Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कौसल्या
प्राचीन चरित्रकोश
क्रतु
१०)। परंतु कैकेयी एवं उसके परिवार के लोग बार ऋतु की दो बहनें पुण्य तथा सत्यवति थी। ये दोनों बार इसका अपमान करते थे (वा. रा. अयो. २०. पूर्णमाससुत पर्वश की स्नुषायें थी (ब्रह्माण्ड २.१२. ३९)। कैकेयी व्यंगवचनों से इसका मर्मभेद करती थी | ३६-३९)। (वा. रा. अयो. २०.४४)।
यह शिववर से वैवस्वत मन्वन्तर के प्रारंभ में उत्पन्न राम इसके पास वन जाने के लिये अनुमति माँगने हुआ। ब्रह्माजी ने प्रजा निर्माण करने के लिये, जो मानस गया। तब लक्ष्मण ने, पिता का निग्रह कर राज्य पर अधिकार पुत्र निर्माण किये थे, उनमें यह था (मत्स्य.३.६-८)। करने का उपाय सुझाया। उस समय कौसल्या ने प्रच्छन्न | यह प्रमुख प्रजापतियों में से एक था (मै. उ. २.३; मत्स्य, रूप से संमति दी (वा. रा. अयो. २१. २१)। १७१.२७-२८; ३.६-८; वायु. ६५.२२; विष्णु. १.७. संभवतः निरुपाय हो कर इसने संमति दी होगी। राम ४-५:१०; म. स. ११.१२; आ. ५९.१०, ६०.४; शां. को इस बात की स्पष्ट कल्पना थी कि, वन जाने के बाद | २०४)। यह ब्रह्मदेव के हाथ से उत्पन्न हुआ (भा. ३. माता की कुछ भी कदर नहीं होगी (वा. रा. अयो. | १२)। कर्दम प्रजापति, की नौ कन्याओं में से क्रिया ३१.११)। पंद्रहवें वर्ष राम के लौटने पर भरत राज्य | इसकी स्त्री थी । उससे इसे साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। एवं कोश लौटा देगा, इसकी संभावना न थी (वा. रा. | ये वालखिल्य ऋषि अंगूठे जितने बड़े तथा ब्रह्मर्षि थे। अयो. ६१.११)।
उनके चित्रकेतु, सुरोचि, विरजा, मित्र, उल्वण, वसुभृद्यान राम के वन चले जाने के बाद, यह दशरथ से
एवं द्युमान आदि नाम थे। उसी तरह, इसकी दूसरी स्त्री मर्मस्पर्शी बातें करने लगी। उस समय दयनीय | से शक्ति आदि पुत्र हुए (भा. ४.१)| उन्नति नामक स्त्री अवस्था में दशरथ ने कौसल्या को हाथ जोडे । तब से वालखिल्य हुए (विष्णु. १.१०.१०-१५)। कौसल्या को अपनी भूल ध्यान में आयी। पुत्रशोक से | २. एक ऋषि । वैवस्वत मन्वन्तर में इसे परिवार व्याकुल होने के कारण, कटुवचन कहे, यह बात उसने नही था (वायु. ७०.६६; ब्रह्माण्ड, ३.८; लिंग. १. मान्य की (वा. रा. अयो. ६२.१४)। .
६३.६८; कूर्म. १.१९.)। इसने अगस्त्यं के पुत्र यह मृदु स्वभाव की थी। पतिसुख से वंचित तथा - इध्मवाह को गोद में लिया था। इस नाम से ही ऋतु सौतद्वारा सताये जाने के कारण, यह उदासीन वृत्ति से | के वंशजों को आगस्त्य नाम पड़ा (मत्स्य. २०२.८.)। रहती थी । इस वृत्ति का राम के चरित्र पर बहुत परिणाम | कुछ पुराणों में बताया है कि, इससे ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुआ। राम के चरित्र में अंतर्भूत धार्मिकता का अंश नहीं हुई (वायु. ६५.४९-५०; ब्रह्माण्ड, ३.१. इसी की देन थी।
२. काशीराज की कन्या अम्बिका (म. आ. ३. पांचाल देश का एक क्षत्रिय । इसका कर्ण ने वध १००.४.१०७५*)।
किया (म. क. ५१.४६.)। ३. कृष्ण पिता वसुदेव की एक पत्नी |
४. एक राक्षस । वैश्वानरकन्या हयशिरा इसकी स्त्री कौसवी-द्रुपदपत्नी सौत्रामणी का नामांतर ।
थी (भा. ६.६.३४)। कौसि-भृगुकुल का गोत्रकार ।
.५. भृगुऋषि द्वारा उत्पन्न बारह भार्गव, देवों में से एक कौसुरबिंदु--प्रोति का पैतृक नाम ।
(वायु. ६५.८७)। इसकी माता पौलोमी (मत्स्य. कौसुरुबिंदि--प्रोति कौशंबेय का पैतृक नाम । १९५.१३-१४)। कोहल--मित्रविंद एवं प्रातरह का पैतृक नाम । ६. दस विश्वेदेवों में से एक । क्रतु--एक ऋषि । यह स्वायंभुव मन्वंतर में ब्रह्मा के | ७. श्रीकृष्ण का जांबवती से उत्पन्न पुत्र (भा. १०.६१. अपान से उपन्न हुआ। यह स्वायंभुव दक्ष का दामाद १२)। था। दक्षकन्या संतति इसकी पत्नी। इसे वालखिल्य ८. फाल्गुन माह में पर्जन्य नामक सूर्य के साथ घूमनेनामक साठ हजार पुत्र हुए। वे सब ऊर्ध्वरेत होने के | वाला यक्ष (भा. १२.११.४०)। कारण, उनका वंश नहीं है। ये सब अरुण के आगे सूर्य ९. उल्मूक एवं पुष्करिणी के छः पुत्रों में चौथा (भा. के साथ रहते है।
| ४.१३.१७)। १७२