Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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जनमेजय पारीक्षित
प्राचीन चरित्रकोश
जमदग्नि
७. प्रमदक, ८. श्वेतकेतु, ९. पिंगल, १०. असित, इसने समाज में मान्यता प्राप्त कर ही दी। इसलिये ११. देवल, १२. नारद, १३. पर्वत, १४. आत्रेय, | इसे महावाजसनेय कहते हैं (मत्स्य. ५०.५७-६४; वायु. १५. पुंड, १६. जठर, १७. घालघट, १८. वात्स्य, | ९९. २४५-२५४)। १९. श्रुतश्रवस् , २०. कोहल, २१. देवशर्मन् ,२२.मौद्गल्य, जनश्रुत शांडिक्य-जनश्रुत याने लोकप्रसिद्ध । यह २३. समसौरभ (म. आ. ५३.४-९)।
हृस्वाशय का शिष्य था (जै. उ. ब्रा. ३.४०.२)। व्यास के शिष्य वैशंपायन ने जनमेजय को भारत कथन | जनश्रुत वारक्य-एक आचार्य (जै. उ. ब्रा. ३. किया (म. आ. १.८-९; क. ३)। इसे काश्या नामक | ४१.१)। पत्नी से दो पुत्र हुए; एक चंद्रापीड तथा दूसरा सूर्यापीड जनापीड--(सो. तुर्वसु.) वायुमत मं शरूथपुत्र । (ब्रह्म. १३.१२४)। इसने संर्पसत्र किया, जिसमें तुर ब्रह्मांड में इसे आडीर कहा है। कावर्षय पुरोहित था (भा. ९.२२.३५)।
जनार्दन-मित्रसह ब्राह्मण का पुत्र । यह हंसडिंभक यह बडा दानी था। इसने कुंडल तथा दिव्य यान का मित्र था (ह. व. ३. १०४.४)। ब्राह्मणों को दान दिये (म. अनु. १३७.९)।
जंतु-(सो. पूरु. ऋश.) विष्णुमत में सुधन्वन् का सर्पसत्र के बाद राजा जनमेजय ने पुरोहित, ऋत्विज | पुत्र । भागवत में इसे जह्न कहा है। आदि को एकत्रित कर के, अश्वमेध का प्रारंभ किया। २. (सो. यदु. क्रोष्टु.) पुरुदतपुत्र । वहाँ व्यास प्रगट हुआ। उस समय इसने व्यास की ३. (सो. नील.) भागवत, विष्णु, मत्स्य तथा वायु के यथाविधि पूजा की। कौरव-पांडवों के युद्ध के संबंध में मत में सोम का ज्येष्ठ पत्र। अनेक प्रश्न पूछे। उससे कहा, 'अगर आपको यह ज्ञात |
| जंतुधना यातुधान की माता। था कि, इस युद्ध का अन्त क्या होगा, तो आपने उन्हें
| जन्यु-तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। परावृत्त क्यों नहीं किया ?' व्यास ने कहा, 'हे राजन् ! इसके लिए जन्य नाम भी प्रयुक्त है (पा. स. ७)। उन्होंने मुझसे पूछा न था। बिना पूछे मैं किसी को कुछ
जपातय-पराशरकुल का गोत्रकार । पाठभेद-स्यातभी नहीं बताता। तुम्हारे इस अश्वमेध में इन्द्र बाधा डालेगा तथा इतःपर पृथ्वी पर कहीं भी अश्वमेध न
जबाला-स्यकाम जाबाल की माता का नाम। .. होगा'।
जमदग्नि-एक ऋषि तथा परशुराम का पिता। दूसरा जनमेजय पारीक्षित अत्यंत धार्मिक था। इसने | ऋग्वेद में इसका अनेक बार उल्लेख आया है (ऋ. ३.६२. अपने यज्ञ में वाजसनेय को ब्रह्मा बनाया। तब वैशंपायन
| १८८.१०१.८,९.६२.२४,६५.२५, अ. वे. ४.२९.३)। ने इसे शाप दिया। ब्राह्मणों ने क्षत्रियों का उपाध्यायकर्म इन निर्देशों से मित्रावरुण, अश्वियों एवं सोम से जमदग्नि बंद कर दिया। परंतु वाजसनेय लोगों की सहायता से | का संबंध प्रतीत होता है। सौदास के यज्ञ में, वसिष्ठपुत्र इसने दो अश्वमेध किये। यह पराक्रमी होने के कारण, शक्ति ने विश्वामित्र को बाद में पराजित किया। उसे यज्ञ अन्य क्षत्रियो ने इसका समर्थन किया। वाजसनेयों का में से भगा दिया। तब सूर्य से ससर्परी नामक वाणी का समर्थन करने के कारण, ब्राह्मणों ने इसे पदच्युत कर सामथ्र्य बढानेवाली विद्या ला कर, जमदग्नि ने उसे विश्वाअरण्य में भेज दिया। ब्राह्मणों के साथ कलह करने से मित्र को दी तथा उसके कुल की वृद्धि की । ससर्परी का इसका नाश हुआ (कौटिल्य पृ. २२)। इसके बाद | अर्थ है भाषणकौशल्य । इस स्थान पर, जमदग्नि को वयोवृद्ध शतानीक राजा बना।
कहा है (ऋ. ३.५३.१५-१६)। यहाँ बहुवचन का ___ इस समय तक, याशवल्क्य द्वारा उत्पन्न वेद को निर्देश होने के कारण, यह कुल का निर्देश प्रतीत होता है। प्रतिस्पर्धी वैशंपायनादि ने मान्यता नहीं दी थी। वाजसनेयों | संहिता ग्रंथों में भी, यह विश्वामित्र के पक्ष का, तथा को राज्याश्रय प्राप्त होने के बाद भी, वैशंपायनों ने काफी वसिष्ठ के प्रतिपक्ष का बताया गया है (तै. सं. ३.१.७.३)। गडबड की। वादविवाद कर के, वाजसनेयों को हराने के | परंतु हरिश्चंद्र के राजसूय में विश्वामित्र होता, वसिष्ठ ब्रह्मा काफी प्रयत्न किये। परंतु जनमेजय ने उनकी एक नहीं | तथा जमदगि अध्वर्य थे (ऐ. ब्रा. ७.५६)। चतूरात्र चलने दी। लोगों का तथा ब्राहाणों का विरोध, इतना ही नामक यज्ञ करने के कारण, इसके वंश में कोई भी दरिद्री नहीं, राज्यत्याग भी स्वीकार किया। परंतु वाजसनेयों को नहीं हुआ (तै. सं. ७.१.९.१; पं. बा. २१.१०)।
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