Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कशु चैन
प्राचीन चरित्रकोश
कश्यप
कशु चैद्य-ब्रह्मातिथि काण्व ने इसके औदार्य की | में जा कर रहा। महाभारत में इसे कोंकण कहा गया है। प्रशंसा की है। इसने ब्रह्मातिथि को सौ ऊंट, दस हजार | बम्बई के पास सोपारा नामक एक ग्राम है, वही यह होगा गायें तथा दस राजा सेवा करने के लिये दिये । यह | (म. शां. ४९.५६-५९)। बाद में कश्यप ने पृथ्वी इतना उदार था, कि, इससे दान प्राप्त कर फिर किसी के | ब्राह्मणों को सौंप कर, स्वयं वन में रहने के लिये गया। पास जाने की आवश्यकता नहीं रह जाती थी। इसका पुत्रप्राप्ति-कश्यप जब पुत्रेच्छा से यज्ञ कर रहा था, राज्य विस्तृत था (ऋ. ८.५.३७-३९)।
तब देव ऋषि तथा गंधर्व सब ने उसे सहायता की । वालकशेरुमत्-एक यवन। इसका कृष्ण ने वध किया | खिल्य इसी प्रकार सहायता कर रहे थे, तब इंद्र ने (म. व. १२.२९; म.स.परि.१ क्र. २१. पंक्ति.१५४६)। वालखिल्यों का अपमान किया। इससे वे अत्यंत क्रोधित कशेरुक पाठ भी मिलता है।
हो गये। इस क्रोध से अपनी रक्षा करने के लिये इन्द्र कश्यप कशोजू-संभवतः दिवोदास का नाम (ऋ. १.११२. के पास गया । तब बडी चतुराई से कश्यप ने वालखिल्यों १४)। .
को खुष किया। अनेक कृपाप्रसाद से इसे गरुड़ तथा कश्यप-अग्नि का शिष्य । इसका शिष्य विभांडक | अरुण नामक दो पुत्र हुए। नये इन्द्र के लिये किया गया (वं. बा.२)। 'न्यायुषप्' मंत्र में आयुवृद्धि की प्रार्थना तप वालखिल्यों ने इसे दिया तथा इन्द्र निर्भय हो गया। करते समय इसका निर्देश है (जै. उ. बा. ४.३.१)। सपों को शाप-तदनंतर विनता तथा कद्र में उच्चैः__ गोत्रकार-इसके कुल के मंत्रकार आगे दिये गये हैं | श्रवा के रंग के बारे में शर्त लगाई गई। यह शर्त (हरित, शिल्प, नैध्रव देखिये)। इसका एवं वसिष्ठ का जीतने के लिये कद्रू ने अपने पुत्र नागों की सहायता निकट संबंध है (बृ. उ. २.२.४)।
माँगी । परंतु नाग सहायता न करते थे, इसलिये उसने कुल-इन्द्रियों का अधिष्ठान जो शरीर उसका पालन
उन्हें शाप दिया कि, तुम जनमेजय के सत्र में मरोगे। करनेवाला जीव ही कश्यप है (म.अनु. १४२)। यह ब्रह्मा
इस शाप को पुष्टि दे कर दुष्ट सपों का नाश करने का मानसपुत्र है । मरीचिपत्नी तथा कर्दम की कन्या कला
| के हेतु से ब्रह्मदेव वहाँ आया, तथा उसने सो को कश्यप तथा पूर्णिमा नामक दो पुत्र हुए। उनमें से
का नाश होगा (म. आ. १८. ८-१०), इतना कश्यप ज्येष्ठ है (भा. ४.१) । इसे तार्थ्य तथा अरिष्टनेमि
ही नही, उनका सापत्न बंधु गरुड़ भी उनका भक्षण नामान्तर थे। यह सप्तर्षियों में से एक, उसी प्रकार
करेगा, यों शाप दिया (पन. सृ. ३१)। इस शाप से प्रजापतियों में से भी एक था (म. अनु. १४१)। परंतु
कश्यप को दुख होगा, यह सोच कर ब्रह्म ने इसे विषहारिसप्तर्षियों की सूच में कश्या के बदले भृगु तथा मरीचि
विद्या दी तथा इसकी सांत्वना की (म. आ. १८.११)। नाम भी प्राप्त हैं। स्वायंभुव तथा वैवस्वत मन्वन्तर के
उस विद्या का इसने उपयोग भी किया था ( काश्यप ब्रह्मपुत्र मरीचि वास्तवतः एक ही हैं। इसलिये दोनों
देखिये)। समय के कश्यप भी एक ही हैं। इसे पूर्णिमा नामक सगा
दैत्यसंहार-इन्द्रादि देवों का दैत्यों ने पराभव किया, भाई था तथा छः सापत्न बंधु थे। इसकी सापत्न माता
इसलिये वे कश्यप के पास शरण आये, तथा उन्होंने इसे का नाम ऊर्णा था। अग्निष्वात्त नामक पितर भी इसके ही |
सब कुछ बताया। तब यह काशी में शंकर के पास गया, भाई थे । इसे सुरुपा नामक एक बहन भी थी, जो
| तथा उसे दैत्यों का ता नष्ट करने के लिये कहा। तब वैवस्वत मन्वन्तर के अंगिरा नामक ब्रह्मा के मानसपुत्र
शंकर ने इसकी पत्नी सुरभि के उदर में ग्यारह अवतार को दी थी (वायु. ६५.९८)।
लिये तथा दैत्यों का नाश किया। यह अवतार अद्यापि ____ क्षत्रियरक्षा--इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय करने के आकाश में ईशान्य की ओर रहते है (शिव. पश्चात् परशुराम ने सरस्वती के किनारे अश्वमेध यज्ञ | शत. १८)। किया। उस समय कश्यप अध्वर्यु था । दक्षिणा के रूप में |
| तीर्थोत्पत्ति-कश्यप ने अर्बुद पर्वत पर बडी तपश्चर्या पृथ्वी कश्यप को दानरूप में प्राप्त हुई। अवशिष्ट की। उस समय दूसरे ऋषियों ने गंगा लाने के लिये इसकी क्षत्रियों का नाश न हो इस हेतु से, कश्यप ने परशुराम प्रार्थना की। तब शंकर से प्रार्थना कर के कस्यप ने शंकर को अपनी सीमा के बाहर जा कर रहने के लिये कहा। | से गंगा प्राप्त की। उस स्थान पर कश्यपतीर्थ बना (पद्म. इस कथनानुसार परशुराम समुद्रद्वारा उत्पन्न शूरिक देश | उ. १६४)। बाद में गंगा ले कर यह स्वस्थान में गया।
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