Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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कुशीबल
प्राचीन चरित्रकोश
भावशर्मा और कुशीबल दांपत्य का उद्धार हुआ (पद्म. - कुसुमायुध-यह ब्रह्मदेव के हृदय से उत्पन्न हुआ उ. १७८)।
(मत्स्य. ३.१०; काम देखिये)। कुशीलव-(स. इ.) राम के पुत्र कुश तथा लव कुसुमि-सामवेदी श्रुतर्षि । थे । इनके लिये वाल्मीकि रामायण में, सर्वत्र कुशीलव
। कुसुरुबिंद औद्दालकि- एक ऋषि पशुसंपत्ति प्राप्त शब्द का प्रयोग आया है । आलोचक लिखते है कि, यह
करने के लिये, इसने सप्तरात्र याग किया तथा चतुष्पाद आर्ष प्रयोग है (वा. रा. बा. ४.५)। इनका कुश तथा
संपत्ति से समृद्ध हुआ (तै. सं. ७.२.२.१)। इसने लव नामकरण कर के (वा.रा.उ.६६.९), वाल्मिकी जान
दशरात्र याग शुरू किया। अन्यत्र कुसुरबिंद (पं. बा. २२. बूझ कर कुशीलव प्रयोग करता है यों ज्ञात होता है।
१५.१-१०), कुसुरुबिंदु (सां. श्री. १६.२२.१४) निर्देश कुशीलव शब्द का अर्थ, गुणगान का व्यवसाय करनेवाला
हैं । यह संस्कारशास्त्र का ज्ञाता था (ष. ब्रा. १.१६) इसे बन्दीजन । वाल्मीकि ने अपना नाम न बताने की उनको
औद्दालकि कहा गया है। इससे पता चलता है कि, आज्ञा दी थी, यह भी ध्यान में रखने की बात है।।
श्वेतकेतु इसका बंधु होगा। लोगों में कुशलव के लिये कुशलव शब्द प्रयुक्त होने का |
कुस्तुक शार्कराक्ष्य--श्रवणदत्त का शिष्य । इसका यही कारण होगा (कुशलव देखिये)।
शिष्य भवत्रात (वं. बा. १)।
कुस्तुंबुरु-एक यक्ष (म. स. १०.१५)। ... कुशमिन्-ब्रह्मांड मत में व्यास की सामशिष्य |
कुहन-सौवीरदेशी राजपुत्र । यह जयद्रथ का बंधु परंपरा के पौष्यं जि का शिष्य ।
था (म. व. २४९. १०)। कुशुंभ--(सो.) भविष्य के मत में शकुनिपुत्र ।
कुहर-भारतीय युद्ध में दुर्योधन के पक्ष का राजा। कुश्रि वाजश्रवस--वाजश्रवस् तथा राजस्तंबायन
२. कश्यप तथा कद्र का पुत्र। यज्ञवचस् का शिष्य । इसे अग्निचयन का ज्ञान था
कुहू-स्वायंभुव मन्वंतर में अंगिरा ऋषि को श्रद्धा से (श. ब्रा. १०.५.५.१)। इसके शिष्य उपवेशि तथा |
उत्पन्न चार कन्याओं में द्वितीय । वात्स्य (बृ. उ. ६.५.३-४)।
२. हविष्मंत नामक पितरों की स्त्री। - कुषंड-सर्पसत्र में पंड नामक ऋत्विज के साथ ३. द्वादश आदित्यों में धाता नामक आदित्य की स्त्री। इसका नाम आया है । इस सत्र में इसके पास अभिगिर
४. मयासुर की तीन कन्याओं में कनिष्ठ । (स्तुति ) तथा अपगर. (निंदा ) नामक कर्म थे (पं. ब्रा..
कूट-कंस की सभा का एक मल । धनुर्याग के समय २५.१५.३; ला. श्री. १०.२०.१०)।
बलराम ने इसका वध किया (भा. १०.४४)। कुर्षातक सामश्रवस-शमनी मेद नामक व्रात्यों | २. पाषाणरूपी इस असुर का गणेश ने नाश किया '. का.यज्ञप्रमुख । यह व्रात्यों का मुख्य हुआ, इसलिये इसे | (गणेश. २. १३)।
लुशाकपि खागलि ने 'भ्रष्ट होगे' ऐसा शाप दिया।। कपकर्ण-एक रुद्रगण । बाणासुर के युद्धप्रसंग में इसीलिये कौषीतकी शाखा के लोग (सांख्यायन), | इसका बलराम से युद्ध हुआ था (भा. १०. ६३)। कहीं भी महत्त्वपूर्ण स्थान को प्राप्त नहीं हुए (पं. बा.१७. २. बलि के प्रधानों में अग्रेसर (नारद. १.१०)। ४.३)।
कूर्च-(सू, नरि.) भागवत मत में मीट्ठस् राजा कुसीदकि-अंगिराकुल का गोत्रकार ।
का पुत्र । इसका पुत्र इंद्रसेन । कुसीहि-विष्णु मत में व्यास की सामशिष्यपरंपरा |
___ कूर्चामुख--विश्वामित्र ऋषि का पुत्र (म. अनु. ७. के पौष्यंजि का शिष्य ।
५३ कुं.)। कुसु-मणिवर तथा देवजनी का पुत्र ।
__ कूर्म-एक अवतार । प्रजापति संतति निर्माण करने कुसुदिन काव्य--सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.८१-८३)। के लिये, कर्मरूप से पानी में संचार करता है (श. ब्रा.
कुसुमामोदिनी-पार्वती की माता की सहेली।। ७.५.१. ५-१०; म. आ. १६; पन. उ. २५९)। पार्वती तपस्या करने मंदराचल पर गयी। तब उसने इसे | प्रजापति ने कूर्मरूप धारण कर प्रजोत्पादन किया। प्रार्थना की कि, वह उधर किसी को भी न आने दे | यह ग्यारहवाँ अवतार है (भा. १. ३. १६)। पृथ्वी (पद्म. सृ. ४४)।
रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने यह अवतार