Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
केशिन
५. धूमकेतु का नामांतर । प्रजा की अत्यंत वृद्धि हो रही । केदार--एक राजर्षि (दे. भा. ९.४२)। है, यह देख कर ब्रह्मदेव ने मृत्यु नामक एक कन्या निर्माण केदारेश्वर--एक शिवावतार । नरनारायण इसे की। उसे प्रजा का संहार करने के लिये कहा, तब वह | पृथ्वी पर लाये। यह उस भाग का अधिपति है (शिव. रोने लगी। उसके अश्रुओं से अनेक रोग उत्पन्न हुए, शत. ४२)। भूतेश इसका उपलिंग है (शिव. कोटि. १)। इसलिये उसने जप किया। इस तप के कारण, उसे वर मिला केरल--कश्यपगोत्र का गोत्रकार गण । कि, तुम्हारे निमित्त किसी को भी मृत्यु नहीं आयेगी। तब । केलि--ब्रह्मधान का पुत्र । उसने एक दीर्घ श्वास छोड़ा, जिससे केतु उत्पन्न हुआ। केवल-(सू. दिष्ट.) नर राजा का पुत्र । इसका पुत्र उस केतु को एक शिखा थी। इसे केतु वा धूमकेतु कहते | बंधूमत् । हैं (विष्णुधर्म. १.१०६)।
२. स्वायंभुव मन्वन्तर के अजित्देवों में से एक । ६.(सो.) मत्स्य के मत में द्रुह्यपुत्र ।
३. ब्रह्मांड मतानुसार व्यास की यजुःशिष्यपरंपरा के केतु आग्नेय-सूक्तद्रष्टा.(ऋ. १०.१५६)। याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य (व्यास देखिये)।
केतु वाज्य--वाज्यऋषि का शिष्य । इसका शिष्य | केवलबर्हि-(सो. यदु.) भागवत मत में अंधककोहल (वं. बा. १)।
पुत्र। केतुजाति--पराशरकुल के ऋषिगण ।
केश--ब्रह्मदेव के पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ का एक ऋषि केतुमत्-दनुपुत्र दानवों में से एक ।
(पद्म. सृ. ३४)। २. (सो. क्षत्र.) धन्वन्तरि का पुत्र । इसे भीमरथ
केशलंब-तप नामक शिवावतार का शिष्य । वा भीमसेन नामक एक पुत्र था।
३. एकलव्य का पुत्र तथा निषध देश का राजा । यह केशिध्वज--(सू. निमि.) कृतध्वज जनक का पुत्र । दुर्योधन के पक्ष में था । कलिंग के वध के बाद भीम ने यह आत्मविद्याविशारद था (भा. ९.१३.२०) इसका इसका वध किया (म. भी. ५०.७०)। मयसभा में | पुत्र भानुमत् जनक (खांडिक्य देखिये )। उपस्थित क्षत्रियों के बीच का केतुमान् यही होगा।
केशिन-कश्यप एवं दनु का पुत्र (ह. वं. १.२. • ४. (.सू. इ.) पृथुराजा द्वारा नियुक्त दिक्पालों में से
८६) । इसने प्रजापति की देवसेना एवं दैत्यसेना नामक तीसरा। अर्थात् यह पश्चिम का दिक्पाल होगा (पृथु
दो प्रसिद्ध कन्याओं का हरण किया । दैत्यसेना इसके देखिये)।
वश में हुई । परंतु देवसेना आक्रोश करने लगी तथा 'कोई ५. (सू. नाभाग) भागवत मत में अंबरीषपुत्र ।।
तो भी छुड़ावो' कह कर चिल्लाने लगी। इसी समय ६. प्रतर्दनदेवों में से एक।
देवसेना का आधिपत्य जो स्वीकार कर लेगा, ऐसा - ७. सुतार नामक शिवावतार का शिष्य ।
सेनापति हूँढने के लिये इन्द्र मानसपर्वत पर आया । ८. दारुक नामक शिवावतार का शिष्य ।
उसने केशी से युद्ध कर के देवसेना को बचाया केतुमती--सुमालि राक्षस की स्त्री । रावण की
(म. आर. ११३.८-१५)। कुछ दिनों के बाद, इसने नानी।
चित्रलेखा तथा उर्वशी आदि अप्सराओं को भगा लिया। केतुमाल--(स्वा.) आनीध्र राजा के नौ पुत्रों में
यह पुरूरवा (बुधपुत्र) ने देखा। उसने इस दानव से कनिष्ठ । इसकी स्त्री मेरुकन्या देववीति थी। इसका वर्ष | युद्ध कर, इन दोनों को छुडाया (मत्स्य. २४.२३. पद्म. इसी के नाम से प्रसिद्ध है (भा. ५.२)। इसकी माता |
सृष्टि. १२.७६)। का नाम उपचिति था।
२. वसुदेव को कौशल्या से उत्पन्न पुत्र । केतुवर्मन्--त्रिगर्ताधिपति सूर्यवर्मा का भ्राता । अर्जुन ३. कंस ने कृष्ण वध के लिये केशी नामक दैत्य भेजा ने इसका वध किया (म. आश्व. ७३.१५)। था। इसने अश्वरूप धारण कर कृष्ण पर आक्रमण किया । केतुवीर्य--कश्यप एवं दनु का पुत्र ।
परंतु अश्व ने खाने के लिये फैलाये मुख में हाथ डाल कर, २. मगधराज । इसकी कन्या सुकेशी, जो मरुत्त से | कृष्ण ने इसका वध किया (भा. १०.३७.२६; म. स. परि. ' ब्याही गयी थी।
४, क्र.२१;पंक्ति. ८४३-८४४)। यह ऋष्यमूक पर्वत केतुशंग--त्रिधामन् नामक शिवावतार का शिष्य । | पर रहता था (गर्ग. सं. १.६)।
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