Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कैकरसप
प्राचीन चरित्रकोश
कोकिल
कैकरसप--कश्यपकुलीन गोत्रकार ( मत्स्य. | किया। इस कारण सामान्य स्त्रीस्वभावसुलभ इसका मन १९९.७ )।
मत्सर से भड़क उठा। देवासुरसंग्राम के समय से बचे कैकसी--सुमाली राक्षस की कन्या तथा विश्रवा ऋषि | हुए वरदानों की याद उसीने दिलायी। मंथरा की सलाह की पत्नी । इसके विवाह की मँगनियाँ होने पर समाली | के अनुसार, कैकेयी ने दशरथ को दो वरदानों का स्मरण कुछ भी कारण बता कर, उनकी माँग को अस्वीकार दिला कर, राम के लिये वनवास तथा भरत के लिये राज्य करता था । इसका परिणाम यह हुआ कि, सबों ने | माँगा। राजा ने ये दोनों वरदान दिये। यथार्थ बात तो मँगनी करना बंद कर दिया। कन्या का यौवन ढल यह थी कि, कैकेयी के पिता ने पहले से ही यह व्यवस्था रहा है, यह देख कर इसके पिता ने विश्रवा को, इसका | कर रखी थी। बूढ़े राजा को लड़की ब्याहते समय, कैकेयी वरण करने की सलाह दी। समय का ख्याल न रख, ऐन के पिता ने यह शर्त रखी थी कि, इसके पुत्र को राजसंध्या के समय यह विश्रवा के सामने जा खडी हुई । ऋषि गद्दी मिले। दशरथ ने यह शर्त स्वीकार भी की थी, ने इसका मनोगत ताड़ लिया। क्रूर घटिका होने के कारण | परंतु इस बात का कैकेयी को पता न था। इसे तीन अपत्य बुरे तथा इसकी इच्छानुसार चौथा पुत्र
भरत ने कैकेयी की बहुत निर्भर्त्सना की, जिसके कारण अच्छा हुआ। उनके नाम क्रमशः रावण, कुंभकण,
इसका सारा षड्यंत्र नष्ट हो गया। भरत ने इसका वर्णन शूर्पणखा (शूर्पनखा), एवं बिभीषण थे (वा. रा. उ.९;
निम्नलिखित विशेषणों से किया है-क्रोधी, अविचारी, स्कंद. ३.१.४७)।
घमंडी, अपने को भाग्यवान समझने वाली, ऐश्वर्यलुब्ध, कैकेय-अश्वपति कैकेय एवं सुमित्रा देखिये।
दुर्जन होते हुए सजन की तरह दिखने वाली, दुष्ट, तथा २. ( सो. अनु.) भागवत तथा विष्णु मत में शिबि | पापबुद्धि (वा. रा. अयो. ९२.१६ )। का पुत्र।
भरत ने राम को लाने के लिये सपरिवार वन जाना कैकेयी केकय देश के राजा अश्वपति की कन्या, एवं
निश्चित किया । तब सुमित्रा एवं कौसल्या के साथ कैकेयी .राजा दशरथ की कनिष्ठ किंतु अत्यंत प्रियपत्नी। इसका पुत्र भरत । भरत के लिये ही इसने राम को वनवास
भी वन जाने के तयार हुई (वा. रा. अयो. ८३.६;
सुवेषा २. देखिये)। दिलाया, जिससे दशरथ की मृत्यु हुई। ... राजा दशरथ देवदानवों के युद्ध में, देवताओं की
__ कैटभ-मधुदैत्य का अनुज । इसका वध विष्णु ने • सहायता करने गये। उस समय रथ के पहिये की कील
परिकको किया (मधुकैटभ देखिये)। टूट गयी । कैकेयी ने अपना हाथ वहाँ लगा कर राजा को
२. एक राक्षस । इसके अश्वत्थ, पिप्पलादि दो ब्रह्म' बचाया। राजा ने इसे दो वर माँगने को कहा (ब्रह्म. | भक्षक पुत्र थे । उन का अगस्ति ने सौरि शनैश्चर की मदद ' १२३)। इससे पता चलता है, कि यह युद्ध में रही | से नाश किया (ब्रह्म. ११८)।
होगी ( कलहा देखिये)। राम के यौवराज्यभिषेक के | कैतव--शकुनिपुत्र उलूक का नामांतर (म.उ. १६०. दिन समीप आये। गांव सजाने लगे तब अभिषेक की | ९)। बात मंथरा ने इसे बतायी । दशरथ ने कैकेयी के महल कैतवक-शकुनि का नामांतर (म. स. ५४.१)। में सतत रहते हुए भी, इसे अभिषेक की बात का पता कैरात--कश्यपकुल का गोत्रकार । लगने नहीं दिया था। मंथरा के बता देने के बाद, कैराति-अंगिराकुल का गोत्रकार । राजा ने इसे, अभिषेक का समाचार भिजवाया। राम- कैरिशिय-सुत्वन् का पैतृक नाम । यौवराज्याभिषेक का समाचार मंथरा से सुन कर, इसने कैलासक-एक सर्प (म. उ. १११.११)। आनंद प्रदर्शित किया । भरत तथा राम मेरे लिये समान कैशोर्य-काप्य का पैतृक नाम (बृ. उ. २.५.२२; हैं यों कह कर, समाचार लानेवाले मंथरा को ४.५.२८)। पुरस्कार देना चाहा। मंथरा ने इसके मन में जहर भर कोक-सत्रासह नामक पांचाल के राजा का पुत्र दिया । उसने कहा, 'रोने के समय में क्यों हँसती हो ?' | (श. ब्रा. १३.५.४.१७)। (वा. रा. अयो. ७.३)। राम के ऐश्वर्य तथा भरत की | कोकिल-एक राजपुत्र का नाम ( काटक-अनुक्रमणी, हीनदशा का चित्र, मंथरा ने कैकेयी के सामने प्रस्तुत । वेबर )।
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