Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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गरुड
प्राचीन चरित्रकोश
गवाक्ष
इसके विभिन्न कार्यों से इसे विभिन्न नाम प्राप्त हुएं । उन- वारिशास्त्र तथा मयूरचित्रक नामक दो ग्रंथ उपलब्ध . में से, काश्यपि इसका पैतृक नाम तथा वैनतेय इसका मातृक | हैं । इन दोनों ग्रंथों में वर्षा के भविष्य के संबंध में विस्तीर्ण नाम है। सुपर्ण, तार्थ्य, सितानन, रक्तपक्ष, सुवर्णकाय, | जानकारी अर्थात् वायुविद्या है। मयूरचित्रक, गर्ग तथा गगनेश्वर, खगेश्वर, नागांतक, पन्नगाशान, साराति, भागुरि का संवादरूप ग्रंथ है (कविचरित्र)। गर्ग ने वास्तुविष्णुरथ, अमृताहरण, सुधाहर, सुरेंद्रजित्, वज्रजित्, शास्त्र पर एक ग्रंथ लिखा था (मत्स्य. २५२)। गरुत्मत् , तरस्विन् , रसायन, कामचारिन् , कामायुष, | ४. कलिंग देश का निवासी । मुख से विश्वनाथ का नाम चिराद आदि इसके अनेक नाम हैं। इसका रूप अति | लेते, यह कंधे पर गंगा की डोली लेकर जा रहा था । राह विचित्र था। इसके मस्तक, पर, चोंच तथा नख गरूड़पक्षी | में ब्रह्मराक्षस बने सोमदत्त तथा कल्माषपाद से इसकी भेंट के समान थे । शरीर तथा इंद्रियाँ मनुष्य जैसी थीं। । हुई । उनपर तुलसीमिश्रित गंगाजल डालने से सोमदत्त तर
इसीके वंश के पिंगाक्ष, निबोध, सुपुत्र तथा सुमुख ने | गया तथा कल्माषपाद पश्चात्तापदग्ध हुआ। सरस्वती के व्यासपुत्र जैमिनि की महाभारत पर की शंकाओं का द्वारा आश्वासन दिये जानेपर, छः मास काशी में रहकर निरसन किया (मार्क. ४)। ये चारों श्वास रोक कर वेद- कल्माषपाद अपने राज्य लौटा (नारद. १.१४१)। पठन करते थे (मार्क. ४.४)। इसने ही गरुडपुराण । ५. एक ऋषि ( पितृवर्तिन् देखिये)। इसने भीष्मकश्यप को बताया (गरुड़. १.२)। इसकी उपासना | पंचककव्रत किया था (पध्म. उ. २४)। काफ़ी प्राचीन है। इसकी गायत्री प्रसिद्ध है (महाना. ६. अंगिराकुल का गोत्रकार। ३.१५, गरुडोपनिषद् देखिये)। ।।
७. ऋषम नामक शिवावतार का शिष्य । गरुड केवल व्यक्ति का नाम न हो कर, समुदाय एवं ८. लकुलिन् नामक शिवावतार का शिष्य । मनुष्यजाति का नाम होगा।
गर्ग भारद्वाज-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ६.४७)। .. गर्ग-(सो. काश्य.) दिवोदासपुत्र प्रतर्दन के दो
गर्गभूमि--(सो. क्षत्र.) वायुमतानुसार गार्ग्यपुत्र । पुत्रों में से एक (ह. वं. १.३०)।
गर्दभीमुख-कश्यपकुल का गोत्रकार। २. (सो. पूरु.) मन्यु नृप का पुत्र । इसका पुत्र |
गर्दभीमुख शांडिल्यायन--एक आचार्य । इसका शिनि ।
गुरु उदरशांडिल्य (वं. ब्रा. २)। ३. यादवों का पुरोहित । इसने कृष्ण का नामकरण | गर्दभीविपीत-गौतमकुल का एक ऋषि । तथा उपनयन संस्कार किया (भा. १०.८)। देवकी को। २. भारद्वाजकुल का एक ऋषि । पुत्र होते ही तत्काल उनका वध करने का क्रम कंस ने | ३. एक तत्त्वज्ञ । जनक ने याज्ञवल्क्य को बताया कि, जारी किया। इन पुत्रों को दीर्घायु बनाने का उपाय | इसने श्रोत्र ब्रह्म है, ऐसा कहा है (बृ. उ. ४. १.५)। वसुदेव ने इससे पूछा । तब इसने देवीभागवत श्रवण | इसे विभीत भी कहते हैं। करने का उपाय उसे बताया । कारागृह में वह असंभव | गर्भ--(सो. तुर्वसु.) मत्स्य के मतानुसार यह था, इसलिये गर्गमुनि ने स्वयं देवीभागवत का पाठ किया। | तुर्वसुपुत्र है। देवी ने वरदान दिया कि, शीघ्र ही कृष्णावतार होगा गर्व--धर्म ऋषि का पुत्र । इसकी माता पुष्टि । (दे. भा. १.२)। गर्ग ने चौसष्ट कलाओं पर एक ग्रंथ गलूनस आाकायण--एक आचार्य । इसका तथा लिखा होगा (म. अनु. ४९.३८ कुं.)। गर्गस्मृति से | जैवलि का साम के बारे में संवाद हुआ है (जै. उ. ब्रा. हेमाद्रि तथा माधवाचार्य ने उद्धरण लिये हैं। १. ३८. ४)।
यह प्रसिद्ध ज्योतिषी था। इसने कृष्णजन्म का जातक | गवय--यह रामसेना का वानर था। राम ने जब ठीक ठीक कथन किया था। गर्गसंहिता नामक बारह | यज्ञ किया, तब अश्व के रक्षणार्थ शत्रुघ्न के साथ इसे भेजा हजार श्लोकों का कृष्णचरित पर एक ग्रंथ उपलब्ध है। | गया था (म. व. २६७.३; पद्म. स. ३९; पा. ११)। वह इसी गर्ग का है, ऐसा कहा जाता है। इतिहास पर | गवल्गन--यह सूत था तथा संजय का पिता था। लिखे गये इस ग्रंथ के अनुसार, ज्योतिष पर भी एक गवाक्ष-शकुनि का भ्राता। भारतीययुद्ध में यह गर्गसंहिता पहले होनी चाहिये। बृहद्गार्गीय संहिता | इरावत् के द्वारा मारा गया (म. भी. ८६.२४-३४)। नामक एक ग्रंथ हाल ही में पाया जाता है। गर्ग के | २. रामसेना का एक वानराधिपति (म. व. २६७. ४)। प्रा. च. २४]
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