Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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खर
प्राचीन चरित्रकोश
ख्याति
त्रिशिरस् तथा खर को ससैन्य मार डाला । यह सारी । इधर ज्ञाननिष्ठ केशिध्वज ने कर्मबंधन से मुक्त होने के घटना डेढ़ मुहूत्तों में हुई।
लिये, बहुत से यज्ञ किये। एक बार वह यज्ञ कर रहा था, प्रेक्षक के नाते उपस्थित अकंपन राक्षस भाग कर लंका तत्र निर्जन वन में एक व्याघ्र ने उसकी गाय को मारा । गया । उसने रावण को सारा वृत्तांत निवेदित किया उसने ऋविजों से इसका प्रायश्चित्त पूछा, जिन्होंने उसे (वा. रा. अर. १८-३१)। इस युद्ध में, यह बात कशेरू के पास भेजा । कशेरू ने भृगु के पास तथा भृगु ने स्पष्ट दिखाई देती है कि, राम धनुष से युद्ध करते थे। शुनक के पास प्रायश्चित्त पूछने को कहा । अंत में शुनक के राक्षसों के पास धनुष न थे। इसे मकराक्ष नामक कहने पर वह अरण्य में खांडिक्य के पास गया । खांडिक्य पुत्र था। इसने जनस्थान के ऋषियों को अत्यंत कष्ट ने उसे देखते ही उसकी निर्भर्त्सना की एवं उसके वध दिया था। इस कारण, इसकी मृत्यु से उन्हें बहुत आनंद के लिये तत्पर हुआ। परंतु केशिध्वज ने सारी स्थिति हुआ, तथा उन्होंने राम की अत्यंत प्रशंसा की ( वा.रा. निवेदन की। तब लांडिक्य ने यथाशास्त्र धेनुवध का अर. ३०)।
प्रायश्चित्त बताया। २. लंबासुर का भाई, एक असुर (मत्स्य. १७.६.७)।। । केशिध्वज ने तदनुसार यज्ञभूमि के स्थान पर जा कर, ३. विजर का पुत्र ।
यज्ञ सफल बनाया। खांडिक्य को गुरुदक्षिणा देना शेष खरवान्--विश्वामित्रकुल का गोत्रकार ।
रह गया । अतः केशिध्वज खांडिक्य के पास आया।
खांडिक्य पुनः उसका वध करने को उद्यत हुआ। खलीयस--व्यास की ऋशिष्यपरंपरा के शालीय
केशिध्वज ने बताया कि, 'वह वध करने नहीं आया है। का पाठभेद।
अपितु गुरुदक्षिणा देने आया है। आप गुरुदक्षिणा . खल्यायन--धूम्रपराशर के कुल में से एक एवं गण ।
माँगे'। खांडिक्य ने सब दुःखों से मुक्ति पाने का खशा-प्राचेतस दक्षप्रजापति तथा असिक्नी की
मार्ग उससे पूछा। केशिध्वज ने इसे देह की नश्वरता कन्या । यह कश्यप प्रजापति से ब्याही गयी थी। इससे
तथा आत्मा के चिरंतनत्व का महत्त्व समझाया, तथा कहा यक्ष राक्षस आदि उत्पन्न हुए।
कि, 'सारे दुखों का नाश योग के सिवा किसी अन्य मार्ग से खसृप-पितृवतिन् देखिये ।
नहीं हो सकता। तदनंतर खांडिक्य ने योगमार्ग का कथन खाडायन--एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये)। करने के लिये कहा । केशिध्वज ने उसे परब्रह्म का उपदेश खांडव-भृगुकुल के मित्रयकुल में उत्पन्न एक ब्रह्मर्षि। | कर, मोक्षपद के पास ले जानेवाला योग बताया (विष्ण. २. पौडव का पाठभेद ।
६.६-७; नारदं १.४६-४७; केशिन् दाभ्यं देखिये)। खांडवायन-एक ब्रह्मणवंश । परशुराम ने एक बडा
खाति–तामस मनु का पुत्र । भारी यज्ञ किया। उसमें पृथ्वी के साथ दस वाव | खादिर--द्राह्यायण का दूसरा नाम (द्राह्यायण ( अंदाजन दो गज ) लंबी तथा नौ वाव ऊँची सुवर्णमय | देखिये)। वेदिका कश्यप को अर्पण की। कश्यप की अनुमति से | खार्गलि--लुशाकपि का पैतृक नाम तथा मातृनामोद्गत अन्य ब्राह्मणों ने उसके टुकडे कर, आपस में बाँट लिये। नाम । इस कारण, वे ब्राह्मण खांडवायन नाम से प्रसिद्ध हुए खालीय--व्यास की ऋशिष्यपरंपरा के शालीय का . (म. व. ११७. ११-१३)।
| पाठभेद। खांडिक्य--(सू. निमि.) भागवतमत में मितध्वज- खिलि तथा खिलिखिलि--विश्वामित्रकुल का गोत्रकार पुत्र । यह क्षत्रिय था। इसे खांडिक्यजनक कहा गया है | एवं प्रवर । केशिध्वज इसका चचेरा भाई था। खांडिक्य कर्ममार्ग में | खेल--एक राजा । इसकी स्त्री विश्पला । इसका पैर अत्यंत प्रवीण था। केशिध्वज आत्मविद्याविशारद था। | युद्ध में टूट गया। तब अश्वियों ने एक रात में इसे लोहे एक दूसरे को जीतने की इनकी इच्छा हुई। केशिध्वज | का पैर लगा कर, दूसरे दिन युद्ध के लिये तैयार कर दिया ने खांडिक्य को राज्य के बाहर भगा दिया। यह | (ऋ. १.११६.१५)। अगस्य इसके पुरोहित थे। मंत्री तथा पुरोहित के साथ अरण्य में चला गया (भा. | ख्याति--(स्वा. उत्तान.) भागवत मत में उल्मुक ९.१३.२१)।
| तथा पुष्करिणी का पुत्र । १७८