Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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जिष्णु
प्राचीन चरित्रकोश
जैमिनि
जिष्णु-विष्णु, इंद्र, एवं अर्जुन का नामांतर । गमन का सामर्थ्य था (म. श. ४९ ) । असित देवल के २. भौत्य मन्वन्तर के मनु का पुत्र । साथ इसका ब्रह्मप्राप्तिविषयक संवाद प्रसिद्ध है ( म. 'जिष्णुकर्मन--पांडवों के पक्ष का एक राजा । कर्ण शां. २२२ ) । अश्वशिरस् राजा के दरबार में, कपिल ने ने इसका वध किया (म. क. ४०.५० ) । विष्णु का तथा इसने गरुड का रूप लिया था ( वराह. जिह्नक- भृगुकुल का गोत्रकार | ४) । इसे योगशास्त्र की जानकारी देने के लिये, ब्रह्मदत्तजिह्वावत् बाध्योग - असित वार्षगण का शिष्य । पुत्र विष्वक्सेन ने, योगशास्त्र पर ग्रंथ लिखा ( भा. ९. इसका शिष्य वाजश्रवस् (बृ. उ. ६.५.३ ) ।
जीमूत -- (सो. यदु.) भागवत, विष्णु, मत्स्य तथा बायुमत में व्योमपुत्र ।
२. एक मल । विरागृह में भीम ने इसे मारा ( म. वि. १२.२३ ं)।
३. एक विप्रर्षि । यह उशीस्बीज नामक क्षेत्र में रहता कहते हैं ( स्कंद. ७.१.१४) ।
था (म. उ. १०९.२४) ।
४. (सो. यदु.) भीम का पुत्र ।
जीव-- अंगिरस का पुत्र ( शुक्क देखिये) । जीवनाश्व -- अंगिराकुल का गोत्रकार । पाठभेद युवनाश्व ।
जीवंति -- भृगुकुल का गोत्रकार । जीवंती - एक पतिता वेश्या । रामनाम कहने से • इसका उद्धार हुआ (पद्म. क्र. १५) ।
जीवल-- अयोध्याधिपति ऋतुपर्ण का अश्वपाल । नल के अज्ञातवास में, यह उसके लिये सहानुभूति रखता था. ( म. व. ६४.११ ) ।
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जीवल चेलक - एक यज्ञवेत्ता । अग्निहोत्र की जानकारी इसने दी है (श. बा. २.३.१.३१ - ३५ ) । जूहु -- बृहस्पति की पत्नी (ऋ. १०.१०९) । २. ब्रह्मदेव की पत्नी ( सर्वांनुक्रमणी ) ।
जूति- -- एक सूक्तकर्ता । यह वातरशन का पुत्र था । (ऋ. १०.१३६.१) ।
कुंभक-एक यक्ष | धर्मारण्य के ऋषियों को यह त्रस्त करता था (स्कंद. ३.२.९) ।
जेतृ - अमिताभ देवों में से एक ।
जेतृ माधुच्छंदस--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १.११) । जैगीषव्य-- एक ऋषि ( म. स. १२५ पंक्ति ५९ अनु. ४९.३७ कुं. ) । इस के पिता का नाम शतशलाक ( ब्रह्माण्ड ३.१०.२० ) । इसकी तीन पत्नियाँ थी : -- १. पर्णा (मत्स्य. १७९), २. हिमवान की कन्या एकपाटला (ह. वं. १.१८.२४ ), ३. योगवती ( पद्म. स. ९) । इसके शिष्य . का नाम असित देवल था । उसे इसने अपने तर का अद्भुत तेज तथा लीलायें दर्शाई। इसमें ब्रह्मलोक
२१.२५-२६ ) ।
इसने प्रभास क्षेत्र में घोर तपश्चर्या की । पूर्वकल्प में 'महोदय' नाम से प्रसिद्ध लिंग की इसने स्थापना की । शिव के प्रसन्न होने पर, 'मुझे ज्ञानयोग दीजिये,' यो वर इसने माँगा । इसके द्वारा स्थापित लिंग को आजकल सिद्धेश्वर
दूसरे स्थान पर विभिन्न कथा प्राप्त है । इस ऋषि ने जिद की, 'जब तक मुझे शिवदर्शन नहीं होगा, तत्र तक मैं पानी भी नहीं पीऊंगा' । शंकर को यह ज्ञात होते ही, वह पार्वती के साथ इसे दर्शन देने आया । शंकर ने इसकी सारी इच्छाएँ पूरी की, तथा इससे शिवलिंग की स्थापना करवायी (स्कंद. ४.२.६३ । ।
२. वाराहकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर में से शंकर का अवतार । यह काशी के दिव्य प्रदेश में दर्भासन पर बैठनेवाला महायोगी था । इसे सारस्वत, योगीश, मेघवाह तथा सुवाहन नामक चार पुत्र थे (शिव. शत. ४) । जैत्यद्रोणि- अंगिराकुल का गोत्रकार । जैत्र-कृष्ण का एक सेवक ( भा. १०. ७१.१२) । २. (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने इसका वध किया (म. क. २५. १२-१३ ) ।
जैत्रायण सहोजित - राजसूय यज्ञ करनेवाले एक राजा का नाम । (क. सं. १८. ५ ) । परंतु का पिठल संहिता में इंद्र की उपाधि के रूप में यह शब्द प्रयुक्त किया है ( कापि. सं. २८. ५ ) ।
जैमिनि- - एक ऋषि । यह कौत्सकुलोत्पन्न था, तथा युधिष्ठिर के यज्ञ में ऋत्विज था ( भा. १०.७४.८ ) । मयसभा में प्रवेश करने के बाद, युधिष्ठिर ने बड़ा समारोह किया। उस समय यह उपस्थित था ( म. स. ४. ९ ) । भीष्म शरपंजर पर पड़ा था, तब अन्य मुनिगणों के साथ यह वहाँ था ( म. शां. ४७.६५ ) । जनमेजय के सर्प - सत्र में यह उद्गाता था (म. अ. ४८.६ ) ।
यह कृष्ण द्वैपायन व्यास का सामवेद का शिष्य था ( म. आ. ५७.७४; व्यास देखिये ) । यह लांगलि का भी शिष्य था ।
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