Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
जानपदी
३. (सो. पूरु.) मिथिल का पुत्र । इसका पुत्र | किया है । स्मृतिचन्द्रिका में दी गयी, 'आंगिरस स्मृति' के सिंधुद्वीप (म. अनु. ७.३.कुं.)। जह्न आदि विश्वामित्र- | एक उद्धरण में, जातूकर्ण्य को उपस्मृतिकार कहा है। इसी कुल के लोग, महाभारत में कई जगह पुरुवंश में दिये | प्रकार विद्यार्थियों के कर्तव्य, अन्य जाति की स्त्री से विवाह हैं। दूसरे स्थल में भिन्न प्रतिपादन है (म. शां. ४९)। | का प्रतिबंध, श्राद्धकाल आदि के संबंध में जातूकण्य के
४. (सो. पूरु. कुरु.) भागवत, विष्णु, मत्स्य, तथा | सूत्र प्राप्त है । जातूकर्ण्य ने आचार तथा श्राद्ध आदि पर वायु के मत में कुरु के पाँच पुत्रों में तीसरा । इसका पुत्र काफी प्राचीन सूत्र लिखे थे । बारह राशियों में से, कन्या सुरथ । उस से हस्तिनापुर में कुरुवंश का विस्तार हुआ। | राशि के संबंध में जातूकण्य के एक श्लोक का उल्लेख, अपरार्क ५. तामस मन्वन्तर का एक ऋषि ।
ने किया है। इससे प्रतीत होता है कि, जातूकर्ण्य का काल जाजलि-एक ऋषि । इसे अपने तप पर घमंड हो | ईसवी सन २०० से ४०० के बीच का होगा। श्रौतसूत्र में गया था। तुलाधार नामक एक धर्मात्मा वैश्य से संवाद | एवं हलायुध तथा हेमाद्रि के ग्रंथों में भी इसके आधार करने पर, इसका घमंड़ नष्ट हुआ । इसे पश्चिमी समुद्र के | लिये गये है (का. श्री. ४.१.२७, २०.३.१७; २५.७. किनारे पर मुक्ति मिली (म. शां. २५३-२५७; भा. ४. | ३५, सां. श्री. १.२.१७, ३.१४; २०.१९; १६.२९.६)। ३१.२)।
| २. (सू. दिष्ट.) भागवत के मत में देवदत्त पुत्र । २. विष्णु, वायु, ब्रह्मांड तथा भागवत के मत में व्यास | ३. (सू. नरि.) एक ऋषि (म. स. ४.१२)। की अथर्वन् शिष्यपरंपरा के पथ्य का शिष्य । अग्निवेश्य का यह नामांतर था (भा. ९.२.२१)।
३. भास्करसंहिता के वेदांगसारतंत्र का कर्ता (ब्रह्मवै. ४. व्यास की ऋशिष्य परंपरा के शाकल्य मुनि का २.१६)।
शिष्य । इसने शाकलसंहिता का अध्ययन किया था ४. ऋग्वेदी श्रुतर्षि ।
(व्यास देखिये)। जाटासुरि-जटासुर के पुत्र अलंबुष का नामांतर । ५. वसिष्ठगोत्र का प्रवर । जाटिकायन-एक ऋषि । शांत्युदक करते समय किस
६. एक व्यास (व्यास देखिये)। जातूकर्ण ऐसा पाठ मंत्र का उपयोग करना चाहिये, इस विषय में इसका मत
भी उपलब्ध है। यह जरदुष्ट्र से मिलने के लिये ईरान. दिया गया है (कौ. ग. ९.१०)।
गया था (दसतिर.१३.१६३)। जात शाकायन्य-एक ऋषि । कर्म के एक विशिष्ट | ७. ब्रह्मांड पुराण की परंपरा का एक आचार्य । संप्रदाय प्रवर्तक के नाते इसका के उल्लेख है (क. सं. | जातूष्ठिर-एक व्यक्ति । इंद्र ने इसकी सहायता की २२.७)। यह शंख कौष्य का समकालीन था। | थी (ऋ. २.१३.११)। जातूकर्ण-जातूकर्ण्य ६. देखिये ।
जान-वृश का पैतृक नाम । जातूकर्ण्य--आसुरायण एवं यास्क का शिष्य । इसका जानांक-ऋजित् (ते. सं. २.३.८.१; क. सं. शिष्य पाराशर्य (बृ. उ. २.६.३; ४.६.३)। यह कात्या
१), तथा अयस्थूण (बृ. उ. ६.३.१०)का पैतृक नाम । यनी का पुत्र था (सां. आ. ८.१०)। अलीकयु वाचस्पत्य
उपनिषदों में इसे चूल भागवित्ति का शिष्य तथा तथा अन्य ऋषियों का यह समकालीन था । अन्य काफी | सत्यकाम जाबाल का गुरु कहा गया है। उपरोक्त वर्णित स्थानों में इसका उल्लेख है (ऐ, आ. ५.३.३; सां. श्री. सार जानाक एक ह या अनक, यह कहा नहीं जाता। १.२.१७, ३.१६.१४, २०.१९, १६.२९.६, का. श्री. | २. एक ऋाष । विश्वतर के सोमयाग में, श्यापर्ण के ४.१.२७; २०.३.१७, २५.७.३४; सां. बा. २६.५)।। प्रवश करन क बाद, एक विशिष्ट पद्धति की सोम की संधिनियम के बारे में विचार करनेवाला, यह एक
परंपरा बताई गयी। वह परंपरा ऋतुविद् ने जानकि को आचार्य था (शु. प्रा. ४.१२३; १५८५.२२)। सांख्या
सिखायों (ऐ. ब्रा. ७.३४)। यन श्रौतसूत्र में इसे जल जातूकर्ण्य कहा है।
| ३. दुर्योधनपक्षीय क्षत्रिय राजा (म. आ. ६१.३६ )। ____एक पैतृक नाम के नाते, जातूकर्ण्य शब्द का उपयोग
स्वर्ग में रहनेवाले चंद्रविनाशन दैत्य का यह अंशावतार भी प्राप्त है। ___धर्मशास्त्रकार-विश्वरूप ने, वृद्ध याज्ञवल्क्य से लिये गये
जानंतपि--अत्यराति का पैतृक नाम । एक उद्धरण में, जातूकर्ण्य का धर्मशास्त्रकार के नाते उल्लेख जानपदी--जालपदी या जालवती का नामांतर ।
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था।