Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कौडिन्य
प्राचीन चरित्रकोश
कौशल्य
स्त्री आश्रमा। दुर्वांकुरमाहात्म्य बताने के लिये इसकी | कौमानरायण--कौलायन का पाठभेद । कथा दी गयी है (गणेश. १.६३)।
कौंभ्य--बभ्रु का पैतृक नाम । ५. एक ऋषि । इसका आश्रम हस्तिमती एवं साभ्र- कौरकृष्ण-कोरकृष्ण का पाठभेद । मती नदियों के संगम पर था। एक बार अतिवृष्टि के कौरयाण--पाकस्थामन् का पैतृक नाम (ऋ. ८.३. कारण, आश्रम में पानी आया । इसलिये इसने नदी को | २१)। सूख जाने का शाप दिया तथा स्वयं विष्णुलोक चला गया | कौरव्य--कुरु वंश का एक राजा । परीक्षित के शासन (पन. उ. १४५)।
| में, यह अपने स्त्रीसहित सुख से रहता था (अ. वे. २०. कौतस्त-अरिमेजय प्रथम एवं जनमेजय का पैतृक | १२७.८; खिल. ५.१०.२; सां. श्री. १२.१७.२; वैतानसू, नाम।
३४.९)। बाल्हिक प्रातिपीय राजा को कौरव्य कहा गया है - कौत्स--महित्थि का शिष्य । इसका शिष्य मांडव्य (श. ब्रा. १२.९.३.३)। एक आख्यायिका में, आर्टिषेण (श. बा. १०.६.५.९; बृ. उ. ६.५.४)। वेद अनर्थक | एवं देवापि भी कौरव्य नाम से संबोधित किये गये हैं है, इस कौत्स के मत का निरुक्त में निषेध दर्शाया गया है | (नि. २.१०)। यह वसिष्ठकुल का गोत्रकार था। (नि. १.१५)। . .
२. ऐरावत कुलोत्पन्न एक नाग तथा उलूपी का पिता। एक आचार्य (आ. औः १०.२०.१२, आश्व. श्री. जनमेजय के सर्पसत्र में इसके कुल के ऐंडिल, कुंडल, मुंड, १.२.५, ७.१,१९ आ. ध. १.१९.४.२८.१)।
वेणिस्कन्ध, कुमारक, बाहुक, शृंगबेग, धूर्तक, पात, तथा २. भृगुकुल कां गोत्रकार।
पातर ये कुल दग्ध हुए (म. आ. ५२.१२)। ३. अंगिराकुल का गोत्रकार।
कौरव्यायणीपुत्र--एक आचार्य । 'खं' शब्द का ४. विश्वामित्र का शिष्य । विश्वामित्र के मना करने
आकाश अर्थ लेने के लिये इसका मत माना गया है पर भी, इसने रघुराजा के पास से चौदह कोटि मुहरें |
(बृ. उ. ३.५.१.१)। दक्षिणा में ला कर उसे दी (स्कन्द. २.८.५)। रघुवंश में |
कौरिष्ट-कश्यपकुल का ऋषिगण ।
कौरुक्षेत्रिन्-अंगिराकुल का गोत्रकार । बरतंतुशिष्य. कौत्स की, ठीक ऐसी ही कथा दी गयी है (र. वं. ५)।
कौरुपति--अंगिराकुल का गोत्रकार । ५. एक ब्रह्मर्षि । भृगुवंशीय राजा भगीरथ ने इसे
कौरुपथि--शांत्युदक करते समय किस मंत्र का अपनी कन्या हंसी दी थी (म, अनु. २०० कुं; दुर्मित्र
उपयोग करना चाहिये, इस संबंध में इसके मत का कौत्स एवं सुमित्र कौत्स देखिये)।
निर्देश किया गया है (को. ९.१०)। कौत्सायन-मंत्रद्रष्टा (मैन्यु. ५.१)।
कौरुपांचाल--आरुणि के लिये यह शब्द प्रयुक्त कौथुम पाराशर्य--वायु तथा ब्रह्मांड मत में व्यास |
होता था क्यों कि, वह इसी प्रांत का था (श. ब्रा. ११. की सामशिष्य परंपरा में एक ।
४.१.२)। इसका व्यवसाय भी इसी नाम से दर्शाया कोथमि--हिरण्यनाभ नामक ब्राह्मण का पुत्र । एक | जाता है (श. बा. १.७.२.८ )। बार यह जनक के आश्रम में गया । वहाँ उसने ब्राह्मणों
कौलकावती-इस नाम के दो ऋषियों ने रथप्रोत से विवाद किया तथा कोपविष्ट हो कर एक ब्राह्मण का
दार्य से एक विशिष्ट यज्ञ कराया था (मै. सं. २.१.३)। वध किया। इस कारण इसे महारोग तथा कुष्ठ हआ। कौलायन-वसिष्ठकुल का ऋषि । पाठभेद-कौमानब्रह्महत्या इसके पीछे लगी। सारे तीर्थ करने पर भी | रायण । उसने पीछा न छोड़ा। आगे चल कर, पिता की सलाह कौलितर--एक दास (ऋ. ४.३०.१४)। यह शंबर के अनुसार इसने श्राव्यसंजक सूक्त का सूर्य के सामने का नाम रहा होगा। यहाँ इसका अर्थ कुलितर का पुत्र है। निरंतर जप किया एवं पुराणश्रवण किया। इससे इसका कौशल--एक राजवंश । इस वंश के सात राजाओं उद्धार हुआ (भवि. ब्राहा. २११)।
का निर्देश प्राप्त है। कौपयेय-उच्चैःश्रवस् का पैतृक नाम ।
कौशल्य--अगस्त्यकुल के गोत्रकारगण । कौबेरक-कश्यपकुल के गोत्रकारगण ।
२. अंगिराकुल के गोत्रकारगण । कौब्जायनि--मोजायनि का पाठभेद ।
३. पिप्पलाद का आश्वलायनकुल का एक शिष्य । प्रा. च. २२]
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