Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
कुरुश्रवण
हुए दो घटनाओं का कुछ संबंध नहीं है, यह सायणमत योग्य है। व केवल सूक्तकार है (बृहद्दे. ७.३५ - २६ ) | कुरुसुति काण्व - सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.७६-७८ ) । कुल- दाशरथि राम की सभा का एक हास्यकार । २. वाशरथि राम की सेना का एक वानर कुलक - (स. इ. ) रणक राजा का नामांतर । २. (सू. इ. भविष्य. ) मस्त्य के मत में क्षुद्रकपुत्र । इसे भागवत में रणक, विष्णु में कुंड़क तथा वायु में क्षुभिक कहा है।
कुलह -- कश्यप कुल का एक गोत्रकार ।
कुलिक -- कद्रू पुत्र एक नाग ( म. आ. ५९.४० ) । कुल्मलबर्हिस् - - सामद्रष्टा ( तां. बा. १५.३.२१ ) । कुल्मलबर्हिम् शैलूषसूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१२६) । कुवल - वीरवर्मन का पुत्र ( वीरवर्मन् देखिये) । कुवलयाश्व -- (सो. काश्य.) एक चक्रवर्ति राजा (मै. उ. १.४) । दिवोदासपुत्र प्रतर्दन का नामांतर । इसेही कुवलाश्व शुमत् शत्रुजित् तथा ऋतुध्वज नामांतर हैं। भविष्य के मत में यह बृहदश्व का पुत्र था । कुवला— हंसध्वज की कन्या तथा सुधन्वा की भगिनी ।
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कुवलाश्व - - (सू. इ. ) बृहदश्व राजा का पुत्र । वन में जाते समय, बृहदश्व ने इसे उत्तकाश्रम को पीड़ा देने वाले, धुंधु नामक दैत्य का पारिपत्य करने के लिये कहा। तब उत्तंक को साथ ले कर यह धुंधु के निवासस्थान पर गया | धुंधु दैत्य उज्जालक नामक वालुकामय समुद्र के तल में, अपने अनुयायियोसहित सोया था तब कुवलाश्व ने अपने दृढाश्वादि सौ पुत्रों को भागवत में पुत्रसंख्या २१००० दी गई है ( ९.६ ) – उस वालुकामय सागर की वालुका हटाने के लिये कहा । संपूर्ण वालुका हटाने के बाद धुंधु बाहर आया। उस समय उसके मुख से अग्नि की ज्यालायें निकल रही थी। उन ज्वालाओं से कुवलाश्व के दृढाश्व, कपिलाश्व तथा भद्राश्व को छोड़कर अन्य सब पुत्र जल गये । अतः कुपस्थ स्वयं धुंधु से लड़ने के लिये गया । तब विष्णु ने उत्तक ऋषि को दिये वर के कारण अपना तेज कुवलाश्व के शरीर में डाला । तात्काल कुवलाश्व
कुशध्वज
मार्केड मतानुसार कुवलाश्व शत्रुजित का पुत्र था ( मदालसा देखिये) ।
२. प्रतर्दन देखिये ।
कुश (सो. आयु ) भागवत मत में सुहोत्र राजा के तीन पुत्रों में दूसरा। इसका पुत्र प्रति । कुश राजा से कुशवंश प्रारंभ हुआ ।
२. (सो. क्रोष्टु. ) विदर्भ राजा के तीन पुत्रों में प्रथम ।
३. (सो. पुरूरवस्.) अजक राजा का पुत्र । इसे कुशिक भी कहते थे । इसे कुशांबु, असूर्तरजस्, वसु तथा कुशनाभ नामक चार पुत्र थे। उन्हें कौशिक संशा थी (महा. २.१२) ।
५. एक दैत्य । इसने शंकर से अमरत्व प्राप्त किया। इस कारण, विष्णु इसे मार नहीं सकता था। अन्त में इसका सिर जमीन में गाड़ कर उस पर शिवलिंग स्थापित किया। तब यह शरण आया (कंद, ७.४.२० ) । । स्कंद. कुशकेतु-मकान्त देखिये।
धुंधु का पराभव किया, तथा धुंधुमार नाम प्राप्त किया । कुवलाश्व के बाद दृढाश्व गद्दी पर बैटा ( म. व. १९३; ह. कं. १,११ वायु ८८ ब्रह्माण्ड २.६२.२९, ब्रह्म ७ भा. ९.६; विष्णुधर्म. १.१६; कुवलयाश्व देखिये )
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४.
(सू. इ.) भविष्य के मत में दाशरथि राम का पुत्र । इसने १००० वर्षों तक राज्य किया ( कुशलय देखिये) ।
कुशध्वज - रथध्वज राजा का पुत्र तथा वेदवती का पिता ( वेदवती देखिये) ।
२. (सू. निमि ) ह्रस्वरोमा नामक जनक के, दो पुत्रों में दूसरा । सीरध्वज जनक का कनिष्ठ बंधु । यह मिथिला में सांकाश्य नामक राजधानी में राज्य करता था ( वा. रा. बा. ७१. १६ - १९ ) । मांडवी तथा श्रुतकीर्ति इसकी दो कन्यायें थीं । वे दशरथपुत्र भरत तथा शत्रुघ्न को क्रमशः दी गई थीं। सीर को पुत्र न था इसलिये उसके । पश्चात् यह मिथिला का राजा बना था । इसके पुत्र का नाम धर्मध्वज जनक | कुछ स्थानों पर इसे सीरप्यय का पुत्र भी कहा गया है ( भा. ९. १३; वायु ८९ ) ।
३. बृहस्पति का पुत्र (बृहस्पति देखिये ) ।
४. एक राजा । पूर्वजन्म में यह वानर था । उस समय यह झूले पर स्थित शंकर को रात भर झुलाता था । उस पुण्यसंचय से इसे यह जन्म प्राप्त हुआ। इस जन्म में इसने दमनकबत किया। बाद में, अग्निवेश ऋषि की कन्या जब नग्नस्थिति में स्नान कर रही थी, तब इसने उसका हरण किया । इसलिये उस ऋषि ने इसे ' तुम गृध्र बनोगे ' ऐसा शाप दिया । परंतु इसने क्षमा मांगने पर उरशाप दिया, 'इन्द्रद्युम्न को सहायता करने से, तुम मुक्त हो जाओगे ( स्वन्द. १. २०१२ ) ।
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