Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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जांबवत्
प्राचीन चरित्रकोश
इसने दशांग पर्वत पर शिवलिंग की स्थापना की थी। फिर भी विष्णुमाया से लज्जित हो कर, वृन्दा में अमिउस लिंग को इस के नाम पर 'जांबवत लिंग'नाम प्राप्त प्रवेश किया ( शिव. रुद्र. यु. २३; आ. रा. सार. ४)। हुआ (प. उ. १४३)।
दूसरी जगह यह कथा भिन्न रूप में आयी है। वृंदा जांबवती--ऋक्षराज जांबवत् की कन्या, तथा कृष्ण ने विष्णु को शार दिया, 'तुम्हारी स्त्रियों का भी इसी की अष्टनायिकाओं में से एक । इसे सांब, सुमित्र, पुरुजित्,
प्रकार हरण होगा'। बाद में वृंदा ने देहत्याग किया शतजित् , सहस्त्रजित् , विजय, चित्र केतु, वसमत्, द्रविड | (पन. उ. १५)। शंकर ने इसका सिर सुदर्शन चक्र से तथा ऋतु नामक पुत्र, तथा एक कन्या थी (म. स. परि. काट दिया (स्कंद. २.४.१४-२२)। १, क्र. २१, पंक्ति. १४११; भा. १०.५६.३२, ६१.१२,
| जालंधरायण-जालंधर-त्रिगर्त-कांग्रा यह प्रदेश विष्णु. ४.१३)। अन्त में इसने अग्निप्रवेश किया (म. | पाणिनिकाल से आज तक सतलज (शुतद्र) नदी के पश्चिम मौ. ८.७२)।
भाग में ख्यात है। जायद्रथ--जयद्रथपुत्र सुरथ का नामांतर ।
जालपदी--देवकन्या । इसे देख कर शरत् का जायंत--जयंती से ऋषभदेव को उत्पन्न शतपुत्रों का
रेतस्खलन हो कर, कृप एवं कृपी ये पैदा हुएँ (म. आ. नामांतर।
१२०.६)।
जाहुष-एक राजा। अश्वियों की कृपा से. इसका जायंतीपुत्र--आलंबीपुत्र का गुरु तथा मांडूकायनी
राज्य पुनः प्राप्त हुआ। च्यवन तथा यह, एल्यों का पुत्र का शिप्य (बृ. उ. ६.५.२)।
राजा तुर्वयाण के विरुद्ध के पक्ष में थे (ऋ. ७.७१.५ )। जायंतेय--जायंत का नामांतर ।
जाह्नव-विश्वामित्र का पैतृक नाम (पं. बा. ११.१२, जार-वृषजार देखिये।
जह्न तथा विश्वामित्र देखिये)। जारत्कारव---आर्तभाग का पैतृक नाम (बृ. उ.
| जिगीषु--पृथुक देवों में से एक। ३.२.१)। जारासंधि-जरासंधपुत्र सहदेव का नामांतर ।
जित्--एक देवप्रकार । स्वायंभुव मन्वन्तर में देव
ताओं को 'याम' कहते थे। उन्हीं में से एक प्रकार जित जाति--तंति का नामांतर।
नाम से प्रसिद्ध था। . जालधि-भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
जित--(सो. यदु.) वायुमत में यदुपुत्रों में से एक । जालंधर-एक दैत्य । यह समुद्र में पैदा हुआ। यह
जितकाम--मधुवन के शाकुनि ऋषि का पुत्र । यह शास्त्रवेत्ता था। इसका वध शंकर ही कर सकेंगे, ऐसा
अत्यंत विरक्त था, तथा संन्यास वृत्ति से रहता था (पाम. ब्रह्मदेव ने इसे वरदान दिया था (स्कंद.,२.४.१४; पभ. स्व.३१)। उ. ४-१९; शिव. रूद्र. यु. १४)।
जितवती-उशीनर की कन्या तथा नामक वसु समुद्र तथा गंगा का यह पुत्र, जालंधर देश में रहता | की भार्या। था। इसका राज्य पाताल एवं स्वर्ग पर भी था। इसकी जितव्रत-(स्वा. उत्तान.) भागवत मत में हविपत्नी वृंदा । शुक्र के सहाय्य से यह पृथ्वी का शासन र्धान का पुत्र । इसकी माता हविभीनी । . करता था। संजीवनीविद्या भी इसे अवगत थी। यह जिताजित-स्वागंभुव मन्वन्तर में से एक देवसर्वथा अजेय था। इंद्रपद पर इसने कब्जा किया था। प्रकार। लक्ष्मीनारायण भी इसके घर में रहते थे।
जितारि--(सो. कुरु.) अविक्षित् का पुत्र । नारद ने एक बार पार्वती के सौंदर्य की प्रशंसा की। जित्वन शैलिनि-शिलीन ऋषि का पुत्र। इसका इसने पार्वती को लाने के लिये राह को भेजा। शंकर ने | भ्राता जिन । एक स्थान पर इसका नाम शैलिन् आया है राहु को भगा दिया। अन्त में शंकर तथा जालंधर का (बृ. उ. ४.१.५; माध्य.)। परंतु काप्य प्रति में शैलिनि घमासान युद्ध हुआ। शस्त्रयुद्ध के बाद मायायुद्ध शुरू नाम दिया है (४.१.२)। जनक एवं याज्ञवल्क्य का यह हुआ। पार्वती के पास यह शंकर का रूप ले कर गया। | समकालीन था । यह वाग्देवता को ब्रह्म समझता था। विष्णु जालंधर का रूप ले कर वृन्दा के पास आया। वृंदा | जिन-जित्वन् देखिये। ने विष्णु को, द्वारपालद्वारा पराजित होने का शाप दिया। २. बर्बरिक, अर्हत् , ऋषभ एवं वृहस्पति देखिये।
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