शिशु के द्वारा मृत्यु होने का वर पर इसने उसे छोड़ दिया। इस तरह राज्य प्राप्त कर | माँगा। यह सार्वभौम बना।
इस वर के प्रभाव से उन्मत्त हो कर, इसने इंद्रादि देवों इसने नर्मदा के दक्षिण तट पर महेश्वरी की आराधना | को पराजित किया । शंकर के औरस पुत्र के द्वारा ही की। कामराजकूट का जय किया। वसंत एवं शरदऋतु | तारकासुर की मृत्यु होगी ऐसा देवताओं का संकेत था । में नवरात्र पूजा भी की। इस तपस्या से यह चतुर्थ | इसलिये शंकर ने पार्वती से विवाह किया। उन्हें स्कंद मन्वंतराधिपति मनु बना (दे. भा. १०. ८)। यह | नामक पुत्र हुआ। स्कंद ने उम्र के सातवें दिन इसका वध अपनी भार्या के साथ स्वर्ग लोक गया । गजेंद्र मोक्ष की | किया (मत्स्य. १३०-१३९; १४६; पद्म. स. ४२,तारेय घटना इसी के ही काल में हुई थी (भा. ८. १; मनु | २. देखिये )। देखिये)।
इसके तीन पुत्र थे । उनके नामः-त्रिपुरोत्पादक- ताम्र-महिषासुर का कोशाध्यक्ष ।
| ताराक्ष (तारकाक्ष), कमलाक्ष तथा विद्युन्माली (म. क. २. मुर दैत्य के सात पुत्रों में से एक । कृष्ण ने इसके | २३.३-४; लिंग. १.७१)। पिता का वध किया। इस लिये अपने भाईयों सहित तारा-बृहस्पति की दो स्त्रियों में से दूसरी । सोम ने इसने कृष्ण पर आक्रमण किया। किंतु यह स्वयं मारा | इसका हरण किया था। ऋग्वेद में इसका असष्ट उल्लेख गया (नरक ३. देखिये)।
है (ऋ. १०.१०९)। सोम से इसे बुध नामक पुत्र उत्पन्न ताम्रतप्त-कृष्ण का रोहिणी से उत्पन्न पुत्र । हुआ। वह सोमवंश का मूलपुरुष था (चंद्र देखिये)। ताम्रध्वज--मयूरध्वज का पुत्र ।
२. सुषेण वानर की कन्या तथा वालिन् की स्त्री। ताम्रलिप्त--वंगदेशीय क्षत्रिय (म. आ. १७७ | इसके पिता का नाम तार (तार २. देखिये)। इसका १२; स. २७. २२)।
पुत्र अंगद (वा, रा. किं. २२.१३)। वालिन् तथा सुग्रीव
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