Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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चन्द्रहास
प्राचीन चरित्रकोश
चन्द्रहास
चन्द्रहास-केरलाधिपति सुधार्मिक राजा का पुत्र। | करने दो ।' आठ वर्ष की आयु में इसका व्रतबंध हुआ। इसका जन्म मूल नक्षत्र पर हुआ था। इसके अतिरिक्त, तदनंतर इसने वेदाध्ययन किया । बाद में यह धनुर्विद्या दारिद्यदर्शक छठवीं अंगुलि इसके चायें पैर को थी। में भी प्रवीण हो गया। पंद्रह वर्ष की आयु होते ही
इस अशुभ चिन्ह के कारण, इसका जन्म होते ही इसने दिग्विजय करने की इच्छा दाई । परंतु कुलिंद ने शत्रुओं ने इसके पिता का वध किया। इसकी माता ने कहा, 'अपनेसे बलवान राजाओं को भला तुम किस सहगमन किया। इस प्रकार यह अनाथ हो गया। एक
प्रकार जीत सकोगे ? जाने की इच्छा हो, तो जाओ। दाई ने इसको सम्हाला । वह इसे कौतलकापुरी ले गई।
कौंतल राजा के दुश्मन मुझे हमेशा त्रस्त करते है । क्योंकि वहाँ तीन वर्षों तक मजदूरी कर के उसने इसका भरण
| मैं उसका अंकित हूँ। पोषण किया। कुछ दिनों के बाद वह मृत हुई। भिक्षान्न यह सुन कर चन्द्रहास दिग्विजय करने गया । इसने सेवन कर के इसने दिन बिताये। बाद में कुछ स्त्रियों ने सब राजाओं को जीत लिया। इस प्रकार विजयी हो कर इसका पालन किया। यह पाँच साल का हुआ, तब अन्य तथा अपरंपार संपत्ति ले कर यह चंदनावती लौटा । लड़कों में खेलने लगा। इसे बहुत स्त्रियों ने नहला यह सुन कर कुलिंद इसका स्वागत करने आया। धुला कर खाना खिलाया।
बाद में कुलिंद के कथनानुसार, चन्द्रहास ने अपने __एक दिन सहजवश यह धृष्टबुद्धि प्रधान के घर गया। सेवकों द्वारा कौंतल राजा को करभार भेजा। सेवकों ने वहाँ ब्राह्मणभोजन चालू था । वहाँ निमंत्रित योगीश्वर तथा उसे बताया, 'कुलिंद राजा सुखी है। उसके पुत्र मुनियों को चन्द्रहास को देख कर, अत्यंत विस्मय हुआ। चन्द्रहास ने दिग्विजय कर के यह संपत्ति भेजी है। इससे उन्होने इसे आशीर्वाद दिया कि, यह राजा बनेगा। उसी | विस्मयाभिभूत हो कर कौंतल चन्द्रहास को देखने चंदनाप्रकार उन्होने धृष्टबुद्धि से कहा, 'तुम्हारी संपत्ति की रक्षा वती आया। कुलिंद से मिल कर उसने कहा, 'पुत्रजन्म भी यही करेगा।' इससे कुंद्ध हो कर तथा मन में शंका | का वृत्त तुमने हमें क्यों नहीं सूचित किया। चंद्रहास आ कर, उसने इस बालक को जल्लादों के हाथों में सौंप | का सारा जन्मवृत्तांत कुलिंद ने उसे बताया। इससे कौंतल दिया। जल्लाद वध करने के लिये, इसे अरण्य में ने चन्द्रहास को पहचान लिया, तथा मन ही मन कुछ लाये। फिर भी यह पूरे समय हास्यवदन ही था। मार्ग में | शंकित हुआ। पुनः चन्द्रहास का वध करने के विचार मिला हुआ शालिग्राम, इसने बडी भक्ति से अपने मुख में उसके मन में आये । इस संबंध में एक पत्र अपने पुत्र रखा था। जल्लादों ने तीक्ष्ण शस्त्र उठाये। इसने उनकी मदन को लिख कर, वह ले जाने के लिये चन्द्रहास स्तुति की । इससे जल्लादों के मन में इसके प्रति पूज्य बुद्धि से कहा। उत्पन्न हुई। उन्होंने इसका वध न कर के, केवल छठवी | चन्द्रहास कुंतल नगरी के लिये रवाना हुआ। राह में अंगुलि काट ली। वही अंगुलि धृष्टबुद्धि प्रधान को दे एक रम्य स्थान पर यह सोया था। उस स्थान पर कर इनाम प्राप्त किया।
राजकन्या चंपकमालिनी अपनी सखियों के साथ आई। ____जल्लादों द्वारा वन में छोड़े जाने के बाद, यह अरण्य | उसके साथ धृष्टबुद्धि प्रधान की कन्या विषया भी थी। में इधर उधर घूमने लगा । इस समय कुलिंद देश का उसने चन्द्रहास को सरोवर के किनारे निद्रामग्न अवस्था राजा, मृगया के हेतु से इसी अरण्य में आया था। इस में देखा । अपने पैरों से नूपुर निकाल कर धीरे-धीरे वह बालक को देख कर, राजा का मन द्रवित हुआ। उसने | उसके पास गई। वहाँ उसने एक पत्र देखा । उसने वह इसकी पूछताछ की । पश्चात् चंदनावती नगरी में इसे पत्र पदा। उस पत्र में चन्द्रहास के लिये विषप्रयोग की अपने साथ ले जा कर, उसे रानी मेधावती को सौंप दिया। सूचना थी। इससे उसका प्रेमी हदय भग्न हो गया । राजा ने इसका नाम चन्द्रहास रखा। सब विद्याएँ भी उसने पत्र के विषमस्मै' शब्द के बदले आम के गोंद इसे सिखायी । चन्द्रहास के कारण कुलिंद में सर्वत्र से 'विषयास्मै' लिखा । पश्चात् पत्र बंद कर वहीं रख आनंद फैल गया । शिक्षाप्राप्ति के समय, चन्द्रहास केवल | दिया । इस प्रकार धृष्टबुद्धि से इसकी रक्षा हुई । बाद में 'हरि' शब्द का ही उच्चारण करता था। इससे कुपित | यह पत्र ले कर चन्द्रहास, मदन के पास गया । यह पत्र हो कर गुरु ने इसकी शिकायत राजा के पास की । परंतु, पढ कर मदन को अत्यंत आनंद हुआ। इधर विषया ने राजा ने कहा, 'इसकी इच्छा के अनुसार इसे व्यवहार | भी देवी की, 'यही पति मुझे प्राप्त हो' इस इच्छा से
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रण कुलिंबाएं भी सूचना थी।