Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कंसारी
प्राचीन चरित्रकोश .
कंसारी-याज्ञवल्क्य की भगिनी । इसे बृहस्पति के | मशार के तीन पुत्रों ने कक्षीवत् को कष्ट दिये थे। यह शाप से याज्ञवल्क्य के वीर्य से पिप्पलाद हुआ | पज्रकुल का था इसलिये अपने को पज्रिय कहलाता है (ऋ. (याज्ञवल्क्य देखिये)।
| १.११६.७; ११७.६)। इसे पज्र भी कहा है (ऋ. १. ककुत्स्थ --(सू. इ.) शशादविकुक्षि का पुत्र । आडि- १२६.४, पं. ब्रा. १४.११.१६)। विवाह के समय बक के साथ इंद्र युद्ध कर रहा था, तब इसने इंद्र को इसकी उम्र काफी होगी (ऋ. १.५१.१३)। यह काफी वृषभ बनाया तथा उस पर आरोहण कर के युद्ध | वृद्ध रहा होगा (ऋ. ९.७४.८) । ऋग्वेद में भी यह पुरामें जय प्राप्त की। इसलिये ककुत्स्थ उपाधि प्राप्त की तन माना जाता था (ऋ. १.१८.१; ४.२६.१) । दीर्घ (वायु. ८८.२५)। इसे क्वचित् इंद्रवाह, पुरंजय आदि तमस् तथा कक्षीवत् का ऋग्वेद की एक ऋचा में एक साथ नाम भी प्राप्त है ( भा. ९.१.२)। कहीं चन्द्रवाह भी उल्लेख है (ऋ. ८.९.१०)। यह क्षत्रिय था परंतु तप कहा है (दे. भा. ७.९) । इसने पापनाशिनी एकादशी से ब्राह्मण तथा ऋषि हुआ था (वायु. ९१.१००, ११४)। का व्रत किया (पद्म. स्व ३८)। इसके पुत्र का नाम | इसे घोषा नामक एक कन्या थी । एक सूक्त से अश्वियों अनेनस् (म. व. १९३.२).
को प्रसन्न कर के इसने उत्तम लोक प्राप्त किया था (ऋ. ककुदि-मरीचिगर्भ देवों में से एक।
१.१२०; ऐ. ब्रा. १.२१; जै. ब्रा. १.६.११)। यह सूक्त- . ककुद्मिन रैवत-(सू. शर्यात.) रेवत राजा का पुत्र । | द्रष्टा है (ऋ १.११६-१२५, १२६.१-५, ९.७४)। इसे रेवती नामक कन्या थी। उसे ले कर यह ब्रह्मदेव के | विद्याध्ययन करने के बाद यह वापस जा रहा था, पास उसके लिये वर पूछने गया। वहाँ गायन चालू होने राह में स्वनय भावयव्य से इसकी मुलाकात हुई। के कारण, क्षणभर रुका। तदनंतर इसने ब्रह्मदेव | अंगिरस कुल का औचथ्य दीर्घतमस् का यह पुत्र है, से पूछा, तब ब्रह्मदेव हँस कर बोला, "तुम्हारे | ऐसा मालूम होते ही, उसने इसे अपनी दस कन्यायें तथा पृथ्वी से यहाँ आने तक पृथ्वी पर चार युगों | बहुत संपत्ति दी। तब इसने उसकी प्रशंसा की (बृहदें. ३. के सत्ताईस चक्कर हो चुके हैं। सांप्रत द्वापारयुग | १४१-१५०)। काक्षीवत औशिज या कक्षीवत् नाम आगे में परमेश्वर अंश से बलराम का जन्म हुआ है, उसे यह दिये गये ग्रंथों में भी हैं (म. स. ४.१५, ७.१६, अनु. कन्या दो” (भा. ९.३)। इसे रैवत कहते थे (विष्णु. | २७१.३७ कुं.)। अंगिरसकुल के मंत्रकारों में इसका ४.१.२१, २.१-२)। यह सौ भ्राताओं में ज्येष्ठ था | नाम है ( दीर्घतमंस देखिये)। इसकी राजधानी कुशस्थली थी। इसके वापस आने
२. भीष्म से मिलने आया हुआ ऋषि (भा. १.९)। तक कुशस्थली की द्वारका बन गई थी (ब्रह्माण्ड. ३.६१.
कक्षेयु-(सो. पुरुरवस्. ) विष्णु के मतानुसार २२; वायु. ८६.२७)।
रौद्राश्व तथा मत्स्य के मतानुसार भद्राश्व पुत्र है। ककुम्--धर्म ऋषि के अरुंधती नामक स्त्री का नामांतर । यह दक्षकन्या है (भा. ३.६)।
कंक--वाराहकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर में यह शंकर कक्षसेन--असित पर्वत पर रहनेवाला एक राजर्षि।
गाज | का अवतार है । इसे निम्नलिखित चार पुत्र हैं--सनक, (म. अनु. १३७.१५)। इसने वसिष्ठ का धन रक्षण
सनातन, सनंदन, सनत्कुमार | यह निवृत्तिमार्गीय था। किया।
इसने तत्कालीन सवितृ व्यास की सहायता की (शिव. २. युधिष्ठिर की सभा का एक क्षत्रिय (म. स. ४.१९)।। शत. ४)।
३. (सो. कुरु.) दूसरे जनमेजय का पुत्र (म. आ. २. वृष्णिवंश का एक क्षत्रिय (म. आ. १७७.१८)। ८९. ४८)। ४. यम सभा का एक क्षत्रिय (म. स. ८.१७)।
३. म्लेच्छ राजाओं का वंश । इनका पराभव दुष्यंत
पुत्र भरत ने किया (भा. ९.२०)। कक्षवित्--यह दीर्घतमस् का पुत्र | इसकी माता का | नाम उशिज् । इसे औशिज कहा गया है (ऋ. १.१८.१; | ४. (सो. यदु.) शूर राजा को मारीषा अथवा भोजा दीर्घतमस् देखिये)। इसकी पत्नी का नाम वृचया से उत्पन्न दस पुत्रों में सातवाँ । वसुदेव का भ्राता। इसे (ऋ.१.५१.१३)। स्वनय भावयव्य ने इसे देन दी थी। कर्णिका स्त्री से ऋतधामन् तथा जय नामक पुत्र हुए थे (ऋ.१.१२५:१२६, सां. श्री. १६.४.५)। आयवस तथा । (भा. ९.२४)।