Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
काम
के उदर में पुनः प्रद्युम्न नाम से इसने जन्म लिया ( भा. २.१२.२६ : १०.५५.१) । जहाँ इसे दब किया, वह स्थल अंगदेश है। इसने बंधुभगिनी में कामविकार उत्पन्न किया, इस लिये शंकरद्वारा दग्ध होने का शाप इसे मिला। शंकर को पुत्रेच्छा होगी तब उत्पत्ति होने का उपशाप भी इसने प्राप्त किया ( शिय. रुद्र. सती ३ ) |
।
२. संकल्प का पुत्र (मा. ६.६.१० ) ।
३. वैवस्वत मन्वन्तर के बृहस्पती का दौहित्र ।
प्राचीन चरित्रकोश
४. धर्मऋषी का एक पुत्र हर्ष इसका (पद्म. सृ. ३ ) । रिक्षपुत्र है ( कपिल १०. देखिये ) । ५. परशुराम का बंधु (काकाम देखिये) । कामकंटका - घटोत्कच देखिये ।
कामकायन - विश्वामित्र कुलोत्पन्न गोत्रकार तथा उल्लेख आया है (नि. २.२ ) । ब्रह्मर्षि
कामगम तथा कामज -- धर्मसावर्णि मन्वन्तर के देवगण विशेष |
कामठक-एक सर्प (म. आ. ५२.१५ ) | कामंद --सोमकान्त देखिये ।
आनंद से हँसती थी, तब गंगा में गिरे हुए इसके अश्रु कमल बनते थे (नारद. २.६८.१४ ) । क्षीरसागर में से कमोदा, लक्ष्मी, ज्येष्ठा तथा वारुणी उत्पन्न हुई थीं। यहा अमृत के फेन में से उत्पन्न हुई । यही तुलसी है । यह कामोदनगर में रहती है। इसके हंसने से पीले फूल उत्पन्न होते थे (बिड देखिये . ११८-१२१ ) | काम्पिल्य- (सो. नील. ) भागवतमतानुसार भयस्वपुत्र, विष्णुमतानुसार हर्यश्वपुत्र तथा वायुमतानुसार
कामप्रि-मरुत्तका नामान्तर यह मरुत्त के लिये उपाधि की तरह प्रयुक्त किया है ( ऐ. बा. ८.२१ ) । सायण इसका अर्थ कामपूरक ऐसा लगाते हैं।
कामलायन - उपकोसल का पैतृक नाम (छां. उ. ४. १०.१ ) ।
कामली रेणुका देखिये। रेणुका का नामांतर । २. विश्वामित्र कुल का गोत्रकार ।
कामहानि-व्यास की सामशिष्य परंपरा के वायुमतानुसार खांगली का शिष्य ।
काम्बोज औपमन्यव -- एक आचार्य (वं. बा. २ ) । निरक्त में इन दोनों शब्दों का दूसरे अर्थ में परंतु एकत्र
२. एक गिरिष्ट राजा ने इससे पूछा था कि शुद्ध धर्म, अर्थ तथा काम कौन हैं ? इसने उत्तर दिया कि, जिस से चित्तशुद्धि हो वह धर्म, पुरुषार्थ साध्य हो वह अर्थ तथा केवल देहनिर्वाह की इच्छा हो वह काम है ( म. शां. १२३ ) |
कायव्य- एक निषाद अरण्य के सब दस्युओं का यह अधिपति था । यह शूर तथा परमधार्मिक था । इसने अपने अनुयायीयों को बताया कि वे ब्राह्मणों की कभी भी द्वेष न करें । उन्हें सर्वभाव से भजें, तथा छोटे बालक, स्त्रियां, भयभीत, भागनेवाले तथा निरायुध का वध न करें। जो ब्राह्मणों के शत्रु हैं, उनसे युद्ध करो तथा उन्हें मार डालो । इस तरह का व्यवहार करोगे तो उत्तम गति प्राप्त होगी । सदाचार का अवलंबन करने से दस्युओं का भी उद्धार होता है, यह बताने के लिये यह पुरातन कथा दी गयी
कामप्रमोदिनी -- माण्डव्य की पत्नी ( माण्डव्य है ( म. शां. १३५ ) । इसे कापच्य भी कहते हैं । देखिये ) ।
कारक - - अंगिराकुल का एक गोत्रकार । काचापि इसका पाठभेद है।
काय नि - भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
काय
कारडि - भगवत् औपमन्यव कारडि देखिये।
कारंधम -- अविक्षित् का नामांतर । कारीर—उद्रीय के संबंध में विशेष ज्ञान रखने वाला आचार्य (कै. उ. बा. २.४.४) ।
कारीरथ - - अंगिरांकुल का एक गोत्रकार । कारीरदि एक आचार्य (जै. उ. बा. २.४.४ ) काररिय- अंगिर कुलोपन एक गोत्रकार । कारीषि - विश्वामित्र का पुत्र ( म. अनु. ४.५५ कुं.) कारुकायण विश्वामित्र कुछ का एक गोत्रकार ।
कामा -- देवी ( घटोत्कच देखिये) । कामान्ध-यय का पुत्र ( औ. औ. २१.१० ) । इसका पाठभेद कामुकायन है।
कामायनी श्रद्धा देखिये।
कामुकायन - - कारुकायण का पाठभेद ।
कामोदा -- क्षीरसागर से कामोदा, रमा, वरा, तथा वारुणी नामक चार कन्याएं उत्पन्न हुई। पहली तीन विष्णु की स्त्रियां बनीं तथा वारुणी दैत्यों के हिस्से में पड़ी। यह
१३४
--
कारूप करूपक देश का राजा वृद्धशर्मा का नामांतर | इसका पुत्र दंतवक भारतीय युद्ध में यह राजा दुर्योधन के पक्ष में था ( भा. ९.२४.३७ ) । कारोटक - - अंगिराकुल का एक गोत्रकार । काय - ' कायस्थ' का पाठभेद ।