Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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गौश्ल
प्राचीन चरित्रकोश
घटोत्कच
गौश्ल-यज्ञ में शस्त्रकथन का बुलिल आश्वतर का हुआ । इस में यह विष्णु के द्वारा मारा गया (मत्स्य. सांप्रदाय इसने अनुचित सिद्ध किया । वहाँ अपनी पद्धति | १५०-१५१)। से शस्त्रकथन करवाया (ऐ. ब्रा. ६.३०; गो. ब्रा, २. ६. ग्रामणी-देववती का पिता ।
ग्रामद-भृगुकुल का गोत्रकार । गौषाक्ति--इष श्यावाश्वि के शिष्य का नाम (जै.
ग्राम्यायणि--भृगुकुल का गोत्रकार। उ. ब्रा. ४.१६.१; पं. वा. १९. ४. ९; गोषूक्तिन् ।
ग्रावा--कश्यपप्रजापति की स्त्री। दक्ष प्रजापति की काण्वायन देखिये)।
कन्याओं में से एक।
ग्रावाच्यवन--ब्रह्मदेव के पुष्करक्षेत्र के यज्ञ के ग्रंथिक--पांडव द्रौपदी सहित अज्ञातवास में थे, तब
होतृगणों में से एक ऋत्विज् (पन. सृ. ३४)। नकुल ने (विराट के घर) यह नाम धारण किया था
ग्रावाजिन--स्वायंभुव मन्वंतर का अजित् देव । (म. वि. १२.१०)।
___ ग्लाव मैत्रेय-एक आचार्य । बक दाल्भ्य तथा यह असन-तारकासुर का सेनापति । तारकासुर ने इंद्र एक ही है (छां. उ. १.१२.१.३; गो. बा. १.१.३१)। से युद्ध किया। वहाँ यह उसके साथ था (पद्म. स. पंचविश ब्राह्मण के सर्पसत्र में यह प्रस्तोतृ था। षड्विंश ४२)। आगे चल कर यम के साथ तारकासुर का युद्ध ब्राह्मण में भी इसका उल्लेख है (१.४)।
घटजानुक--एक ऋषि (म. स. ४.११)। प्रागज्योतिषपुर में थी। बल तथा बुद्धि द्वारा अपने को
घटोत्कच--(सो. कुरु.) भीम तथा हिडिंबा का पुत्र। जीतनेवाले पुरुष के साथ विवाह करने का, उसने प्रण जन्मतः इस का सिर घट के समान तथा केशरहित था, | किया था। सब की प्रेरणां से, बुद्धि, राक्षसीबिद्या तथा अतः इसका घटोत्कच (घट + उत्कच ) नामकरण हुआ। शरीरबल के क्षेत्र में, घटोत्कच ने उसे जीत लिया। इंद्रइस नाम के अतिरिक्त, इसे मैग्य, भैमसेनी, हैडिंब वा प्रस्थ में इसका विवाह मौर्वी के साथ सम्पन्न हुआ। इनका हैडिंबेय कहते थे (म. आ. १४३)। स्मरण करते ही पुत्र बर्बरीक था (स्कंद. १.२.५९-६०)। उपस्थित रहने का, इसने अपनी दादी कुन्ती से वादा
राजसूययज्ञ के समय, यह करभार लाने के लिए, किया था (म. आ. १४३.३७) । इसकी शिक्षा माता
दक्षिण दिग्विजय में लंका गया था (म. स. २८.३०९; के पास हुई। हिडिंबा ने इसे राक्षसीविद्याओं में प्रवीण
परि. १.१५)। कुंभकोणआवृत्ति ही में इसके लंकाबनाया।
प्रयाण का उल्लेख उपलब्ध है। बंबई की आवृत्ति में एक बार पांडव गंधमादन पर्वत पर चढ रहे थे।
। सहदेव द्वारा दूत भेजने का विवरण प्राप्त है। वह दूत आरोहण में, भीम के अतिरिक्त अन्य सब थक गये।
घटोत्कच ही होगा। इस बेला में, कुन्ती ने घटोत्कच का स्मरण किया । तुरन्त प्रकट हो कर, इसने ऋषियों के साथ सब को नरनारायण ___ महाभारत के अनुसार, यह बड़ा होने के बाद हिडिंबा आश्रम तक पहुँचा दिया (म. व. १४५.१-९)। इसे ले कर कुन्ती के पास आई। इस समय घटोत्कच का
पितृसेवा के उद्देश्य से हिडिंबा ने इसे पांडवों की ओर व्याह हो चुका था। महाभारत में इसकी पत्नी का नाम भेज दिया। धर्मराज ने इसका यथोचित गौरव किया, नहीं है। घटोत्कच की पत्नी देवी कामा की कृपा से अजेय एवं इसके विवाह का निश्चय किया । कृष्ण ने थी। उसे एक विचित्र प्रश्न पूछ कर, घटोत्कच काबू में कहा, 'मुरु दैत्य की कन्या मौर्वी (कामकटंकटा) लाया, तथा नख से सेना निर्मिति कर उसे जीत लिया। घटोत्कच के लिए योग्य हैं।' वह भगदत्त राजा के | इसके अंजनपर्वन् एवं मेघवर्ण नामक दो पुत्र थे ।