Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
कुशलव
प्राचीन चरित्रकोश
कुशबिल
गया रामायण महाकाव्य तालसुरों के साथ गाना इन्हों। हैं (ऋ. ३.२१. १:२९.१५,३०.२०,४२.९; ऐ. ब्रा. ७. ने प्रारंभ किया। ऋषियों के पवित्र स्थान, ब्राह्मणों के | १८; सां. श्री. १५.२७)। शुनःशेप की कथा में इसका निवासस्थान, उपमार्ग, राजमार्ग, राजाओं के निवासस्थान, | नाम है। यह भरतकुल का पौरोहित्य करता था। यह राम का निवासस्थान, तथा जहाँ ऋत्विजों के अनुष्ठान विशेषतः इन्द्राराधना करता था। इसीलिये इन्द्र को हो रहे थे, ऐसे स्थानों पर रामायण गाने का क्रम | कौशिक कहते हैं (ऋ. १.१०.११; मै. सं. ४.५.७; श. इन्होने जारी रखा । यह कभी इस मेल को बिगाड़ते नहीं | ब्रा. ३.३.४.१९; ते. आ. १.१.४) थे। रोज ये बीस सगों का गायन करते थे। इन्हें | यह कुश का पुत्र था। भागवत मत में इसे कुशाबु, वाल्मिकी की आज्ञा हुई थी कि, धन की अपेक्षा न विष्णु मत में कशांब तथा वायु मत में कुशास्य नाम हैं। की जाये। यदि कोई धन देने ही लगे, तो कहा जाये | इसका पुत्र गाधि तथा पौत्र विश्वामित्र । यह विश्वामित्रकुल कि, हम मुनिकुमारों को धन की क्या आवश्यकता है ? | का एक गोत्रकार है। इसे इषीरथपुत्र कहा गया है अगर किसी ने पूछा कि, तुम किसके पुत्र हो, तो ये | (वेदार्थदीपिका ३)। कहते थे कि, हम वाल्मीकि के शिष्य है। परंतु रामायण
| कुशिक महोदयपुर में रहता था। एक बार इसका श्रवण से राम को पता चला कि, कुशलव उसीके पुत्र है
| श्वशुर, च्यवन इसके पास रहने के लिये आया। (वा. रा. उ. ९३-९४)।
उसका हेतु था, कि इनके कुल का नाश कर दिया जावे। राम ने कोसल देश का राज्याभिषेक लव को किया। क्यों कि. आगे चल कर इसके वंश में संकर होनेवाला उत्तर कोसल का राज्यभिषेक कुश को किया (वा. रा.
था। कुशिक ने स्त्री के साथ च्यवन की उत्कृष्ट सेवा उ. १०७)। लव की सुमति तथा कंजानना नामक दो की. तथा अपने वंश को ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का वरदान पत्नियाँ थीं, तथा कुश की चंपका नामक पत्नी थी (आ. रा.. | प्राप्त किया। उस प्रकार हआ भी (म. अनु. ८५-९० विवाह.६-७)।
कुं विष्णुधर्म. १.१४)। इन्द्र के समान पुत्र हो, इस कुशाग्र (सो. अज.) भागवत मत में उपरिचर | हेतु से कुशिक ने तपस्या की। इसलिये इन्द्र ने इसके वसु का पुत्र वृहद्रथ के दो पुत्रों में से दूसरा। जरा- | उदर से गाधि के रूप में जन्म लिया (ह. वं. १.२०; संध का कनिष्ठ बंधु । इसका पुत्र ऋषभ । परंतु वायु तथा | म. शां. ४८ )। मस्त्य पुराणों में जरासंध का उल्लेख कुशाग्रबंश में दिया | कुशिककल के मंत्रकार-अघमर्षण, अष्टक, देवरात, है । अन्य पुराणों में यह स्वतंत्र वंश है।
देवश्रवस्, धनंजय, पुराण, बल, भूतकील, मधुच्छंदस् , कुशांब-(सो. अमा.) कुश अथवा कुशिक राजा | माम्बुधि, लोहित, विश्वामित्र, शालंकायन, शिशिर (मत्स्य, के चार पुत्रों में प्रथम । इसे कुशांबु भी कहते थे। | १४५.११२-११३)। इसके द्वारा स्थापित नगरी का नाम कौशांबी । इसके पुत्र
__अघमण, कत, कोल, पूरण, उद्गल, रेणु, ये ब्रह्मांड में का नाम गाधि था (कुशिक देखिये)।
अधिक है (२.३२.११७-११८)। २. (सो. ऋक्ष.) उपरिचर वसु राजा के पुत्रों में एक । ।
२. लकुलिन् नामक शिवावतार का शिष्य । यह चेदि देश का अधिपति था (भा. ९.२२)। इसे
कुशिक ऐषाराथि—सूक्तद्रष्टा (ऋ. ३.३१; कुशिक मणिवाहन नामांतर था (म. आ. ५७.१०)।
देखिये)। कुशांबु-कौशांबी नगरी में रहनेवाला एक राजा (कुशांब देखिये)।
कुशिक सौभर-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१२७)। कुशाल-(मौर्य, भविष्य.) ब्रह्मांड के मत में अशोक कुशिकंधर-अट्टहास नामक शिंवावतार का
शिष्य । कुशावर्त (स्वा. प्रिय.) एक राजा। ऋषभदेव | कुशीबल-भावशर्मा नामक एक ब्राहाण । अत्यधिक तथा जयंती का पुत्र । इसका खंड इसीके नाम से प्रसिद्ध | ताड़ीसेवन से इसकी मृत्यु हुई । इसे ताड़ का जन्म प्राप्त है (भा. ५.४)।
हुआ। कुछ भी दान न करने के कारण, उस ताड़ पर कुशिक-(सो. अमा.) विश्वामित्र का पूर्वज (ऋ. | कुशीबल नामक ब्राह्मण, ब्रह्मराक्षस बन कर सहकुटुंब ३.३३.५)। वैदिक ग्रंथों में इसके अनेक उल्लेख प्राप्य | रहता था। गीता के आठवें अध्याय का पाठ करने से,
पुत्र।
१५४