Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कालयवन
प्राचीन चरित्रकोश
कालेय
काटने वाली बहुत सी ची टियाँ भर कर, वह घड़ा कृष्ण कालिक-व्यास की सामशिष्य परंपरा का वायु तथा को लौटा दिया । इस संदेश का तात्पर्य यह था कि, तुम ब्रह्मांडमत में हिरण्यनाभ का शिष्य (व्यास देखिये)। यद्यपि कालसर्प की तरह प्रबल हो, तो मैं संख्या में २. मय तथा रंभा के पुत्र (ब्रह्माण्ड. ३६.२८-३०)। अधिक हूँ। अतः चींटियों की तरह तुम्हें नष्ट करूँगा। | कार्लिंग--एक अंत्यज । यह चोरी करने गया था,
यह देख कर कृष्ण ने एक रात्रि में राजधानी बदल | तब तीर्थ में इसकी मृत्यु हुई, इसलिये इसका उद्धार हुआ ली। सबको धैर्य बँधा कर, वह स्वयं पुनः मथुरा में | (पन. उ. २१७)। पैदल आया। निःशस्त्र स्थिति में मथुरा से बाहर | कालिंदी--कृष्ण की पत्नी । पूर्वजन्म में यह सूर्यआये हुए कृष्ण को कालयवन ने देखा । काल- कन्या थी। उस जन्म में, कृष्णप्राप्ति के लिये यह यवन ने कृष्ण का पीछा किया । ऐसे काफी दूर जाने के | यमुना के तट पर तपस्या कर रही थी। इसका मनोदय बाद, कृष्ण एक गुफा में प्रविष्ट हुआ । वहाँ मुचकुंद. जान कर कृष्ण ने इसका पाणिग्रहण किया। इसे श्रुत, सोया था । कृष्ण ने अपना वस्त्र धीरे से मुचकुंद के शरीर | कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दश, पूर्णमास तथा पर डाला । तथा स्वयं ओट में छिप गया (भा. १० सोमक ये दस पुत्र हुए. (भा. १०.६१)। ५१-५२) । अन्यत्र शरीर पर वस्त्र डालने का उल्लेख | कालिय--यह काद्रवेयकुल के पन्नग जाति का नाग नहीं है । कालयवन ने सुप्त मुचकुंद को ही कृष्ण समझा था (भा.१०.१७.४; म. आ. ३१.६; स. ५३.१५-१६)। तथा उसपर लत्ता-प्रहर किया । इस से मुचकुंद एकदम यह पहले रमणकद्वीप में था। गरुड़ त्रस्त न करें, इसलिये जागृत हो गया। क्रोधित हो कर केवल दृष्टिक्षेप से | हर माह में पौर्णिमा को. यह उसको भक्ष्य पहुँचा देता था। कालयवन को उसने जला दिया (ह. वं. २. ५२-५७; एक बार इसने गरुड़ का भाग भक्षण कर लिया। गरुड़ ने पद्म. उ. २७३. ४८-५७; विष्णु. ५. २३; ब्रह्म. १४. क्रुद्ध हो कर इसे मारा। किंतु एक प्रहार लगते ही, यह ४८-५२; १९६; म. शां. ३२६.८८)।
यमुना में जा कर छिप गया। सौभरि के शाप के कारण, कालवीर्य-एक असुर (सैंहि केय देखिये )। गरुड वहाँ न आ सकता था। कालिय के कारण वहाँ का कालशिख-वसिष्ठगोत्रीय ऋषि ।
पानी विषमय बन गया। उसे प्राशन करने के कारण, काला-काष्ठा देखिये।
गोप तथा गौओं की मृत्यु हो गई। तब एक वृक्ष पर चढ़ २. देवों की स्तुति से प्रसन्न हो कर, शुंभनिशुंभ का कर, कृष्ण
कर, कृष्ण ने यमुना के जलाशय में छलांग लगाई। कालिय वध करने के लिये देवी पार्वती द्वारा उत्पन्न शक्ति । इसने | को वहाँ से रमणकद्वीप की ओर भगा दिया, तथा गरुड़ धूम्रलोचन, चंड़मुड़, रक्तबीज, शंभनिशुंभ आदि का | द्वारा संत्रस्त न होने का प्रबंध किया । इसे पांच मुखे थे, वध किया (दे. भा. ५. २२-३१, शंभनिशंभ तथा । तथा यह बड़े ही ऐश्वयं से रहता था (भा. १०.१६; रक्तबीज देखिये)। इसे काली, कालिका तथा कौशिकी | ह. वं. २.१२; विष्णु. ५.७)। नामांतर हैं। उपरोक्त युद्ध में सब देवताओं की शक्तियाँ, २. दाशरथि राम की सभा का एक हास्यकार । अपने अपने लक्षणों से युक्त हो कर, इसकी सहायता | काली-दुर्गा देखिये। करने के लिये आई। उनके नाम १. ब्रह्माणी, २. वैष्णवी, २. मत्स्यी के उदर से जन्म ली हुई उपरिचर वसु राजा ३. शांकरी, ४. इन्द्राणी, ५. वाराही, ६. नारसिंही, ७, की कन्यां । इसे मत्स्यगंधिनी, योजनगंधा आदि नाम थे। याम्या, ८. वारुणी, ९. कौबेरी (दे. भा. ५.२८)। बाद में सत्यवती नाम भी प्राप्त हुआ। यही आगे चल कर कालाक्ष-घटोत्कच देखिये।
शंतनु की पत्नी बनी। इसे कौमार्यावस्था में पराशर कालानल-(सो. अनु.) कालनर तथा यह एक | नामक पुत्र हुआ।
३. पंडुपुत्र भीमसेन की दूसरी स्त्री । इसे उससे सर्वगत २. एक दैत्य । गजानन ने विजयपुर में इसका वध | नामक पुत्र हुआ (भा. ९.२२.३१)। इसके लिये काशी, किया । वहाँ गजानन का नाम विघ्नहर है (गणेश. १. | काशेयी तथा काश्य पाठभेद क्वचित् प्राप्त हैं । यह शिशुपाल
की भगिनी थी (म. आश्र. ३२.११) कालायनि--व्यास की ऋशिष्य परंपरा का बाप्कलि | कालीयक-कद्र तथा कश्यप का पुत्र । का शिष्य (व्यास देखिये)।
। कालेय-अत्रिकुल का गोत्रकार (अत्रि देखिये)। १४०