Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कृप
प्राचीन चरित्रकोश
कृष्ण
भारतीय युद्ध में यह कौरवों के पक्ष में था, फिर भी कृमि--(सो. अनु.) विष्णु तथा बायु के मत में इसका मन पांडवों की ओर था। यह हमेशा कर्ण की | उशीनरपुत्र । निंदा करता था, तथा अर्जुन की प्रशंसा करता था। (म. २. (सो. ऋक्ष.) मत्स्य के मत में च्यवनपुत्र । कृत, वि. ४४.१; द्रो. १३३.१२-२३)। एक बार कृपाचार्य कृतक, कृति आदि इसी के नाम रहे होंगे । पांडवों की स्तुति तथा कर्ण की निंदा कर रहा था। कर्ण । कृमिल--(सो. क्रोष्ट.) किंकिण देखिये । ने कहा, 'हे दुर्मति, यदि पुनः तुम इस तरह अप्रिय कृश-इसने यज्ञद्वारा इन्द्र को प्रसन्न किया (ऋ शब्द बोलोगे, तो इस तलवार से तुम्हारी जिव्हा काट | ८.५.४२)। यह सत्यवक्ता था (ऋ. ८.५९.३)। दूँगा (म. द्रो. १३३.५२) । इसी तरह हमेशा कर्ण | आश्विनों ने शयु के साथ इस पर भी कृपा की थी (ऋ. . तथा कृपाचार्य में ठन जाया करती थी। इसने भारतीय १०.४०.८)। सूक्तद्रष्टा कृश काण्व यही रहा होगा (ऋ. युद्ध में अतुल पराक्रम दिखा कर, अनेकों वीरों को स्वर्ग ८.५५)। भेजा । जयद्रथवध के बाद कृप तथा अश्वत्थामा ने | कृश वा कृशातनु-एक ऋषि तथा शंग ऋषि का अर्जुन पर आक्रमण किया, तब अर्जुन के बाणों से | मित्र (म. आ. ३६)। इसने प्रतिग्रह न ले कर कृपाचार्य बेहोश हुआ (म. द्रो. १२२.८)। इसने युद्ध | अपना सारा समय, तपस्या में ही व्यतीत किया। यह में धृष्टद्युम्न पर अमोघ बाण छोड़ कर, उसे जर्जर कर दिया | अत्यंत कृश था। इसी कारण इसका यह नामकरण हुआ। था (म. क. १८.५०)। दुर्योधन के वध के बाद, वीरद्युम्नपुत्र भरिद्युम्न नष्ट हो गया था। तब तपोबल से अश्वत्थामा अत्यंत क्रोधित हुआ। उसने कृपाचार्य | उसे वापस ला कर उसने इसे उपदेशपर कई बाते भी से कहा कि, मैं पांडवों के पुत्रों को निद्रित अवस्था | बतायी थीं (म. शां. १२६ )। में ही मार डालना चाहता हूँ। तब कृपाचार्य ने | , २. विकंठदेवों में से एक । उसे उपदेश किया, जिससे इसकी सही योग्यता का
कृशानु- सोमसंरक्षक गंधर्वो में से एक- (तै. सं. १. पता चलता है। कृपाचार्य ने कहा, 'उद्योग की | २.७) । अश्विनों ने युद्ध में इसकी रक्षा की (ऋ. १. स्थिति कमजोर होने पर केवल भाग्य कुछ नहीं कर
११२.२१)। सकता। इसलिये कभी भी कार्य के प्रारंभ में बड़ों से
कृशाश्व--एक ऋषि तथा प्रजापति । प्राचेतस दक्ष ने. विचारविमर्श करना चाहिये। अतः हम धृतराष्ट्र,
अपनी साठ कन्याओं में से दो कन्याएं इसे दी थीं। गांधारी, तथा विदुर की सलाह लें' (म. सौ. ३.३०
उनका नाम अर्चि एवं धिषणा था। अर्चि को धूम्रकेश, ३३)। इसने विवाह नहीं किया। यह चिरंजीव है।
तथा धिषणा को वेदशिरस् , देवल, वयुन तथा मनु ये पुत्र कौरवों की मृत्यु के बाद इसने दुर्योधन का सांत्वन किया।
हुवे । इसके अतिरिक्त इसे जया एवं प्रभा नामक दो पश्चात् स्वयं पांडवों के भय के कारण, घोडे पर सवार
कन्याएं भी थीं। किंतु ये किस स्त्री से उत्पन्न हुई, इसका हो कर हस्तिनापुर की ओर रवाना हुआ (म. सौ. ९)। यह
उल्लेख नहीं मिलता (वा. रा. बा. २१)। यह यजुर्वेदी भविष्य में सावर्णिमन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक होनेवाला
ब्रह्मचारी था। है (भा. ८.१३-१५)। कृपाचार्य रुद्रगण का अवतार
२. (सू. दिष्ट.) राजा सहदेव का पुत्र । इसका पुत्र था (म. आ. ६१.७१)
सोमदत्त । . ३. उत्तानपादपुत्र रुव का पौत्र । शिष्ट के चार | ३.(सू. इ.) कृताश्व राजा का नामांतर । पुत्रों में से ज्येष्ठ ।
४. नाट्यकला का आचार्य एक ऋषि (पा. सू. ४.३.
कृपी-(सो. अज.) द्रोणाचार्य की स्त्री तथा विष्णु, कृष्ण-(सो. यदु. वृष्णि.) वसुदेव को देवकी से वायु एवं मत्स्य के मत में सत्यधृतिकन्या । जालपदी नामक
उत्पन्न आठ पुत्रों में कनिष्ठ । इस का जन्म मथुरा में कंस अप्सरा को देख कर, शरद्वत् का रेत शरस्तंभ पर
के कारागृह में हुआ (भा.९.२४.५५, १०.३; विष्णु. ४. स्खलित हुआ। उससे यह उत्पन्न हुई । शंतनु ने इसका | १५, ५.३; ह. वं. १.३५; कूर्म.१.२४; गरुड.१.१३९)। लालनपालन किया। इसका पुत्र अश्वत्थामा (कृप | विवाह के पश्चात् , श्वशुरगृह में बहन को पहुंचाते समय, देखिये)।
देवकीपुत्र द्वारा अपनी हत्या होगी यह जान कर, कंस ने