Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कौशल्य
प्राचीन चरित्रकोश
कौशिक
४. सुकर्म ब्राह्मण का शिष्य । इसने सामवेद का | ४. एक गायक । यह विष्णु के अतिरिक्त किसी अध्ययन किया (भा. १२.६)।
का गुणगान नहीं करता था। इसके अनेक शिष्य थे। ५. जटीमालिन् नामक शिवावतार का शिष्य । इसकी कीर्ति सुन कर, कलिंग देश का राजा इसके पास
६. कोसल देश का इस अर्थ में प्रयुक्त। कौसल्य आया तथा 'मेरी कीर्ति गाओ' कहने लगा। तब पाठभेद भी मिलता है (कौसल्य देखिये)।
कौशिक ने कहा "वह विष्णु के अतिरिक्त किसी का कौशापि--भृगुकुल के गोत्रकारगण ।
गुणगान नहीं करता।" सब शियों ने गुरु का समर्थन कौशांबय--प्रोती का पैतृक नाम ।
किया। राजा ने अपने नौकर को अपना गुणगान करने कौशिक-कौंडिण्य का शिष्य । इसके शिष्य गौपवन को कहा । तब कौशिक ने, मैं विष्णु के अतिरिक्त किसी तथा शांडिल्य थे (बृ. उ. २.६.१; ४.६.१)। वायु तथा का गुणगायन नहीं सुनता, यह कह कर अपने कान बंद ब्रह्मांड मत में व्यास की सामशिष्य परंपरा के हिरण्यनाभ कर लिये। इनके शिष्यों ने भी अपने कान बंद कर का शिष्य (व्यास देखिये)। एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि लिये। अंत में इसने नुकीली लकड़ी से अपने कान एवं देखिये)। एक ऋषि (मत्स्य. १४५.९२-९३)। अथर्व- जबान छेद डाली । ऐसे एकनिष्ठ गायन से ईश्वर की सेवा वेद के गृह्यसूत्र का रचयिता कौशिक नामक एक आचार्य | कर, यह वैकुण्ठ सिधारा (आ. रा.५)। था। शांत्युदक देते समय कौन सा मंत्र कहा जावे, इस सावर्णि मन्वंतर में होनेवाले सप्तर्षियों में से एक ।
अध म इसक मत का उल्लख ह (का. ९.१०, युवा | यह गालव का नामांतर है। कौशिक देखिये)। इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध
६. शरपंजरावस्था में भीष्म के पास आया हुआ एक हैं। १. कौशिकगृह्यसूत्र, २. कौशिकस्मृति, इस स्मृति का ऋषि (भा. १.९.७)। उल्लेख हेमाद्रि ने परिशेषखंड में किया है (१.६.३१, ६.३.७)। उसी तरह नीलकंठ ने भी इस स्मृति का
७. एक ऋषि । वृक्ष के नीचे तप करते समय, वृक्ष पर उल्लख श्राद्धमयूख में किया है। इसके नाम पर एक से एक बगली ने इस पर विष्ठा कर दी। इसने क्रोधित शिक्षा भी है। कौशिकपुराण भी इसीने रचा (C.C.)| होकर ऊपर देखा। ऊपर देखते ही तप के प्रभाव कौशिक कुल के मंत्रकार--कौशिक कुल में १३
से वह पक्षिणी निर्जीव हो कर नीचे गिरी । अपने मंत्रकार दिये हैं। उन के नाम-१ विश्वामित्र, २ देवरात,
| कारण यह बुरी घटना हुई देख इसे बहुत दुःख ३ बल, ४ शरद्वत् , ५ मधुछंदस् , ६. अघमर्षण, ७
हुआ। गांव में यह भिक्षा मांगने एक पतिव्रता के घर अष्टक, ८ लोहित, ९ भूतकाल, १० अम्बुधि, ११,
गया । पतिकार्य में व्यस्त होने के कारण, भिक्षा देने में धनंजय, १२ शिशिर, १३ शावकायन (मत्स्य. १४५. उसे देर हो गयी। इस कारण पतिव्रता ने इससे क्षमा११२-११४)।
याचना की । फिर भी यह उस पर नाराज हुआ। तब उस
स्त्री ने कहा कि मैं बगली नही हूँ। तुम्हें अभी भी धर्म २. (सो. अमा.) कुशांक, गाधिन , विश्वामित्र आदि
| समझ में नहीं आया है। उसे समझने के लिये तुम लोगों का सामान्य नाम । विश्वामित्र के ब्राह्मण होने पर उसके कुल में उत्पन्न हुआ एक ऽपि । इसकी हैमवती
मिथिला के धर्मव्याध के पास जाओ। इसे यह बात ठीक नामक स्त्री थी । (म. उ. ११५.१३)।
जची तथा इसका क्रोध शांत हुआ। पश्चात् यह धर्मव्याध
के पास गया । धर्मयाध ने इसे 'धर्म अनेक प्रकार से ३. सत्यवचनी ब्राह्मण । गांव के पास संगम पर यह तपस्या करता था । सत्य कहते समय, योग्य तारतम्य इस में
समझाया। तदनुसार यह अपने मातापिता की शुश्रुषा न था। एक बार कुछ पथिक, चोरों के आक्रमण के कारण,
करने लगा। युधिष्ठिर ने वनवास में मार्कंडेय से इसके आश्रम में जा छिपे । लुटेरे (चोर ) पूछने आये।
| पतिव्रतामाहात्म्य के बारे में पूछा, तब उसने यह कथा इसने सत्य बात कह दी तब चोरों ने पथिकों को मार
बताई (म. व. १९६-२०६)। डाला । इस कारण, यह ब्राह्मण अधोगति को प्राप्त हुआ। ८. कुरुक्षेत्र में रहनेवाला ब्राह्मण । पितृवर्ती आदि सत्य बोलते समय तारतम्य रखना चाहिये यह समझाने | सात पुत्रों का पिता (पितृवर्तिन् देखिये)। के लिये कृष्ण ने अर्जुन को यह कथा बतायी है (म. क. ९. जरासंध के हंस नामक सेनापति का उपनाम वा ४९)।
| नामांतर (म. स. २०, ३०)। . १७०