Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
चाणक्य
प्राचीन चरित्रकोश
चार्वाक
चाणक्य-एक विद्वान् ब्राह्मण । शिशुनागवंश का | चारुनेत्रा--एक अप्सरा (म. स. १०.११)। अंतिम राजा महानंदिन था। इसके बाद शूद्रापुत्र नंद | चारूपद--(सो. पूरु.) भागवत मत में मनस्यु का गद्दी पर आया । उसका तथा सुमाल्य आदि अन्य आठ | पुत्र । इसका नाम विष्णु में अभय, मत्स्य में पीतायुध नंदों का संहार इसने किया। मौर्य चंद्रगुप्त को गद्दी पर | तथा वायु में जयद दिया गया है। बैठाया। नंदो का राज्यकाल सौ वर्षों का था। उनमें से चारुमती--कृष्ण तथा रुक्मिणी की कन्या। यह अंतिम बारह वर्षों में आठ नंदों का इसने संहार किया (भा. | कृतवर्मन् के पुत्र बलि की भार्या थी। १२.१; विष्णु ४.२२-२४; वायु. ९९. मत्स्य. २७२; | चारुमत्स्य--विश्वामित्र का एक पुत्र (म. अनु. ब्रह्मांड. ३.७४) । इसे ही विष्णुगुप्त, कौटिल्य तथा कौटिलेय | ७.५९ क.)। कहते हैं। इसका 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' एक सुप्रसिद्ध ग्रंथ
चारुवर्मन्-दशार्णाधिपति । इसकी कन्या सुमना । है। (विष्णुगुप्त देखिये)।
वह दम की पत्नी थी (मार्क. १३०)। चाणिक्य-एक राजर्षि । शुक्लतीर्थ पर तप करने के
. चारुशीर्ष-इन्द्र का प्रियमित्र तथा एक राजर्षि । कारण, इसे सिद्धि प्राप्त हुई (पन. सृ. १९.१४)।
यह आलंब गोत्रज था। इसलिये इसका आलंबायन नाम चाणूर--युधिष्ठिर की सभा का एक क्षत्रिय (म. स.
प्रचलित हुआ। इसने गोकर्णक्षेत्र में सौ वर्षों तक उग्र ४.२२)।
तपस्या की । इसे सौ पुत्र हुए (म. अनु. १८.५)। २. कंस की सभा का एक मल्ल । कृष्ण धनुर्याग के लिये
चारुहासिनी--कौंडिन्यपुर के भीम राजा की पत्नी मथुरा आया, तब उसने इसका वध किया (म. स. परि. |
| (गणेश. १.१९.७) । रुक्मांगद इसका पुत्र था। १. क्र. २१ पंक्ति . ८४६; भा. १०.४४)।
चार्वाक-नास्तिक जड़वाद का प्रातिनिधिक आचार्य । चातकि-- गुकुल का गोत्रकार।।
यह बृहस्पति का शिष्य था। बृहस्पतिसूत्र जडवाद का चातुर्मास्य-सवितृ नामक पाँचवें आदित्य एवं पृश्नी
ग्रंथ है । इस ग्रंथ में केवल प्रयक्ष प्रमाण तथा ऐहिक सुख की संतानों में से एक (भा. ६.१८.१)।
को ही परमश्रेय माना है। . चांद्रमसि-भृगुकुल का गोत्रकार । • चांधनायन--आनंदज का पैतृक नाम (वं. बा.१.१)। । तत्त्वज्ञान-चार्वाकप्रणीत 'नास्तिक जड़वाद' के चामुंडा-दुर्गा देखिये।
| अनुसार, केवल भौतिक जगत् ही सत्य है। पंचमहाभूतों में - चांपेय--विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ७.५८. से पृथ्वी, जल, वायु तथा अग्नि चार भूत प्रत्यक्ष एवं सत्य कुं.)।
है, आकाश अप्रत्यक्ष है । इन चार भूतों के योग से ही विश्व चायमान--अभ्यावर्तिन का पैतृक नाम (ऋ.६.२७. के समस्त पदार्थों की उत्पत्ति है। आत्मा पृथक नहीं है। चार ५८)।
भूतों के योग से ही चैतन्य उत्पन्न हो जाता है। मरने के चारु--कृष्ण तथा रुक्मिणी का पुत्र ।
बाद जीव नाम की कोई वस्तु शेष नहीं रह जाती। चतुर्भूतों २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्रपुत्र ।
का विलय हो जाता है। उनके योग से उत्पन्न चैतन्य नष्ट चारुगुप्त-कृष्ण तथा रुक्मिणी का पुत्र ।
| हो जाता है । अतः परलोक, स्वर्ग, नरक, ये सब कविचारुचंद्र-कृष्ण तथा रुक्मिणी का पुत्र ।
कल्पनाएँ है। संसार का नियंत्रण करनेवाला राजा ही चारुचित्र--(सो. कुरु.)धृतराष्ट्रपुत्र । भारतीययुद्ध |
परमेश्वर है । धर्मकर्म धूर्त पुरोहितों का जीविकासाधन में भीम ने इसका वध किया (म. द्रो. १११.१९)। |
है। भस्मीभूत देह का पुनरागमन नही होता । अतः जबचारुचित्रांगद-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्रपुत्र ।
तक जिये सुखपूर्वक जिये । ऋण कर के भी धृतपान करे । चारुदेष्ण-विष्णु, भागवत, तथा महाभारत के मत
| इस मत के प्रतिपादको में पुराण कश्यप, अजितकेशकंमें कृष्ण तथा रुक्मिणी का पुत्र । इसकी बहन चारुमती। | बलिन् , पकुध, काच्छायन आदि आचार्य प्रमुख थे। यह भोज के हाथों मारा गया। (म. मौ. ४.४३)। इस विचारधारा के प्रतिपादन के लिये, चार्वाक के नाम
२. मद्रदेशीय राजपुत्र । इसकी पत्नी मंदोदरी। का प्रातिनिधिक रूप से निर्देश किया जाता है । इस मत
चारुदेह-कृष्ण तथा रुक्मिणी का पुत्र (भा. १०. | का प्रतिपादन करनेवाले चार्वाकदर्शनादि कई ग्रंथ भी ६१.८)।
| उपलब्ध है। प्रा. च. २७]
२०९