Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
जरित
प्राचीन चरित्रकोश
आधार से संबंध जोड़ा है । महाभारत तथा अनुक्रमणी| जहावी-यह शब्द ऋग्वेद में दो बार आया है (ऋ. में प्रथम पुत्र के नाम में मतभेद है । महाभारत में जरि- | १.११६. १९; ३.५८.६)। जन्हु की स्त्री, वा सायण के तारि नाम दिया है । अनुक्रमणी एवं बृहद्देवता ने प्रथम | मत में जन्हु का वंश, यों इस शब्द का अर्थ होगा (जन्हु पुत्र का नाम जरितृ बता कर, माता का नाम नहीं दिया है। | देखिये)।
जरूथ-पानी में रहनेवाला कोई राक्षस रहा होगा | जह्व-सो. अमा.) भागवत के मत में होत्रकपुत्र, एवं (ऋ. १०.८०.३)। वसिष्ठ ने प्रज्वलित अग्नि से इसे
विष्णु तथा वायु के मत में सुहोत्रपुत्र। भस्म किया (ऋ. ७.९.६)। जरदुष्ट्र के साथ इसकी तुलना की जाती है।
___जह्न तथा वृचीवत् में विरोध था। विश्वामित्र जाह्नव जर्वर--सर्पसत्र में गृहपति ( यजमान) (पं. ब्रा. | ने वृचीवतों को परास्त किया। राष्ट्र का स्वामित्व विश्वा२५.१३)।
मित्र जाह्वव ने प्राप्त किया (ता. ब्रा. २१.१२.२)। जल जातकर्ण्य--काशी विदेह तथा कोसल के लोगों विश्वामित्र को सौ पुत्र थे। फिर भी विश्वामित्र ने का वा राजाओं का पुरोहित (सां. श्री. सू. १६.२९.६ | शुनःशेप को अपना पुत्र माना । शुनःशेप का देवरात नाम जातूकर्ण्य देखिये)।
रख दिया। इतना ही नहीं, उसे सब पुत्रों में ज्येष्ठत्व जलद-अत्रिकुल का गोत्रकार ।
दिया । पहले पचास पुत्रों ने देवरात को ज्येष्ठ मानना जलंधर--कश्यपकुल का गोत्रकार ।
अमान्य किया। दूसरे पचास पुत्रों का मुखिया २. महाघमंडी तथा त्रैलोक्य विजयी गृहस्थ । इसको
मधुच्छंटस् था। उन्होंने देवरात का ज्येष्ठत्व मान लिया। शिव ने 'अंगुष्ठरेखोत्थ' चक्र से मारा (शिव. शत.
| विश्वामित्र ने देवरात को जल तथा गाथिन् का आधिपत्य
दिया। यज्ञ, वेद, तथा धन का उसे अधिकारी बनाया जलसंध--अंगिरा कुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि । इसका । (ऐ. ब्रा. ७.१८)। नाम जलसंधि दिया गया है।
इससे पता चलता है कि, शुनःशेप का कुलनाम जद्द . २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने इसका
था, तथा विश्वामित्र का कुलनाम गाथिन् वा गाधि था। वध किया.(म. भी. ६०.२८; क. ६२.४)।
दोनो कुलों का उत्तराधिकारी शुनःशेप ( देवरात) था । ... ३. मागधराज । यह रथवर था (म. आ. १७७.११;
अत एव, उसको यामुष्यायण कहते हैं। • उ. १६४.२४ )। भारतीय युद्ध में यह दुर्योधन के पक्ष
__जह्न शब्द से जहावी शब्द हुआ। जहावी शब्द ऋग्वेद में था । यह सात्यकि द्वारा मारा गया । यह बड़ा शूर एवं • 'शुचिभत था (म. द्रो. ९१.४५)।
| में दो बार आया है । 'जह्न की प्रजा,' यों उस शब्द का अर्थ जलसंधि-जलसंध १. देखिये।
है (ऋ. १.११६.१९;३.५८.६)। जलापा-ब्रह्मवादिनी । यह मानवी थी (ब्रह्मांड. २. अमावसुवंश के जह्न तथा पूरुवंश के जह्न दोनों बिलकूल ३३.१७)।
भिन्न थे। नामसाम्य से, कई पुराणों में अमावसुवंश के जलाभित-आलुकि का पाठभेद ।
विश्वामित्रादि लोक, पूरुवंश के जह्न के वंश में दिये गये जलयु--(सो. पूरु.) भागवत, विष्णु, वायु तथा | हैं। वस्तुतः विश्वामित्रादि लोग अमावसुवंश में उत्पन्न महाभारत के मत में रौद्राश्व के दस पुत्रों में से एक (म. हुए है। जह्नवंश से उनका कोई संबंध नहीं हैं (भरत आ. ८९.९)।
एवं विश्वामित्र देखिये)। जल्प- तामस मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ।
२. (सो. पूरु.) अजमीढ़पुत्र | इसकी माता का नाम जव-दंडकारण्य के विरोध राक्षस का पिता ।
केशिनी था (म. आ. ८९.२८; अग्नि. २७८.१६)। जविन--भृगुकुल का गोत्रकार ।
अजमीढ़ का पिता हस्तिन् ने हस्तिनापुर की स्थापना की। जवीनर-(सो. नील.) मत्स्यके मत में भद्राश्वपुत्र। भगीरथ ने लायी हुयी गंगा इसने रोकी थी। भगीरथ ने इसे भागवत में यवीनर, वायु में यवीयस् तथा विष्णु में | उसे फिर मुक्त किया (वा. रा. बा. ४३; वायु. ९१)। प्रवीर कहा गया है।
गंगा को जाह्नवी कहने का यही कारण है। २३१